REET 2024 Results, Understanding Normalization and Its Impact on Scores
Normalization एक बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, खासकर जब हम अलग-अलग समय या शिफ्टों में परीक्षा लेने वाले छात्रों के अंकों की तुलना करते हैं। आइए इसे एक आसान तरीके से समझते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि यह क्यों ज़रूरी है, इसके फायदे और नुक़सान क्या हो सकते हैं।
Normalization क्या है?
Normalization का मतलब है कि अलग-अलग शिफ्टों या समय पर दिए गए अंकों को एक समान स्तर पर लाया जाए ताकि उन अंकों की तुलना सही तरीके से की जा सके।
उदाहरण के तौर पर, अगर एक बच्चा सुबह की शिफ्ट में परीक्षा देता है और दूसरा बच्चा शाम की शिफ्ट में, तो हो सकता है कि दोनों के सामने अलग-अलग सवाल हों या परीक्षा की स्थिति अलग हो। इसलिए, Normalization का इस्तेमाल होता है ताकि दोनों बच्चों के अंकों को एक समान तरीके से मापा जा सके।
Normalization क्यों ज़रूरी है?
- परीक्षा की स्थिति का फर्क:
- अलग-अलग शिफ्टों में परीक्षा देने पर छात्रों को अलग-अलग माहौल या समय का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, सुबह के समय बच्चे ज्यादा ताजगी के साथ परीक्षा दे सकते हैं, जबकि शाम की शिफ्ट में बच्चे थके हुए हो सकते हैं।
- Normalization इस अंतर को समाप्त करने में मदद करता है, ताकि दोनों शिफ्टों के बच्चों के अंकों की सही तुलना की जा सके।
- विभिन्न स्तर की कठिनाई:
- कभी-कभी अलग-अलग शिफ्टों में परीक्षा का स्तर थोड़ा भिन्न हो सकता है। उदाहरण के लिए, सुबह और शाम की शिफ्ट में सवालों की कठिनाई अलग हो सकती है। Normalization के जरिए हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सभी बच्चों को समान रूप से मापा जाए, चाहे उन्होंने किसी भी शिफ्ट में परीक्षा दी हो।
- समान अवसर:
- अगर दो शिफ्टों में बच्चे अलग-अलग परीक्षाएं देते हैं और उनके अंकों की तुलना नहीं की जाती, तो यह निष्पक्ष नहीं होगा। Normalization का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी छात्रों को समान अवसर मिले, चाहे उन्होंने किसी भी शिफ्ट में परीक्षा दी हो।
Normalization के फायदे :–
- समान आधार पर तुलना:
- Normalization से हम सभी छात्रों के अंकों को एक समान स्तर पर ला सकते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि जिन बच्चों ने अलग-अलग शिफ्टों में परीक्षा दी, उनके अंकों की सही तुलना हो रही है।
- न्यायसंगत परिणाम:
- इस प्रक्रिया से सभी छात्रों को न्यायपूर्ण रूप से अंक मिलते हैं, क्योंकि परीक्षा के दौरान विभिन्न परिस्थितियाँ होती हैं, और Normalization इन सबका ख्याल रखता है।
- अन्य शिफ्टों के बच्चों से मुकाबला करने में मदद:
- Normalization बच्चों को यह सुनिश्चित करता है कि यदि उनका प्रदर्शन एक शिफ्ट में बेहतर था तो उनके अंक उसी के अनुसार सही तरीके से बढ़ाए जाएं, ताकि अन्य शिफ्टों के बच्चों से तुलना में वे पिछड़े न हों।
Normalization के नुक़सान :–
- सिस्टम में गलती हो सकती है:
- अगर Normalization प्रक्रिया ठीक से न की जाए या गलत तरीके से लागू हो, तो इससे बच्चों के अंक गलत हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी विषय में बहुत कठिन सवाल पूछे गए हों, तो उस शिफ्ट के छात्रों को बहुत ज्यादा अंक मिल सकते हैं, जो कि अन्य शिफ्टों के छात्रों के लिए अनुचित हो सकता है।
- अत्यधिक बदलाव:
- कभी-कभी Normalization में बच्चों के अंक इतने ज्यादा बदल जाते हैं कि उनका असली प्रदर्शन छिप सकता है। यह छात्रों को उनके असली प्रयास के मुकाबले ज्यादा अंक दे सकता है, जो कि सही नहीं है।
- समय और मेहनत की आवश्यकता:
- Normalization एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे सही तरीके से करने के लिए ज्यादा समय और मेहनत की आवश्यकता होती है। कभी-कभी यह प्रक्रिया परीक्षा परिणाम घोषित करने में देरी कर सकती है।
उदाहरण के तौर पर समझें:
मान लीजिए दो बच्चे हैं, राम और श्याम। राम ने सुबह की शिफ्ट में परीक्षा दी और श्याम ने शाम की शिफ्ट में। राम और श्याम दोनों के अंक एक जैसे हो सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि श्याम को रात के समय थकान हो या उसे कठिन सवाल मिले हों। अगर हम दोनों के अंकों को बिना Normalization के देखेंगे, तो ऐसा हो सकता है कि श्याम के अंक कम आ जाएं, जबकि वह उतना ही अच्छा छात्र हो जितना राम।
यहां Normalization यह सुनिश्चित करेगा कि श्याम के अंक सही तरीके से मापे जाएं और राम और श्याम की तुलना सही तरीके से हो सके।
REET 2024 Results, Normalization Scores शिफ्ट-2 और शिफ्ट-3 के लिए –
शिफ्ट-2 –
विषय | माध्य (MEAN) | एस.डी. (S.D.) |
---|---|---|
बच्चा शिक्षा शास्त्र | 14.4479 | 3.5594 |
अंग्रेज़ी-1 | 17.1471 | 4.6597 |
अंग्रेज़ी-2 | 13.0138 | 5.2167 |
गुजराती-1 | 18.2034 | 4.5909 |
गुजराती-2 | 19.5685 | 4.9205 |
हिंदी-1 | 17.6157 | 3.8065 |
हिंदी-2 | 15.741 | 4.3283 |
पंजाबी-1 | 14.1776 | 3.3131 |
पंजाबी-2 | 13.4546 | 3.5981 |
संस्कृत-1 | 14.0541 | 4.3271 |
संस्कृत-2 | 14.1569 | 4.4507 |
सिंधी-1 | 19.0476 | 4.4344 |
सिंधी-2 | 18.2431 | 4.3795 |
उर्दू-1 | 12.0568 | 4.4732 |
उर्दू-2 | 15.8769 | 4.8866 |
समाज अध्ययन | 28.5574 | 7.2878 |
गणित और विज्ञान | 33.8269 | 8.5833 |
शिफ्ट-3 –
विषय | माध्य (MEAN) | एस.डी. (S.D.) |
---|---|---|
बच्चा शिक्षा शास्त्र | 17.9798 | 3.7988 |
अंग्रेज़ी-1 | 15.7039 | 4.7579 |
अंग्रेज़ी-2 | 13.3737 | 4.1055 |
गुजराती-1 | 19.6593 | 4.3125 |
गुजराती-2 | 17.0313 | 4.8139 |
हिंदी-1 | 15.8494 | 3.9144 |
हिंदी-2 | 18.0169 | 4.2605 |
पंजाबी-1 | 13.9619 | 3.8352 |
पंजाबी-2 | 13.0062 | 3.7793 |
संस्कृत-1 | 12.3486 | 4.2204 |
संस्कृत-2 | 13.3424 | 4.6414 |
सिंधी-1 | 18.0785 | 4.9196 |
सिंधी-2 | 17.8377 | 4.6178 |
उर्दू-1 | 14.2507 | 4.8494 |
उर्दू-2 | 14.3303 | 4.8701 |
समाज अध्ययन | 23.958 | 6.7324 |
गणित और विज्ञान | 32.3221 | 7.8331 |
Normalization कैसे होता है –
1. रॉ स्कोर (Raw Scores):
“रॉ स्कोर” का मतलब है कि किसी ने परीक्षा में कितने अंक प्राप्त किए हैं। जैसे, अगर एक छात्र ने 100 में से 70 अंक हासिल किए तो उसका रॉ स्कोर 70 होगा।
2. माध्य (Mean) और एस.डी. (Standard Deviation):
- माध्य (Mean): यह बताता है कि एक विषय में सभी बच्चों के अंक औसत रूप से कितने हैं। उदाहरण के लिए, यदि 5 बच्चों के अंक 10, 20, 30, 40, और 50 हैं, तो उनके औसत अंक (Mean) की गणना इस प्रकार की जाएगी: माध्य (Mean)=10+20+30+40+505=30\text{माध्य (Mean)} = \frac{10 + 20 + 30 + 40 + 50}{5} = 30 तो औसत अंक (Mean) 30 है।
- एस.डी. (Standard Deviation): यह बताता है कि बच्चों के अंक औसत से कितने अलग हैं। अगर अंक ज्यादा अलग-अलग हैं, तो एस.डी. ज्यादा होगा। अगर अंक करीब-करीब समान हैं, तो एस.डी. कम होगा।
3. शिफ्ट-2 और शिफ्ट-3 के लिए विषयवार स्कोर:
यह डेटा दो अलग-अलग शिफ्टों (Shift-2 और Shift-3) के लिए है, और प्रत्येक शिफ्ट में बच्चों ने अलग-अलग विषयों में परीक्षा दी।
उदाहरण:
- “Child Pedagogy” (बच्चा शिक्षा शास्त्र) के लिए:
- शिफ्ट-2 में औसत अंक (Mean) = 14.44 और एस.डी. (Standard Deviation) = 3.56
- शिफ्ट-3 में औसत अंक (Mean) = 17.98 और एस.डी. (Standard Deviation) = 3.80
यहां, शिफ्ट-3 में बच्चों के अंक औसत से थोड़े ज्यादा हैं, और एस.डी. भी थोड़ा अधिक है, मतलब अंक थोड़ा ज्यादा अलग-अलग हो सकते हैं।
अन्य उदाहरण:
- अंग्रेज़ी-1 के लिए:
- शिफ्ट-2 में औसत अंक = 17.15 और एस.डी. = 4.66
- शिफ्ट-3 में औसत अंक = 15.70 और एस.डी. = 4.76
यहां, शिफ्ट-2 में औसत अंक ज्यादा हैं, लेकिन दोनों शिफ्टों में एस.डी. लगभग समान हैं, जिसका मतलब है कि बच्चों के अंक समान रूप से फैल सकते हैं।
4. “Normalization Formula” (सामान्यीकरण सूत्र):
यह सूत्र तब इस्तेमाल होता है जब हमें बच्चों के अंकों को एक समान स्तर पर लाना होता है, ताकि दोनों शिफ्टों (Shift-2 और Shift-3) के बच्चों के अंक ठीक से तुलना किए जा सकें।
यह सूत्र इस प्रकार काम करता है:
Normalization Formula–
Sij = µ+((Xij-µi)/σi)* σ
µ = Maximum Mean of raw score of subject/shift.
σ = Standard Deviation of raw scores of subject/shift having maximum mean.
Xij = Raw Marks of jth candidate in ith subject/shift.
Sij = scaled Marks of jth candidate in ith subject/shift.
µi = Mean of raw scores of ith subject/shift.
σi = Standard Deviation of raw scores of ith subject/shift
आसान भाषा में समझाएं:
- माध्य (Mean): बच्चों के अंकों का औसत।
- एस.डी. (Standard Deviation): यह बताता है कि बच्चों के अंक औसत से कितने ज्यादा या कम हो सकते हैं।
- रॉ स्कोर (Raw Score): वह अंक जो बच्चे ने सीधे परीक्षा में प्राप्त किए हैं।
- सामान्यीकरण (Normalization): बच्चों के अंकों को एक समान स्तर पर लाने की प्रक्रिया, ताकि हर बच्चे के अंक सही ढंग से मापे जा सकें, चाहे वह अलग-अलग समय पर परीक्षा दे रहे हों।
तो, यह सारी जानकारी इसलिये दी जाती है ताकि हम सभी बच्चों के अंकों को सही तरीके से तुलना कर सकें, चाहे वह अलग-अलग शिफ्टों में परीक्षा दे रहे हों।
निष्कर्ष:
- Normalization ज़रूरी है ताकि अलग-अलग शिफ्टों में परीक्षा देने वाले बच्चों के अंकों की तुलना ठीक से हो सके और उन्हें समान अवसर मिले।
- इसके फायदे यह हैं कि यह निष्पक्ष परिणाम देता है और बच्चों के प्रदर्शन को सही तरीके से मापता है।
- हालांकि, नुक़सान यह हो सकता है कि अगर प्रक्रिया ठीक से लागू न हो तो अंक गलत हो सकते हैं, और कभी-कभी यह बहुत अधिक बदलाव भी कर सकता है।
समझने की बात यह है कि Normalization का उद्देश्य यह है कि सभी छात्रों को उनके सही प्रयास के हिसाब से अंक मिलें, चाहे उन्होंने कोई भी शिफ्ट में परीक्षा दी हो।
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