Special Diploma, IDD, Paper-5, CURRICULUM DEVELOPMENT (पाठ्यचर्या विकास), Unit-1
Unit 1: परिभाषा, अर्थ और दृष्टिकोण पाठ्यचर्या विकास के लिए
1.1. पाठ्यचर्या – परिभाषा, अर्थ और अवधारणा
1.2. पाठ्यचर्या विकास के सिद्धांत
1.3. पाठ्यक्रम के प्रकार – विकासात्मक, कार्यात्मक, पारिस्थितिकीय और पारस्परिक
1.4. पाठ्यक्रम संचरण के दृष्टिकोण – बाल केंद्रित, क्रियाकलाप केंद्रित, समग्र
1.5. विविध शिक्षण आवश्यकताओं वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए विचार करने योग्य बिंदु।
Unit 1: Definition, Meaning, and Approaches to Curriculum Development
1.1. Curriculum – Definition, Meaning, and Concept
1.2. Principles of curriculum development
1.3. Types of curricula – Developmental, Functional, Ecological, and Eclectic
1.4. Approaches to curriculum transaction – Child-centered, Activity-centered, Holistic
1.5. Points to consider for developing curriculum for students with diverse learning needs
1.1. Curriculum – Definition, Meaning and Concept (पाठ्यचर्या परिभाषा, अर्थ और अवधारणा)
पाठ्यक्रम का अर्थ – पाठ्यक्रम शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Currere’ से हुई है। Currere का अर्थ है दौड़ का मैदान (Race Course)। इस प्रकार पाठ्यक्रम बालक के लिए उस दौड़ के समान है जहाँ बालक शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु दौड़ में भाग लेता है।
पाठ्यक्रम का अर्थ ‘उन सभी क्रियाओं और परिस्थियों से है जिनका नियोजन और संपादन विद्यालय बच्चों के विकास के लिए करता है। यह बात सभी लोग जानते है कि समय-समय पर समाज के लोगों के दृष्टिकोण बदलते रहते है। इन्ही बदलते विचारों के साथ शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते है। शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति पाठ्यक्रम द्वार ही होती है। अतः पाठ्यक्रम का बदलते रहना स्वाभाविक है। पहले पाठ्यक्रम को संकुचित अर्थ में लिया जाता रहा है लेकिन वर्तमान में पाठ्यक्रम को बहुत अधिक व्यापक रूप में लिया जाता है। आज बालक को भावी जीवन के लिये तैयार करना पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण उद्देश्य माना जाने लगा है।
शिक्षक की दृष्टि से पाठ्यक्रम एक दिशा एवं साधन है जिसका अनुसरण करके शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। पाठ्यक्रम एक दिशा एवं साधन है जिसका अनुसरण करके शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। पाठ्यक्रम के व्यवस्थित रूप को पाठ्यक्रम की संज्ञा देते है। जो छात्रों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए तैयार किया जाता है। पाठ्यक्रम के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों ने भी किया है।
समाजशास्त्री पाठ्यक्रम का अर्थ अधिक व्यापक लगाते है। समाजशास्त्रियों के अनुसार, “पाठ्यक्रम शब्द का अर्थ उन सभी क्रियाओं एवं परिस्थितियों से होता है जिनका नियोजन एवं सम्पादन विद्यालय द्वार बालकों के विकास के लिए किया जाता है।”
विद्यालयों का प्रमुख कार्य बालकों को शिक्षा प्रदान करना होता और इसको पूर्ण करने के लिए वहाँ पर जो कुछ किया जाता उसे पाठ्यक्रम का नाम दिया गया है। इसीलिए पाठ्यक्रम को परिभाषित करते हुए एक विद्वान ने इसे हाट ऑफ एजूकेशन (Heart of Education) कहा है। यह परिभाषा बहुत ही अधिक सरल और स्पष्ट लगती है, परन्तु इस हाट की व्याख्या करना तथा कोई निश्चित उत्तर प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। इस संबंध में अमेरिका के ‘नेशनल एजूकेशन एसोसिएशन’ ने अपनी टिप्पणी इस प्रकार की है-
“विद्यालयों का कार्य क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कई बार अनेक ढंग से दिया जा चुका है, फिर भी बार-बार उठाया जाता है। कारण स्पष्ट है, यह एक ऐसा शाशवत प्रश्न है जिसका उत्तर अन्तिम रूप से कभी दिया भी नही जा सकता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक समाज एवं प्रत्येक पीढ़ी की बदलती हुई प्रकृति एवं आवश्यकताओं के अनुसार बदलता रहता है।”
अतः शिक्षा के उद्देश्य बदलते रहे इसलिये पाठ्यक्रम का अर्थ भी बदलता रहा है। अतीत में पाठ्यक्रम का अर्थ संकुचित था। कुछ विषयों में शिक्षा के प्रारूप को ही पाठ्यक्रम कहते थे परन्तु आज के संदर्भ में इसका अधिक व्यापक अर्थ है। बालक को भावी जीवन के लिए तैयार कर सकें ऐसा पाठ्यक्रम होना चाहिए, यह केवल ज्ञान देने तक सीमित नही है। पाठ्यक्रम विकास सदैव भविष्य के लिए किया जाता है।
पाठ्यचर्या की पारंपरिक अवधारणाः– पूर्व में पाठ्यक्रम का दूसरा नाम ‘पाठ्यक्रम’ था। इस शब्द को केवल विभिन्न विषयों से संबंधित कार्यक्रम माना जाता था। हालाँकि, शब्द ‘पाठ्यचर्या’ और ‘अध्यान का पाठ्यक्रम’, कभी-कभी परस्पर विनिमय योग्य थे, लेकिन बहुत सीमित अर्थों में उपयोग किए जाते थे। वास्तव में, यह दृष्टिकोण एक स्थिर-दृष्टिकोण था जो केवल पाठ्यपुस्तक ज्ञान या तथ्यात्मक जानकारी पर जोर देता था। उनमें यह सही था क्योंकि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थी को सामग्री को याद रखने में मदद करना था। इसके अलावा, पाठ्यचर्या को शिक्षक से विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाता था और उन्हें याद, पाठ और अभ्यास के माध्यम से महारत हासिल थी और शिक्षक की मांग पर तथ्यात्मक ज्ञान पर पुनः प्रस्तुत किया जाना है। पारंपरिक पाठ्यक्रम विषय केंद्रित था जबकि आधुनिक पाठ्यक्रम बाल और जीवन केंद्रित या छात्र छात्र केंद्रित है।
पाठ्यचर्या की आधुनिक अवधारणाः– समय बीतने और दिमाग के सुदृढ़ीकरण अवधारणा को एक गतिशील और आधुनिक अवधारणा से बदल दिया गया था। इसलिए, अब इसे सभी पाठ्यचर्या और सह-पाठयक्रम गतिविधियों सहित एक व्यापक संचयी और व्यापक शब्द माना जाता है। यह उन सभी सीखने की गतिविधियों की समग्रता है जिनसे हमें अध्ययन के दौरान अवगत कराया जाता है, अर्थात कक्षा के अनुभव, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, खेल के मैदान, स्कूल की इमारत, माता-पिता और समुदाय के साथ अध्ययन पर्यटन संघ। अब, यह पाठ्यपुस्तकों से कहीं अधिक है और किसी विशेष कक्षा के लिए चुनी गई विषय-वस्तु से भी अधिक है। आधुनिक शिक्षा दो गतिशील प्रक्रियाओं का मेल है। एक व्यक्तिगत विकास की प्रक्रिया है और दूसरी समाजीकरण की प्रक्रिया है, जो कि पर्यावरण के रूप में ज्ञात सामाजिक के साथ आर्थिक रूप से समायोजन है।
संक्षेप में, पाठ्यचर्या संभावित अनुभवों की एक श्रृंखला है, जो संबंधित समाज की सोच के वांछनीय तरीकों में शिक्षार्थियों को अनुशासित करने के उद्देश्य से शैक्षिक संस्थानों में स्थापित की जाती है। यह एक ऐसा मार्ग है जिसका अनुसरण करके हम एक निर्दिष्ट गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा, इसे सीखने के अवसरों की एक श्रृंखला माना जाता है जो एक शिक्षक और विद्यार्थियों द्वारा एक साथ काम करने की योजना बनाई और कार्यान्वित की जाती है।
पाठ्यक्रम की परिभाषा
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, “पाठ्यक्रम का अर्थ रूढ़िवादी ढंग से पढ़ाए जाने वाले बौद्धिक विषयों से नहीं है, परन्तु उसके अंदर वे सभी क्रिया-कलाप आ जाते हैं जो बालकों को कक्षा के बाहर तथा भीतर प्राप्त होते हैं।”
ब्लांडस के शिक्षा कोष के अनुसार,” पाठ्यक्रम को क्रिया एवं अनुभव के परिणाम के रूप में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किये जाने वाले ज्ञान और संकलित किये जाने वाले तथ्यों के रूप में। विद्यालय जीवन के अंतर्गत विविध प्रकार के कलात्मक, शारीरिक एवं बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते हैं।”
हार्न के अनुसार,” पाठ्यक्रम वह है जो बालकों को पढ़ाया जाता है। यह शान्तिपूर्ण पढ़ने या सीखने से अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास और क्रियाएँ सम्मिलित हैं।”
कनिंघम के अनुसार,” कलाकार (शिक्षक) के हाथ में यह (पाठ्यक्रम) एक साधन है जिससे वह पदार्थ (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श उद्देश्य के अनुसार स्टूडियो (स्कूल) में डाल सके।”
फ्रोबेल के अनुसार,” पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभवों का सार समझना चाहिए।”
मुनरों के मतानुसार,” पाठ्यक्रम में वे सब क्रियाएँ सम्मिलित हैं जिनका हम शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते हैं।”
कैसबैल के अनुसार,” पाठ्यक्रम में वे सभी वस्तुएं आती हैं जो बालकों के, उनके माता-पिता एवं शिक्षकों के जीवन से होकर गुजरती हैं। पाठ्यक्रम उस सभी चीजों से बनता है जो सीखने वालों को काम करने के घंटों में घेरे रहती हैं। वास्तव में पाठ्यक्रम को गतिमान वातावरण कहा जाता है।”
वेण्ट और क्रोनेबर्ग के अनुसार,” पाठ्यक्रम पाठ्यवस्तु का सुव्यवस्थित रूप है जो बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु तैयार किया जाता है।”
बबिट के अनुसार,” उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चौबीस घंटे की जा रही समस्त क्रियाएँ पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आ जाती हैं।”
सैमुअल के अनुसार,” पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव समाहित होते हैं जिन्हें वह कक्षाकक्ष में, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, खेल के मैदान में, विद्यालय में सम्पन्न होने वाली अन्य पाठ्येतर क्रियाओं द्वारा तथा अपने अध्यापकों एवं साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है।”
Characteristics of Curriculum (पाठ्यचर्या की विशेषताएँ)–
- पाठ्यचर्या लगातार विकसित किया जाता है: यह एक काल से दूसरे काल में, वर्तमान में विकसित हुई। एक पाठ्यक्रम के प्रभावी होने के लिए, इसमें निरंतर निगरानी और मूल्यांकन होना चाहिए। एक आधुनिक और गतिशील समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिए पाठ्यचर्या को अपनी शैक्षिक गतिविधियों और सेवाओं को अनुकूलित करना चाहिए।
- यह विद्यार्थियों की आवश्यकताओं पर आधारित है: एक अच्छा पाठ्यक्रम व्यक्ति और समग्र रूप से समाज की आवश्यकताओं को दर्शाता है। समय की चुनौतियों का सामना करने और शिक्षा को ग्राहकों के लिए अधिक उत्तरदायी बनाने के लिए पाठ्यक्रम उचित आकार में है।
- यह लोकतांत्रिक रूप से कल्पना की गई है: एक अच्छा पाठ्यक्रम विकसित समाज में विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों के एक समूह के प्रयासों द्वारा किया जाता है, जो शिक्षार्थी और पूरे समाज के हितों, जरूरतों और संसाधनों के बारे में जानकार होते हैं। पाठ्यक्रम कई दिमागों और ऊर्जाओं का उत्पाद है।
पाठ्यक्रम एक दीर्घकालिक प्रयास का परिणाम है: यह लंबी और थकाऊ प्रक्रिया का एक उत्पाद है। एक अच्छे पाठ्यक्रम के नियोजन, प्रबंधन, मूल्यांकन और विकास में लंबा समय लगता है।
यह विवरणों का एक जटिल है (It is a complete of details):
एक अच्छा पाठ्यक्रम उचित निर्देशात्मक उपकरण और बैठक स्थान प्रदान करता है जो अक्सर सीखने के लिए सबसे अनुकूल होते हैं। इसमें छात्र-शिक्षक संबंध, मार्गदर्शन और परामर्श कार्यक्रम, स्वास्थ्य सेवाएं, स्कूल और सामुदायिक परियोजनाएं, पुस्तकालय और प्रयोगशालाएं, और स्कूल से संबंधित अन्य कार्य अनुभव शामिल हैं।
यह विषय वस्तु के तार्किक अनुक्रम के लिए प्रदान करता है (It provides for the logical sequence of subject matter): सीखना विकासात्मक है। कक्षाओं और गतिविधियों की योजना बनाई जानी चाहिए। एक अच्छा पाठ्यक्रम अनुभव की निरंतरता प्रदान करता है।
पाठ्यक्रम समुदाय के अन्य कार्यक्रमों का पूरक और सहयोग करता है (The curriculum complements and cooperates with other programs of the community):
यह समुदाय की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होता है। स्कूल समुदाय स्कूल समुदाय के चल रहे कार्यक्रमों के सुधार और कार्यान्वयन में अपनी सहायता प्रदान करता है। अधिक उत्पादकता की दिशा में विद्यालय और समुदाय के बीच सहयोगात्मक प्रयास है।
- इसमें शैक्षिक गुणवत्ता है (It has educational quality): गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामाजिक कल्याण और विकास के लिए व्यक्ति की बौद्धिक और रचनात्मक क्षमताओं की स्थिति के माध्यम से आती है। पाठ्यक्रम शिक्षार्थी को सर्वश्रेष्ठ बनने में मदद करता है जो वह संभवतः हो सकता है। इसके कुशल और प्रभावी कार्यान्वयन के लिए मौजूदा स्रोतों को बढ़ाने के लिए इसकी सहायता प्रणाली सुरक्षित है।
- इसमें प्रशासनिक लचीलापन है (It has administrative flexibility): एक अच्छा पाठ्यक्रम जब भी आवश्यक हो परिवर्तनों को शामिल करने के लिए तैयार होना चाहिए। वैश्वीकरण और डिजिटल युग की मांगों को पूरा करने के लिए पाठ्यक्रम संशोधन और विकास के लिए खुला है।
शिक्षा में पाठ्यक्रम विकास का महत्व (Importance of curriculum development in education):
- ज्ञान प्राप्त करने के लिए संगठित मार्ग (Organized path to acquire knowledge): पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य एक प्राप्त करने योग्य शिक्षण ढांचा प्रदान करना है जो छात्रों को ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है। शिक्षार्थियों के लिए ज्ञान के व्यापक स्पेक्ट्रम को प्राप्त करने योग्य और समझने योग्य बनाने के लिए, शैक्षणिक संस्थानों ने इसे विषयों में विभाजित किया है और उन्हें एक आकर्षक शिक्षण मॉडल में व्यवस्थित किया है।
- विषयवस्तु की संरचना का निर्धारण (Determining the structure of content): सभी विषयवस्तु को शिक्षार्थियों को उनकी सीखने की क्षमता के अनुसार एक अधिग्रहण योग्य रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। एक पाठ्यक्रम का विकास शिक्षण के एक विशेष स्तर के लिए विषय वस्तु की संरचना को निर्धारित करने में मदद करता है।
- निर्देशात्मक विधियों को परिभाषित करना (Defining instructional methods): पाठ्यचर्या विकास एक छात्र-केंद्रित शिक्षण पद्धति को निर्धारित करने में मदद करता है जो विषय को शिक्षार्थियों के लिए दिलचस्प बनाता है।
- ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण का विकास (Development of knowledge, skill, and attitude): एक पाठ्यक्रम रचनात्मक क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ ज्ञान और कौशल विकसित करने के लिए ढांचा प्रदान करता है।
1.2: Principles of Curriculum Development (पाठ्यक्रम विकास के सिद्धांत)
एक अच्छा पाठ्यक्रम बच्चे की अधिकतम क्षमता को उजागर करने का लक्ष्य होना चाहिए, चाहे वह मंदबुद्धि हो या न हो। इसे प्राप्त करने के लिए कुछ मूल सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक है।
मुख्य सिद्धांत:
- केंद्रीयकरण का सिद्धांत
- सामुदायिक सिद्धांत
- क्रियाकेंद्रित सिद्धांत
- विविधता का सिद्धांत
- लचीलापन का सिद्धांत
- एकीकरण/सह-संबंध का सिद्धांत
- अनुभव की समयिकता का सिद्धांत
- उपयोगिता का सिद्धांत
- सुरक्षा का सिद्धांत
- रचनात्मक प्रशिक्षण का सिद्धांत
- लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास सिद्धांत
- सहयोग का सिद्धांत
- जीवन के लिए तैयारी का सिद्धांत
- सार्थकता का सिद्धांत
- अनिश्चितता का सिद्धांत
- मानवीय मूल्यों के विकास का सिद्धांत:
- बुनियादी ज्ञान और कौशल का सिद्धांत
मुख्य सिद्धांत:
- विद्यार्थी केंद्रीयत का सिद्धांत: पाठ्यक्रम छात्रों की रुचियों, आवश्यकताओं और विकास स्तर के अनुसार होना चाहिए, और छात्रों को समृद्ध अनुभव प्रदान करने चाहिए।
- समुदाय केंद्रीयत का सिद्धांत: पाठ्यक्रम का विकास समुदाय की जरूरतों और समस्याओं को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। यह सामुदायिक जीवन से जुड़ा होना चाहिए।
- क्रिया-केंद्रीयत का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को छात्रों की रुचियों से जुड़ी क्रियाओं जैसे खेल, रचनात्मक और प्रोजेक्ट कार्यों पर केंद्रित होना चाहिए।
- विविधता का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को व्यापक और विविधताओं से भरपूर होना चाहिए, ताकि छात्रों की विभिन्न आवश्यकताएं और रुचियां पूरी हो सकें।
- लचीलेपन का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को लचीला होना चाहिए और इसे बदलती स्थितियों के अनुकूल होना चाहिए।
- एकीकरण / सह-संबंध का सिद्धांत: पाठ्यक्रम में विषयों और क्रियाओं का आपस में संबंध होना चाहिए ताकि बच्चे बेहतर समझ सकें।
- अनुभव की समयिकता का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को छात्रों के समग्र अनुभवों पर आधारित होना चाहिए, जो कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, और अनौपचारिक संबंधों से मिलते हैं।
- उपयोगिता का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को उन पहलुओं को शामिल करना चाहिए जो छात्रों के भविष्य में उपयोगी हों और समाज के योग्य सदस्य बनाने में मदद करें।
- 9. सुरक्षा का सिद्धांत: पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को शामिल करना चाहिए जो सभ्यता और संस्कृति की सुरक्षा में सहायक हों। क्रियाओं और प्रकरणों को सावधानी से चुना जाना चाहिए।
- 10. रचनात्मक प्रशिक्षण का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को छात्रों की रचनात्मक क्षमता को बढ़ावा देने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए, ताकि वे भविष्य की आवश्यकताओं के लिए तैयार हो सकें।
- 11. लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को इस तरह से विकसित करना चाहिए कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रचार करें।
- 12. समन्वय का सिद्धांत: पाठ्यक्रम में औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा, सामान्य और विशिष्ट शिक्षा, तथा व्यक्तिगत और सामाजिक उद्देश्यों का समन्वय होना चाहिए।
- 13. जीवन के लिए तैयारी का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को छात्रों को भविष्य की चुनौतियों और समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए।
- 14. सार्थकता का सिद्धांत: पाठ्यक्रम का विकास करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों के लिए विषय सामग्री सार्थक हो और उनकी वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करें।
- 15. निरंतरता का सिद्धांत: पाठ्यक्रम का विकास इस प्रकार से होना चाहिए कि वह पिछले और भविष्य के अधिगम अनुभवों से संबंधित हो, ताकि शिक्षा में निरंतरता बनी रहे।
- 16. मानवीय मूल्यों के विकास का सिद्धांत: पाठ्यक्रम को मानवीय मूल्यों के विकास को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए, खासकर प्राथमिक स्तर से।
- 17. बुनियादी ज्ञान और कौशलों का सिद्धांत: आधुनिक युग में बुनियादी ज्ञान और कौशल की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे पाठ्यक्रम में सही तरीके से शामिल किया जाना चाहिए।
Unit: 1.3 Types of Curricula – Developmental, Functional, Ecological, and Eclectic
पाठ्यक्रम के प्रकार: विकासात्मक, कार्यात्मक, पारिस्थितिक और उदार
विकासात्मक पाठ्यक्रम (Developmental Curriculum)
यह पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए डिज़ाइन किया गया है जिनमें गंभीर संज्ञानात्मक हानि हो, और यह उनके विकास के चरण को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है। यह पाठ्यक्रम बच्चों की व्यक्तिगत जरूरतों, रुचियों और ताकत को ध्यान में रखकर विकसित किया जाता है, ताकि वे अपने विकास के चरण के अनुसार सीख सकें। यह बच्चों को रोमांचक और प्रामाणिक अनुभव प्रदान करता है जो उनकी मौखिक भाषा, साक्षरता, और संख्यात्मकता को बढ़ावा देते हैं।
विकासात्मक पाठ्यक्रम का उद्देश्य छात्रों के संज्ञानात्मक और पेशेवर कौशल को बढ़ाना है। यह सुनिश्चित करता है कि छात्र अपनी क्षमताओं के अनुसार प्रगति करें और उनकी विकासात्मक यात्रा को चुनौती दी जाए। छात्रों को निरंतर चुनौती देना आवश्यक है, ताकि वे अपने कौशल में सुधार कर सकें।
यह पाठ्यक्रम छात्रों के मनोसामाजिक, नैतिक और व्यावसायिक विकास को बढ़ावा देता है, और यह छात्रों के विकास में रैखिक प्रगति को दर्शाता है, हालांकि सभी छात्रों का विकास एक समान गति से नहीं होता।
कार्यात्मक पाठ्यक्रम (Functional Curriculum):
यह पाठ्यक्रम स्वतंत्र जीवन कौशल, व्यावसायिक कौशल, और सामाजिक कौशल पर केंद्रित होता है। यह छात्रों को उनके दैनिक जीवन और समुदाय में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए तैयार करता है। यह विशेष रूप से उन छात्रों के लिए है जो आत्मनिर्भर होने के लिए तैयार नहीं हैं, जैसे मानसिक मंदता वाले बच्चे। कार्यात्मक पाठ्यक्रम में कौशलों को सिखाने के लिए समुदाय आधारित नौकरियों, उपभोक्ता कौशल (जैसे खरीदारी, पैसे का प्रबंधन), सामुदायिक कौशल (जैसे सड़क पार करना), और घरेलू कौशल (जैसे कपड़े धोना, खाना बनाना) पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
पारिस्थितिक पाठ्यक्रम (Ecological Curriculum):
यह पाठ्यक्रम छात्र के जीवन और विकास से जुड़ी वास्तविक परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाता है। इसमें उम्र के अनुरूप कौशल सिखाने पर जोर दिया जाता है, जो छात्र के दैनिक जीवन के लिए प्रासंगिक होते हैं। यह विकलांगता के अनुसार अनुकूलन करने और जटिल कार्यों को सरल बनाने के लिए प्रयुक्त होता है। पारिस्थितिक दृष्टिकोण में वातावरण और गतिविधियों का चयन छात्र की विशेष जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार किया जाता है। यह शैक्षिक टीम के प्रयासों को एकजुट करता है, ताकि छात्र को सबसे उपयुक्त अनुभव मिल सके।
पारिस्थितिक दृष्टिकोण का यह विचार जीवों के एक-दूसरे और उनके पर्यावरण के साथ रिश्तों से प्रेरित है। यह दृष्टिकोण यह मानता है कि सीखना एक सीमित आंतरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह एक पारस्परिक और सक्रिय संबंध है जो व्यक्तियों और उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, और डिजिटल वातावरण के बीच होता है। इस प्रक्रिया में, व्यक्ति और पर्यावरण दोनों आपस में प्रभावित होते हैं और बदलते हैं। यह सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण यह समझाता है कि व्यक्ति न केवल बाहरी वातावरण से संबंधित होता है, बल्कि वह स्वयं भी अपने ज्ञान का उत्पादन करता है और इसे बाहरी दुनिया में लागू करता है। इस प्रकार, सीखने का अनुभव कई प्रकार के वितरित संसाधनों से जुड़ा होता है और यह विभिन्न कार्यों और वातावरणों से संबंधित हो सकता है। पारिस्थितिक दृष्टिकोण में, शिक्षार्थी अपने लिए खुद का सीखने का स्थान बनाते हैं और उनके पास विभिन्न संसाधनों और बुनियादी ढांचे का व्यापक पूल होता है।
उदार पाठ्यक्रम विकास (Eclectic Curriculum Development):
उदार पाठ्यक्रम विकास एक वैचारिक दृष्टिकोण है जो विभिन्न शिक्षा सिद्धांतों और विचारधाराओं को मिश्रित करता है। यह दर्शन “चुनाव” से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है विभिन्न विचारों और सिद्धांतों को चुनना और एक संपूर्ण दृष्टिकोण तैयार करना। उदार पाठ्यक्रम किसी एक शिक्षा पद्धति या दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध नहीं होता, बल्कि यह विभिन्न विचारों और पद्धतियों का मिश्रण करता है। यह दृष्टिकोण यह मानता है कि विभिन्न दृष्टिकोणों से अधिक उपयुक्त अंतर्दृष्टियाँ प्राप्त की जा सकती हैं, और विभिन्न सिद्धांतों को विशेष मामलों में लागू किया जा सकता है।
उदार दृष्टिकोण के अंतर्गत शिक्षक कक्षा के उद्देश्यों और छात्रों की आवश्यकताओं के आधार पर पद्धतियों का चयन करता है। उदाहरण के रूप में, एक कक्षा आगमनात्मक गतिविधि से शुरू हो सकती है, जिसमें छात्र विभिन्न संदर्भों में एक शब्द के उपयोग को पहचानते हैं, और फिर उसी शब्द पर आधारित कार्य-आधारित अभ्यास किया जाता है। इस प्रकार, उदार पाठ्यक्रम में विभिन्न शैक्षिक पद्धतियों और गतिविधियों का मिश्रण किया जाता है।
उदार दृष्टिकोण (Eclectic Approach) और इसका महत्व:
उदार दृष्टिकोण उस दृष्टिकोण को संदर्भित करता है जिसमें विभिन्न विचारधाराओं, सिद्धांतों और पद्धतियों को एक साथ मिश्रित किया जाता है। यह तरीका किसी एक निश्चित पद्धति के बजाय अलग-अलग दृष्टिकोणों का चयन करके सर्वश्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त करने पर जोर देता है। उदाहरण के लिए, संगीत में एक उदार स्वाद वाला व्यक्ति विभिन्न शैलियों को पसंद करता है, वैसे ही शिक्षा में यह दृष्टिकोण विभिन्न शिक्षण विधियों का मिश्रण कर सकता है ताकि हर विद्यार्थी के लिए सबसे उपयुक्त और प्रभावी तरीका चुना जा सके।
उदार दृष्टिकोण के लाभ (Advantages of Eclectic Approach):
- परिवर्तनशीलता की पसंद: मनुष्य को हमेशा नए और रोमांचक अनुभवों की तलाश होती है। यही कारण है कि यह दृष्टिकोण शिक्षण प्रक्रिया को निरंतर नया और रोमांचक बनाए रखता है। यह शिक्षार्थियों को एकरसता से बचने और अधिक संलग्न होने में मदद करता है।
- रचनात्मकता को प्रोत्साहन: यह दृष्टिकोण रचनात्मकता को बढ़ावा देता है, क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं। इससे छात्र न केवल नई जानकारी प्राप्त करते हैं, बल्कि उसे अपने तरीके से व्यक्त करने की भी स्वतंत्रता पाते हैं।
- स्वतंत्रता और आत्मविश्वास: छात्रों को विभिन्न तरीकों का उपयोग करके सीखने का अवसर मिलता है, जिससे उनके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। यह दृष्टिकोण छात्रों को अपनी सोच और निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
- प्राकृतिक सामग्री और परिस्थितियों के अनुकूल: यह दृष्टिकोण विभिन्न परिस्थितियों और उपलब्ध संसाधनों के अनुसार अपनी विधियों को अनुकूलित करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इससे शिक्षण और अध्ययन दोनों अधिक प्रभावी हो सकते हैं।
उदार दृष्टिकोण का उपयोग प्री-स्कूल शिक्षा में:
उदार दृष्टिकोण विशेष रूप से प्री-स्कूल शिक्षा में अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि छोटे बच्चों को विविध गतिविधियों, खेल, और इंटरएक्टिव अनुभवों के माध्यम से सिखाना अधिक प्रभावी होता है। इससे बच्चे न केवल अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं, बल्कि अपनी सृजनात्मकता और समस्या सुलझाने की क्षमता को भी विकसित करते हैं।
1.4. Approaches to curriculum transaction – child centered, activity centered, holistic (पाठ्यक्रम संचालन के दृष्टिकोण – बाल केन्द्रित, गतिविधि केन्द्रित, समग्र)
बाल केंद्रित पाठ्यक्रम (Child-Centered Curriculum): इस दृष्टिकोण में बच्चे की ज़रूरतों, रुचियों और विकासात्मक स्तर को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम तैयार किया जाता है। यह बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक लचीला और सक्रिय तरीका अपनाता है।
गतिविधि-केंद्रित पाठ्यक्रम (Activity-Centered Curriculum): इस दृष्टिकोण में छात्रों को “करकर सीखना” (Learning by Doing) की आदत डाली जाती है। विद्यार्थियों को गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त होती है जो जीवन के व्यावहारिक पहलुओं से जुड़ी होती हैं। इसमें प्रयोगशाला कार्य, क्षेत्र कार्य, कला, शिल्प आदि गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं। यहां फोकस सीखने के अनुभवों और उनके उद्देश्य पर होता है, न कि केवल सामग्री पर।
शिक्षार्थी केंद्रित पाठ्यचर्या (Learner-Centered Curriculum):
शिक्षार्थी केंद्रित पाठ्यचर्या में शिक्षार्थी को शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का केंद्रीय हिस्सा माना जाता है। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना है, जहां उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं, रुचियों और सीखने की शैलियों के अनुसार शिक्षण गतिविधियाँ अनुकूलित की जाती हैं। यह दृष्टिकोण विद्यार्थियों को यह अवसर देता है कि वे अपनी शैक्षिक यात्रा में सक्रिय रूप से भाग लें, न कि केवल शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त करें।
इसमें निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होती हैं:
- व्यक्तिगत क्षमताओं का सम्मान: शिक्षार्थी की क्षमता, रुचियाँ और शैक्षिक जरूरतों के आधार पर पाठ्यक्रम को अनुकूलित किया जाता है।
- विकसित दृष्टिकोण: बच्चों के विकास के प्रत्येक चरण में सीखने को अनुकूलित करने के लिए विभिन्न शैक्षिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
- सहयोगात्मक शिक्षण: शिक्षार्थी और शिक्षक मिलकर ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
- विकसित शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण: पाठ्यक्रम के उद्देश्य और सामग्री शिक्षार्थी की मानसिकता, रुचियों और सीखने की गति के अनुरूप होते हैं।
एकीकृत पाठ्यचर्या (Integrated Curriculum):
एकीकृत पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों का विवेकपूर्ण मिश्रण किया जाता है। इसमें, विषय-केंद्रित, शिक्षार्थी केंद्रित और गतिविधि-केंद्रित पाठ्यक्रमों के तत्वों को एक साथ जोड़ा जाता है ताकि विद्यार्थियों को व्यापक दृष्टिकोण से अवधारणाओं को समझने का अवसर मिल सके।
मुख्य विशेषताएँ:
- विषय का समग्र दृष्टिकोण: उदाहरण के तौर पर, “सभ्यता का इतिहास” पाठ्यक्रम को इतिहास, साहित्य, कला, संगीत, और समाजशास्त्र का मिश्रण बनाकर प्रस्तुत किया जा सकता है।
- जीवन के वास्तविक दृष्टिकोण को संबोधित करना: यह पारंपरिक पाठ्यक्रमों से अलग है, क्योंकि यह विद्यार्थियों को जीवन के वास्तविक और व्यापक दृष्टिकोण से जोड़ता है, जिससे वे एकता और समग्र ज्ञान की प्राप्ति करते हैं।
- ज्ञान के एकीकृत रूप में प्रस्तुति: इससे विद्यार्थियों को एकतरफा नहीं, बल्कि बहुपरक दृष्टिकोण से अवधारणाएँ समझने का मौका मिलता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित होती हैं।
समग्र पाठ्यचर्या (Holistic Curriculum):
समग्र पाठ्यक्रम दृष्टिकोण विद्यार्थियों के संपूर्ण विकास को प्रोत्साहित करता है। इस दृष्टिकोण में विभिन्न विकासात्मक क्षेत्रों (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक) का ध्यान रखा जाता है। यह एक ऐसा वातावरण तैयार करता है, जो बच्चों को खोज और अन्वेषण की अनुमति देता है, जिससे वे सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल हो सकें।
मुख्य विशेषताएँ:
- सभी विकासात्मक क्षेत्रों का समावेश: यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक विकास को संतुलित तरीके से बढ़ावा देता है।
- प्राकृतिक और रचनात्मक शिक्षा: समग्र दृष्टिकोण में बच्चों के विकासात्मक क्षेत्रों के बीच रचनात्मकता के माध्यम से संतुलन स्थापित किया जाता है।
- प्राकृतिक शैक्षिक परियोजनाएँ: बच्चों के लिए दिलचस्प और विकासात्मक परियोजनाओं का निर्माण किया जाता है, जैसे कि सुपरमार्केट या कपड़े पहनने के उदाहरण के माध्यम से गणित और भाषा की अवधारणाओं को सिखाना।
1.5, विविध शिक्षण आवश्यकताओं वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए विचार करने योग्य बिंदु (Points to Consider for Developing Curriculum for Students with Diverse Learning Needs):
विविध शैक्षिक जरूरतों वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करते समय शिक्षकों को निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:
- विविधताओं का सम्मान: छात्रों की भिन्न-भिन्न क्षमताओं, सीखने की शैलियों और व्यक्तिगत जरूरतों को समझना और उनके अनुसार पाठ्यक्रम को अनुकूलित करना।
- समावेशिता: पाठ्यक्रम को इस तरह से तैयार किया जाए कि सभी प्रकार के छात्र, चाहे वे सामान्य हों या विशेष आवश्यकता वाले, उसमें भाग ले सकें और अपना पूरा पोटेंशियल दिखा सकें।
- लचीला दृष्टिकोण: पाठ्यक्रम में लचीलापन हो ताकि छात्रों को अपने स्वयं के सीखने की गति और शैली के अनुसार अपना विकास करने का अवसर मिल सके।
- सहायक उपकरण और संसाधन: छात्रों के लिए विशेष संसाधनों, उपकरणों और तकनीकों का प्रयोग किया जाए, जैसे कि स्पेशल एड शिक्षण विधियाँ और आडियो-विज़ुअल माध्यम, ताकि वे अधिक प्रभावी ढंग से सीख सकें।
- सकारात्मक समर्थन: विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए अतिरिक्त समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान किया जाए ताकि वे पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा कर सकें।
इन विचारों को ध्यान में रखते हुए, पाठ्यक्रम को ऐसे तरीके से विकसित किया जा सकता है, जो सभी छात्रों के लिए समावेशी और सुलभ हो, और उनकी विशेष जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो।
यह संदेश शिक्षा में विविधता को समायोजित करने और समावेशी पाठ्यचर्या को लागू करने के महत्व पर जोर देता है। इसमें यूनिवर्सल डिजाइन फॉर लर्निंग (UDL) और उसके सिद्धांतों के बारे में चर्चा की गई है, जिनका उद्देश्य सभी प्रकार के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाना है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
समावेशी पाठ्यचर्या और यूडीएल (Universal Design for Learning)
यूनिवर्सल डिजाइन फॉर लर्निंग (UDL) शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, जिसका उद्देश्य शिक्षा को सभी विद्यार्थियों के लिए अधिक सुलभ और लचीला बनाना है। यह वास्तुकला के क्षेत्र से प्रेरित है, जहाँ भौतिक बाधाओं को दूर करने के लिए डिज़ाइन किया गया था (जैसे कर्ब कट जो व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए बनाया गया था)। इसके समान, शिक्षा में UDL को लागू करने का उद्देश्य सभी प्रकार के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को पहुँच योग्य बनाना है, चाहे उनकी क्षमता, रुचियाँ या व्यक्तिगत जरूरतें कुछ भी हों।
UDL के प्रमुख सिद्धांत:
- प्रतिनिधित्व (Representation):
- यह बताता है कि हम पाठ्यक्रम की सामग्री छात्रों तक कैसे पहुँचाते हैं। विभिन्न प्रकार के मीडिया, जैसे कि टेक्स्ट, ऑडियो, वीडियो, इन्फोग्राफिक्स, आदि का उपयोग किया जा सकता है, ताकि सभी प्रकार के विद्यार्थी समझ सकें। उदाहरण के लिए, एक दृश्य विकलांगता वाले छात्र को आडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से जानकारी प्रदान करना, या किसी को उनके सुविधाजनक तरीके से जानकारी प्रस्तुत करना।
- सक्रिय भागीदारी (Engagement):
- इसमें यह विचार किया जाता है कि छात्र अपने अध्ययन में कैसे भाग लेते हैं। इसमें छात्रों को अपनी पसंद, रुचियों और गतिशीलता के आधार पर गतिविधियों और चुनौतियों का चयन करने का मौका दिया जाता है, ताकि वे अधिक प्रेरित और संलग्न रहें। इसका उद्देश्य छात्रों को अपनी शिक्षा के प्रति जागरूक और सक्रिय बनाना है।
- अभिव्यक्ति (Expression):
- छात्रों को यह समझने का अवसर देना कि उन्होंने क्या सीखा और यह कैसे व्यक्त किया जा सकता है। विभिन्न छात्रों के पास विचार और ज्ञान को व्यक्त करने के विभिन्न तरीके हो सकते हैं, जैसे कि लिखित, मौखिक, प्रेजेंटेशन या डिजिटल माध्यमों का उपयोग करना। इससे छात्रों को अपनी समझ को बेहतर तरीके से साझा करने की आज़ादी मिलती है।
यह संदेश यह स्पष्ट करता है कि प्रशिक्षकों को अपनी शिक्षण प्रक्रिया में लचीलापन, विविधता और सहयोग को कैसे शामिल करना चाहिए। इसे पढ़ते हुए, हम यह समझ सकते हैं कि शिक्षा केवल एक एकतरफा प्रक्रिया नहीं है, बल्कि एक सामाजिक और सहयोगात्मक अनुभव है, जो शिक्षार्थियों के विभिन्न दृष्टिकोणों और पृष्ठभूमियों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन की जानी चाहिए।
मुख्य बिंदु:
- ज्ञान साझा करने के लिए लचीले कार्य और उपकरण:
- शिक्षकों को ऐसे लचीले कार्य और उपकरण तैयार करने चाहिए, जो विद्यार्थियों को उनकी सोच और कार्य साझा करने का अवसर प्रदान करें। इससे न केवल छात्रों को एक दूसरे से सीखने का मौका मिलता है, बल्कि यह उनके विचारों और अनुभवों को भी प्रकट करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
- ऑनलाइन टूल जैसे Facebook, Twitter, Google Drive और अन्य सहयोगात्मक मंच छात्रों को असाइनमेंट पर चर्चा करने, विचार साझा करने और एक दूसरे की सहायता करने के लिए एक प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं।
- समूह आधारित कार्य और विशेषज्ञता का संयोजन:
- प्रशिक्षक को समूहों में काम करने के अवसर प्रदान करने चाहिए ताकि छात्र अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकें और एक-दूसरे की मदद कर सकें। यह छात्रों को अधिक सक्रिय रूप से सीखने में मदद करता है और उन्हें टीम वर्क के महत्व को समझने का अवसर देता है।
- लचीली और उत्तरदायी छात्र भूमिकाएं:
- छात्र अपनी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को अनुकूलित करने में सक्षम होना चाहिए। इससे छात्रों को यह अवसर मिलता है कि वे अपनी शिक्षा के अधिक स्वामित्व का अनुभव करें, और विभिन्न दृष्टिकोणों से चीजों को समझने में सक्षम हों।
- संसाधनों तक पहुंच और वैकल्पिक शिक्षण विधियाँ:
- यह जरूरी है कि छात्रों के पास विविध संसाधनों तक पहुंच हो, जिससे वे अपनी शिक्षा को अधिक व्यक्तिगत बना सकें। छात्रों को विभिन्न विकल्पों, अतिरिक्त सामग्री और संसाधनों के बारे में बात करने का अवसर मिलना चाहिए।
- लचीलापन और विविधता के साथ, छात्र अपनी गति से सीख सकते हैं और अपने अध्ययन के विषयों का चयन कर सकते हैं, जिससे उनकी संज्ञानात्मक और आत्म-ज्ञान में वृद्धि होती है।
- धारणाओं का प्रभाव और समावेशिता:
- प्रशिक्षकों को यह समझना चाहिए कि शिक्षण विधियाँ केवल एक तकनीकी या शैक्षिक प्रक्रिया नहीं हैं; वे छात्रों की धारणाओं और विश्वासों से प्रभावित होती हैं। अगर शिक्षक किसी छात्र को ‘वंचित’ के रूप में मानते हैं, तो यह उनके शैक्षिक अनुभव पर नकारात्मक असर डाल सकता है। समावेशिता को एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए, जहां शिक्षक और छात्र एक दूसरे से सीखते हैं, अंतर को स्वीकार करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
- सांस्कृतिक विविधता और सीखने का प्रभाव:
- छात्रों के बीच सांस्कृतिक विविधता को समझना और उसे शिक्षण प्रक्रिया में शामिल करना महत्वपूर्ण है। छात्रों के सामाजिक स्थान, संस्कृति और अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, शिक्षकों को कार्य डिज़ाइन और संचार चैनलों को अनुकूलित करना चाहिए।
- यह संस्कृति को शिक्षा के अंदर समाहित करता है और सीखने को एक जीवित प्रक्रिया बनाता है, जहां छात्र अपने सांस्कृतिक दृष्टिकोण से सीख सकते हैं और इसे एक सकारात्मक तरीके से साझा कर सकते हैं।
सारांश:
इस संदेश का प्रमुख उद्देश्य यह है कि शिक्षा एक सशक्त, लचीला, और सहयोगात्मक अनुभव होनी चाहिए, जहां छात्र न केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं, बल्कि वे विभिन्न संसाधनों और दृष्टिकोणों के साथ अपने सीखने की प्रक्रिया को अनुकूलित करते हैं। यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भरी हुई शिक्षा की एक प्रक्रिया है, जिसमें हर छात्र को अपनी ज़रूरतों और क्षमताओं के अनुसार सीखने का अवसर मिलता है।
आखिरकार, इस तरह के शिक्षण दृष्टिकोण से, छात्र अपनी शिक्षा का मालिक बनते हैं और एक-दूसरे से, तथा अपने प्रशिक्षकों से, सीखने के माध्यम से अपने विचारों और ज्ञान को साझा करते हैं।