प्रदेश में 25 हजार Sr. Teachers की आवश्यकता लेकिन RPSC ने निकाले, केवल 2129 पद :-
राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) ने वरिष्ठ अध्यापकों के 2,129 पदों की भर्ती के लिए स्वीकृति बुधवार को दी। लेकिन, राज्य के शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 25,372 वरिष्ठ अध्यापक के पद रिक्त हैं, जिन्हें तुरंत भरा जाना चाहिए था। इस स्थिति पर संयुक्त अभिभावक संघ ने कड़ी आलोचना की और आरोप लगाया कि राज्य सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के बजाय गरीब अभिभावकों का मजाक उड़ा रही है।
संयुक्त अभिभावक संघ का कहना है कि जब राज्य सरकार लगातार सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने और शिक्षा में सुधार की बातें कर रही है, तो वह रिक्त पदों की भर्ती में इतनी संजीदगी क्यों नहीं दिखा रही? शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का है, लेकिन जब शिक्षकों के इतने बड़े पैमाने पर पद रिक्त हैं और भर्ती की प्रक्रिया धीमी है, तो इसका सीधा असर छात्रों की शिक्षा पर पड़ रहा है।

संघ ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार और प्रशासन का ध्यान केवल बडे़-बड़े दावे करने में है, न कि वास्तविक समस्याओं का समाधान करने में। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा देने वाली शिक्षकों की भारी कमी है, जिससे गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में मुश्किल हो रही है। इससे उन छात्रों का भविष्य भी संकट में पड़ रहा है, जिनके अभिभावक सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कराना चाहते हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही।
संयुक्त अभिभावक संघ का विरोध :-
संयुक्त अभिभावक संघ के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन ने कहा कि प्रदेश में 25 हजार से अधिक वरिष्ठ अध्यापकों की आवश्यकता है। लेकिन राज्य सरकार ने सिर्फ 2,129 पदों पर भर्ती निकाली है, जो किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है। यह स्थिति ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। जैन ने कहा, “सरकार का इरादा केवल दिखावे के लिए काम करने का लगता है, असल में सरकार की नीयत में खोट है। वह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है और अभिभावकों को झूठे वादे करके उनकी उम्मीदों को तोड़ रही है।”
उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई है। सरकार के दावों के विपरीत, राज्य में स्कूलों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। शिक्षकों की कमी और प्रशासनिक लापरवाही के चलते छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने में गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
प्रदेश में शिक्षा की स्थिति पर गंभीर सवाल :-
संयुक्त अभिभावक संघ ने यह भी सवाल उठाया कि सरकार ने जब स्कूलों के प्रशासन को सुधारने का वादा किया था, तो क्यों शिक्षकों की कमी पर ध्यान नहीं दिया गया? अभिभावकों का कहना है कि अगर सरकार वास्तव में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की इच्छुक होती, तो वह इन रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरने के लिए प्रभावी कदम उठाती। सरकार के इन कदमों की धीमी गति से यह स्पष्ट होता है कि सरकार की प्राथमिकताएं कहीं और हैं और शिक्षा उनकी सूची में प्राथमिकता नहीं बन पाई।
अभिषेक जैन ने प्रदेश सरकार से अपील की कि वह जल्द से जल्द शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक स्पष्ट और मजबूत नीति तैयार करे। अगर सरकार ने शीघ्र और प्रभावी कदम नहीं उठाए तो प्रदेश के 1 करोड़ से ज्यादा अभिभावकों के सपने और 2 करोड़ से अधिक छात्रों का भविष्य संकट में पड़ सकता है।
संघ का निष्कर्ष :-
संघ का मानना है कि सरकारी स्कूलों में तैनात शिक्षकों की संख्या बढ़ाए बिना शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है। सरकार को अधिक से अधिक पदों की भर्ती करनी चाहिए और राज्य के सभी स्कूलों में पर्याप्त संख्या में शिक्षकों को तैनात करना चाहिए ताकि हर बच्चे को शिक्षा का अवसर मिले और उनके भविष्य के रास्ते खोल सकें। अगर स्थिति इसी तरह बनी रही, तो भविष्य में यह शिक्षा व्यवस्था और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगी, जिससे प्रदेश के छात्रों का भविष्य अधर में लटक सकता है।


