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Special Diploma, IDD, Paper -1, INTRODUCTION TO DISABILITIES (विकलांगताओं का परिचय), Unit-1

Unit 1: Understanding Disability (विकलांगता को समझना )

Unit 1: Understanding Disability
1.1 Historical perspectives of Disability – National and International & Models of Disability;
1.2 Concept, Meaning and Definition – Handicap, Impairment, Disability, activity limitation, habilitation, and Rehabilitation;
1.3 Definition, categories (Benchmark Disabilities) & the legal provisions for PWDs in India;
1.4 An overview of Causes, Prevention, prevalence & demographic profile of disability: National and Global;
1.5 Concept, meaning, and importance of Cross Disability Approach and interventions;

यूनिट 1: विकलांगता को समझना
1.1 विकलांगता का ऐतिहासिक दृष्टिकोण – राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एवं विकलांगता के मॉडल;
1.2 संकल्पना, अर्थ और परिभाषा – हैंडिकैप, अपंगता, विकलांगता, क्रियावली की सीमा, सहायक चिकित्सा और पुनर्वास;
1.3 विकलांगता (बेंचमार्क विकलांगता) की परिभाषा, श्रेणियां और भारत में PWDs के लिए कानूनी प्रावधान;
1.4 विकलांगता के कारण, निवारण, प्रसार और जनसांख्यिकी की प्रोफाइल का अवलोकन: राष्ट्रीय और वैश्विक;
1.5 क्रॉस विकलांगता दृष्टिकोण और हस्तक्षेपों की संकल्पना, अर्थ और महत्व;


इकाई 1.1: दिव्यांगता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय) एवं दिव्यांगता के मॉडल

Unit 1.1: Historical Perspectives of Disability – National and International & Models of Disability

दिव्यांगता समाज में अलग-थलग माने जाने वाला समूह रहा है। प्राचीन साहित्य का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि दिव्यांगों की दशा उस समय बहुत सोचनीय थी। उस समय उन्हें राक्षस, बुरी आत्मा तथा पूर्व जन्म का पाप कहा जाता था। उन्हें समाज से अलग तथा वंचित कर दिया जाता था। समाज द्वारा प्रारंभ से ही दिव्यांगता को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा गया है या फिर उनके प्रति सहानुभूति पूर्ण रवैया रखा गया है। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगों के विकास के क्षेत्र में परिवर्तन देखने को मिला। धीरे-धीरे लोगों ने दिव्यांगता के प्रति रुचि लेना प्रारंभ कर दिया तथा अधिनियम, नीतियों और दिव्यांगों से संबंधित दस्तावेज़ में उनके शिक्षण, प्रशिक्षण में, पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य किया। लोगों का ध्यान दिव्यांगों के शिक्षण-प्रशिक्षण पर गया।

समय परिवर्तन के साथ-साथ लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया जिसमें शिक्षा शास्त्री, धर्मावलंबी, महात्मा, ऋषि-मुनि आदि लोगों का विशेष योगदान रहा। इन्होंने भी दिव्यांगों को समाज का मुख्य अंग माना और कार्य करना प्रारंभ कर दिया। दिव्यांगता के क्षेत्र में क्रमबद्ध विकास को हम निम्नलिखित बिंदुओं से स्पष्ट कर सकते हैं –


Special Diploma, IDD, Paper -1, INTRODUCTION TO DISABILITIES (विकलांगताओं का परिचय), Unit-1
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16वीं शताब्दी | 16th Century

16वीं शताब्दी में पोप ग्रेगरी प्रथम ने धामी वंश जारी कर अपने अनुयायियों को दिव्यांग जनों की सेवा करने का आदेश दिया। फिर भी उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी।


17वीं शताब्दी | 17th Century

17वीं शताब्दी में दिव्यांग जनों की शिक्षा दीक्षा एवं देखरेख की व्यवस्था की जाने लगी। दर्शन शास्त्री एन ए डिस्कार्ट ने सीखने के सिद्धांत की नींव रखी। इसी काल में पाहो पीन्सली नामक एक स्पेनिश वैज्ञानिक ने बधिर बच्चों को लिखना-पढ़ना प्रारंभ किया। इसी काल में सूरदास और अन्नास का भी वर्णन मिलता है, जो जनों की बदलती स्थिति का सूचक है।


18वीं शताब्दी | 18th Century

इस युग को पुनर्वास की अवस्था भी कहते हैं, जो कि सामाजिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप आती है। इस काल में शोध एवं अनुसंधान भी प्रारंभ किए गए। राजनीतिक सुधारकों ने शिक्षा और स्वास्थ्य में दिव्यांगों की दक्षता को जोड़ने का सफल प्रयास किया।
इसी काल में वाणी एवं भाषा संबंधी विकास सर्वप्रथम अंबे चार्ल्स द्वितीय एवं सैमुअल हार्वे ने हस्त चलित संकेतों की एक पद्धति विकसित की। इन्हें सांकेतिक पद्धति का जनक कहा जाता है।
इसके उपरांत 1748 ईस्वी में डॉ. दीड रिट ने दृष्टि बाधित व्यक्तियों की शिक्षा प्रारंभ की।
सर वैलेंटाइन ने सन 1784 ईस्वी में प्रथम अंध विद्यालय खोला।


19वीं शताब्दी | 19th Century

19वीं शताब्दी दिव्यांग जनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही। इस शताब्दी में क्रमबद्ध तरीके से दिव्यांग बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास किए गए।
इसी शताब्दी में दिव्यांग जनों हेतु शिक्षा के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति लुइस ब्रेल का जन्म 1809 ईस्वी में हुआ।
1870 ईस्वी में ब्रिटेन के लोग दिव्यांगों की शिक्षा के लिए जागरूक हुए।

इस शताब्दी में दिव्यांग जनों हेतु महत्वपूर्ण कार्य करने वालों में प्रमुख नाम:

  • एलेग्जेंडर ग्राहम बेल (अमेरिका) – 1887 से 1922 ईस्वी तक
  • अल्फ्रेड बिनेट (फ्रांस) – 1857 से 1910 ईस्वी तक
  • मैडम मरिया मोंटेसरी (इटली) – 1870 से 1952 ईस्वी तक

भारत में सन 1857 में श्रीमती एनी शार्प ने अमृतसर में प्रथम अंध विद्यालय की स्थापना की।


20वीं शताब्दी | 20th Century

इस शताब्दी के प्रारंभ में मानसिक तौर पर पिछड़े बालकों के लिए विद्यालय खोले गए, परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। कुछ समय पश्चात श्रवण बाधित एवं दृष्टि दोष वाले बच्चों के लिए एक दिवसीय विद्यालय खोले गए। इस शताब्दी में भी आंशिक निशक्त व्यक्तियों के लिए तो विद्यालय थे, परंतु उनमें पूर्णतया सुविधा नहीं थी।

  • 1903 ई. – लंदन कमीशन और इस क्षेत्र में कार्य करने वाली कुछ उत्तरदाई संस्थाओं ने मिलकर मंदबुद्धि बालकों के लिए प्रावधान बनाए और उनकी शिक्षा प्रारंभ की।
  • 1913 ई. – भारत के कई राज्यों में दृष्टिहीन, मूक-बधिर बच्चों के लिए विद्यालय खोले गए।
  • 1918 ई.मेंटल डेफिशियेंसी बिल के रूप में रॉयल कमीशन का गठन।
  • 1929 ई. – डॉक्टर कुंजित वर्ल्ड द्वारा स्कूल फॉर द ब्लाइंड के माध्यम से मद्रास एसोसिएशन की स्थापना।
  • 1936 ई. – मंदबुद्धि बच्चों के लिए सरकारी मानसिक अस्पताल की स्थापना।
  • 1950 ई. – अक्षमता को अलग से परिभाषित किया गया।
  • 1954 ई. – मुंबई में एक नियमित विद्यालय में पहली बार विशेष शिक्षा प्रारंभ हुई।
  • 1965-66 ई.एजुकेशन कमीशन रिपोर्ट के अनुसार दिव्यांग बच्चों को सामान्य विद्यालयों में समायोजन पर बल।
  • 1968 ई. – राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विशेष विद्यालय एवं समेकित विद्यालय की बात।
  • 1972 ई.लुइस ब्रेल मेमोरियल अनुसंधान केंद्र की स्थापना।
  • 1986 ई.नई शिक्षा नीति में दिव्यांग जनों को मुख्यधारा में शामिल करने की बात।
  • 1987 ई.भारत में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम पारित।
  • 1992 ई. – भारत सरकार ने भारतीय पुनर्वास परिषद की स्थापना की।
  • 1995 ई.निशक्तजन अधिनियम (PWD Act) पारित, यह अब तक का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास रहा।
  • 1999 ई.राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (National Trust Act) बना, जिसमें स्वलीनता, बहु-विकलांगता को शामिल किया गया।

इस प्रकार सरकारी एवं गैर-सरकारी तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने दिव्यांग जनों के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। इन प्रयासों से दिव्यांग जनों को पुनर्वास सेवाएँ प्राप्त हुईं और वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाए। इसके साथ-साथ उन्हें बाधा मुक्त वातावरण भी प्रदान किया जा रहा है। समय के अनुसार उनके दृष्टिकोण, रुचि, व्यवहार आदि में भी परिवर्तन आया है। आधुनिक तकनीकों ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।


विकलांगता के मॉडल | Models of Disability

नैतिक और / या धार्मिक मॉडल: भगवान के एक कार्य के रूप में विकलांगता
चिकित्सा मॉडल: विकलांगता के रूप में एक बीमारी
सामाजिक मॉडल: विकलांगता एक सामाजिक रूप से निर्मित घटना
पहचान मॉडल: विकलांगता एक पहचान के रूप में
मानवाधिकार मॉडल: विकलांगता एक मानवाधिकार के मुद्दे के रूप में
सांस्कृतिक मॉडल: विकलांगता एक संस्कृति के रूप में
आर्थिक मॉडल: विकलांगता उत्पादकता के लिए एक चुनौती के रूप में


इकाई 1.2: अवधारणा, अर्थ और परिभाषा – विकलांगता, हानि, अक्षमता, गतिविधि सीमा, सक्षमीकरण और पुनर्वास

Unit 1.2: Concept, Meaning and Definitions – Disability, Impairment, Handicap, Activity Limitation, Empowerment and Rehabilitation

क्षति (Impairment)

अर्थ:
शरीर रचना, मनोवैज्ञानिक ढाँचे या क्रियात्मकता में किसी भी प्रकार की कमी या असमानता को क्षति कहा जाता है। यह सामान्यतः अंग स्तर पर होती है, जैसे कि किसी शारीरिक या मानसिक कार्य में कमी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (1976) के अनुसार:
“क्षति का अर्थ किसी सैद्धांतिक कारण से सही संरचना एवं प्रकटन अथवा अंग या कार्यात्मक प्रणाली में असमानता का होना है। क्षति अंगीय स्तर पर बाधाओं को संदर्भित करती है।”


अक्षमता (Disability)

अर्थ:
क्षति के कारण उत्पन्न ऐसी अवस्था, जिसमें व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता में कमी या परिवर्तन हो जाता है। यह व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को सामान्य ढंग से करने की क्षमता को प्रभावित करती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार:
“अक्षमता क्षति के परिणामस्वरूप व्यक्ति द्वारा की जाने वाली क्रियाओं या कार्यात्मक प्रदर्शन को संदर्भित करती है।”


विकलांगता (Handicap)

अर्थ:
विकलांगता उस दशा को कहा जाता है, जो क्षति एवं अक्षमता के कारण उत्पन्न होती है, जिसमें व्यक्ति शारीरिक या मानसिक भूमिकाओं को सामान्य व्यक्ति की तुलना में कम निभा पाता है। यह सामाजिक, आर्थिक, आयु या लिंग के आधार पर सीमाएं उत्पन्न करती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार:
“विकलांगता व्यक्ति की क्षति एवं अक्षमता के परिणामस्वरूप असुविधाजनक अनुभवों को प्रदर्शित करती है, जिससे उसके आसपास अनुकूल अंतःक्रिया करने में कठिनाई होती है।”


I.C.I.D.H. के अनुसार (International Classification of Impairments, Disabilities, and Handicaps)

  • Impairment (क्षति):
    कोई भी मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या संरचनात्मक असामान्यता जो अंग विशेष को प्रभावित करती है।
  • Disability (अक्षमता):
    क्षति के कारण व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता में आने वाली कमी या सीमा।
  • Handicap (विकलांगता):
    अक्षमता के कारण व्यक्ति को सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत जीवन में आने वाली बाधाएं।

गतिविधि सीमा और पुनर्वास

Activity Limitation and Rehabilitation

गतिविधि सीमा (Activity Limitation)

अर्थ:
गतिविधि सीमाएं वे कठिनाइयाँ होती हैं, जो व्यक्ति को दैनिक जीवन की गतिविधियों को पूरा करने में होती हैं।

भागीदारी प्रतिबंध (Participation Restriction):
वे समस्याएं होती हैं, जिनका सामना व्यक्ति को जीवन की परिस्थितियों में भाग लेने में करना पड़ता है।


सक्षमीकरण (Habilitation)

अर्थ:
सक्षमीकरण वह प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को ऐसे कौशल प्राप्त करने, बनाए रखने या सुधारने में सहायता करना है जो उन्होंने अभी तक नहीं सीखे हैं।

उदाहरण:

  • सेरेब्रल पाल्सी वाला बच्चा बैठने का तरीका सीखने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट की सहायता लेता है।
  • कोई बच्चा स्पीच थेरेपी से बोलने की ध्वनियाँ सीखता है।

पुनर्वास (Rehabilitation)

अर्थ:
पुनर्वास का उद्देश्य उन क्षमताओं को फिर से प्राप्त करना है जो किसी बीमारी, चोट या विकलांगता के कारण खो गई थीं या प्रभावित हुई थीं।

उदाहरण:

  • एक 30 वर्षीय धावक जो चोट के कारण लंगड़ा कर चलने लगा है, फिजियोथेरेपी से दौड़ने की अपनी पुरानी क्षमता को पुनः प्राप्त करता है।

इकाई 1.3: विकलांग व्यक्तियों के लिए परिभाषा, श्रेणियाँ (बेंचमार्क विकलांगता) एवं भारत में विधिक प्रावधान

Unit 1.3: Definition, Categories (Benchmark Disabilities) & Legal Provisions for PWDs in India

भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI)

Rehabilitation Council of India (RCI)

  • 1981 को अंतरराष्ट्रीय विकलांग वर्ष घोषित किया गया। इसके बाद भारत सरकार ने विकलांगों के पुनर्वास पर विशेष ध्यान देना शुरू किया।
  • उस समय देश में प्रशिक्षित मानव संसाधनों की भारी कमी थी और पुनर्वास सेवाएं बहुत सीमित थीं।
  • कई संस्थाएं प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही थीं लेकिन पाठ्यक्रमों में एकरूपता नहीं थी।

भारतीय पुनर्वास परिषद की स्थापना

  • भारत सरकार ने 6 मई 1986 को RCI के गठन का निर्णय लिया।
  • दायित्व:
    • प्रशिक्षण नीति और कार्यक्रम बनाना।
    • विशेष शिक्षा और पुनर्वास क्षेत्र में कार्यरत प्रोफेशनल्स के लिए प्रशिक्षण मानदंड तय करना।
    • प्रशिक्षण संचालित करने वाले संस्थानों को मान्यता देना।
    • पुनर्वास व्यवसायियों को केंद्रीय पंजिका में पंजीकृत करना।
    • विशेष शिक्षा और पुनर्वास से संबंधित अनुसंधान को बढ़ावा देना।
  • 1991 में संसद में विधेयक लाया गया।
  • 1 दिसंबर 1992 को राष्ट्रपति की मंजूरी।
  • 22 जून 1993 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा अधिसूचना जारी।
  • इसे “भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992” कहा गया।

परिषद को वैधानिक अधिकार देने तथा उसके कार्यों को प्रभावी ढंग से संपादित करने के लिए 1991 में संसद में एक विधेयक प्रस्तुत किया गया, जिसे भारत के राष्ट्रपति ने 1 दिसंबर 1992 को मंजूरी दी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार ने अधिनियम के रूप में 22 जून 1993 को इसकी अधिसूचना जारी की। इसे भारतीय पुनर्वास परिषद 1992 के नाम से जाना जाता है।

इस प्रकार भारतीय पुनर्वास परिषद 1986 में एक पंजीकृत संस्था के रूप में आई। जिसे 22 जून 1993 में वैधानिक निकाय का दर्जा प्राप्त हुआ।

विकलांगों के पुनर्वास एवं शिक्षा प्रशिक्षण के क्षेत्र में भारतीय पुनर्वास परिषद दुनिया में अपनी तरह की अकेली संस्था है।

इसका मुख्य उद्देश्य विकलांगों के जीवन चक्र की आवश्यकताओं को पूरा करना है जो इस प्रकार हैं:-

शारीरिक चिकित्सा एवं पुनर्वास

  • शैक्षिक पुनर्वास
  • व्यवसायिक पुनर्वास
  • सामाजिक पुनर्वास

भारतीय पुनर्वास परिषद के उद्देश्य :-
भारतीय पुनर्वास परिषद का मुख्य उद्देश्य निशक्त का क्षेत्र में आवश्यकता के अनुरूप मानव संसाधनों का विकास करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारतीय पुनर्वास परिषद निम्नलिखित कार्य करती है।

  1. निशक्त जनों के पुनर्वास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं नीतियों को सुनियोजित करना।
  2. भारतीय पुनर्वास परिषद एक उच्च स्तरीय प्रशिक्षण पाठ्यचर्या संचालित एवं विकलांगों के साथ कार्यरत लोगों के लिए पुनर्वास के क्षेत्र में व्यवसायीकरण करना।
  3. निशक्त व्यक्तियों से संबंधित विभिन्न प्रकार के व्यवसायिकों को शिक्षा प्रशिक्षण के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करना।
  4. इन मानकों को देश भर के सभी प्रशिक्षण संस्थान में सामान्य रूप से नियमित करना।
  5. निशक्तजन मृत्यु के पुनर्वास के क्षेत्र में डिग्री / डिप्लोमा / परास्नातक डिप्लोमा / सर्टिफिकेट प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थानों / विश्वविद्यालयों को मान्यता प्राप्त करना और जहां मानक के अनुरूप कार्य हो रहा है वहां मान्यता रद्द करना।
  6. विश्वविद्यालय / स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा परस्पर आधार पर प्रदान की गई डिग्री / डिप्लोमा / सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम को मान्यता प्रदान करना।
  7. केंद्रीय स्तर पर पुनर्वास के क्षेत्र में मान्यता प्राप्त व्यक्तियों का लेखा-जोखा रखना तथा उन्हें देश भर के किसी भी भाग में कार्य करने की मान्यता देना।
  8. उन संस्थानों से सहयोग और सामान्य से रखना तथा उन्हें प्रोत्साहित करना जो निशक्तजनों के पुनर्वास में सतत शिक्षा प्रदान कर रही हैं।

भारतीय पुनर्वास परिषद को पुनर्वास शिक्षा में शोध करने का उत्तरदायित्व भी है। भारतीय पुनर्वास परिषद पुनर्वास के क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम अथवा विभिन्न प्रकार की विकलांगता के क्षेत्र में स्वतः पाठ्यक्रमों का संचालन नहीं करती है। इसके अंतर्गत मान्यता प्राप्त संस्थाएं शिक्षण तथा प्रशिक्षण द्वारा पुनर्वास के क्षेत्र में मानव संसाधनों का विकास कर रही हैं। यह विभिन्न प्रकार की कार्यशालाओं, सम्मेलनों के माध्यम से क्रमबद्ध रूप से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनर्वास के क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों / व्यवसायिकों से राष्ट्रीय के ज्ञान और कौशल में वृद्धि करने का कार्य करती है।

निशक्तजन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995
Person with Disability (Equal opportunity, Full participation Protection of rights) Act-1995
निशक्तजन अधिनियम एशिया और प्रशांत क्षेत्र संबंधी आर्थिक और सामाजिक आयोग द्वारा निशक्त व्यक्तियों की एशियाई और प्रशांत क्षेत्र शताब्दी 1993-2002 को आरंभ करने के लिए 1 दिसंबर से 5 दिसंबर 1992 को पेंइचिग में बुलाए गए अधिवेशन में एशियाई और प्रशांत क्षेत्र में निशक्त व्यक्तियों की पूर्ण भागीदारी और समानता संबंधी उद्घोषणा को अंगीकृत करने के पश्चात अस्तित्व में आया।
संसद के दोनों सदनों द्वारा लोकसभा में 12 दिसंबर 1995 और राज्यसभा में 22 दिसंबर 1995 को पारित हुआ। यह अधिनियम 7 फरवरी 1996 को लागू किया गया। इस अधिनियम में 14 अध्याय हैं।

  1. प्रारंभिक : प्रारंभिक अध्याय में मुख्यता विकलांगताओं के प्रकारों और उनकी परिभाषा ऊपर चर्चा की गई है। इसके साथ ही साथ इस अध्याय में निशक्तजन के नियोजन, पुनर्वास, रोजगार, संबंधी संप्रत्यय की व्याख्या की गई है। यह अधिनियम सात प्रकार की विकलांगताओं को दर्शाता है।
    • दृष्टिबाधित
    • अल्प दृष्टि
    • कुष्ठ रोग
    • श्रवण बाधित
    • चलन निशक्तता
    • मानसिक मंदता
    • मानसिक रुग्णता

इन सातों प्रकार की विकलांगताओं को अध्याय में परिभाषित भी किया गया है।

2. केंद्रीय समन्वय समिति:
दूसरे अध्याय में मुख्यता बताया गया है कि केंद्र सरकार एक केंद्रीय समन्वय समिति का गठन करेगी जो इस अधिनियम के अंतर्गत दी गई शक्तियों की सहायता से अधिनियम की शर्तों और प्रावधानों का पालन करने का कार्य करेगी। इस समिति का गठन निम्न सदस्यों को मिलाकर किया जाएगा।
केंद्रीय सरकार के कल्याण विभाग का मंत्री इस समिति का पदेन अध्यक्ष होगा एवं केंद्रीय सरकार के कल्याण विभाग का राज्यमंत्री उपाध्यक्ष होगा।
इस समिति में कुल 23 सदस्य होते हैं और कार्यकारी समिति हर तीसरे माह बैठक आयोजित करती है, जिसमें से पांच व्यक्ति निशक्तता से ग्रसित होते हैं।

3. राज्य समन्वय समिति:
अधिनियम के अनुसार प्रत्येक राज्य एक राज्य समन्वय समिति का गठन करेगा, जो इस कानून के तहत अधिकारों के अनुसार कार्य करती है। राज्य के समाज कल्याण मंत्री, विकलांग कल्याण मंत्री इस समिति के अध्यक्ष होंगे। इस समिति की बैठक 6 महीने पर होती है, जिसमें गतिविधियों के क्रियान्वयन पर विचार किया जाता है।

4. निशक्तता का निर्धारण एवं शीघ्र हस्तक्षेप:
निशक्त जन अधिकार अधिनियम के इस अध्याय में बताया गया है कि निशक्तता की शीघ्र पहचान एवं निवारण हेतु सरकारी अपने पास उपलब्ध संसाधनों के अनुसार निम्न कृतियों को कर सकती है:

  • विकलांगता होने के कारणों से संबंधित सर्वेक्षण, खोज और अनुसंधान का दायित्व।
  • विकलांगता के रोकथाम के विभिन्न तरीकों को प्रोत्साहित करना।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना।
  • सामाजिक कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी, बालवाड़ी, कार्यकत्रियों के माध्यम से विकलांगता के प्रति जागरूक करना।
  • निशक्तता के निवारण हेतु जन जागरण के कार्यक्रमों का संचालन करना।
  • प्रिंट, मीडिया, रेडियो, टेलीविजन के माध्यम से जनसाधारण तक निवारण के उपायों को पहुंचाना।
  • स्वास्थ्य सुरक्षा, साफ-सफाई के प्रति जन जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करना।

5. शिक्षा (Education):
केंद्र तथा राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित कराना होगा कि हर अक्षम बच्चे को 18 वर्ष की उम्र तक मुफ्त और समुचित शिक्षा मिले। अक्षम छात्रों को सामान्य विद्यालयों के साथ जोड़ें और जिन्हें विशेष शिक्षा की जरूरत है, सरकारी तथा निजी विद्यालयों में अक्षम बच्चों के लिए व्यवसाय प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराएं।
सरकार अक्षम बच्चों को परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराएगी और उन्हें छात्रवृत्ति देगी। अक्षम बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में आवश्यक बदलाव करेगी।

6. रोजगार (Employment):
सरकार ऐसे पदों की पहचान करेगी, जो अक्षमता से ग्रसित व्यक्तियों के लिए आरक्षित किए जा सकते हैं। आरक्षण 3% से कम नहीं होगा। प्रत्येक क्षमताओं के लिए 1% होगा। दृष्टिहीन, श्रवण बाधित, शारीरिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए सरकारी कार्यालयों में पदों को चिन्हित करेगी।

7. सकारात्मक कार्यवाही:
सरकार निशक्त जनों की सहायता हेतु सहायक यंत्र एवं अन्य साधन जो इन्हें आत्मनिर्भर बनाने में सहायक हो, भवन निर्माण, व्यवसाय, विशेष विद्यालयों, और मनोरंजन आदि को स्थापित करेगी और अक्षम व्यक्तियों को रियायती दरों पर भूमि आवंटित करने की योजना बनाएगी।

8. विभेद ना किया जाना:

  • सरकारी परिवहन सुविधाओं एवं व्यवस्थाओं का आकलन करने के लिए विशेष उपाय अपनाएगी, जिससे कि अक्षम बालक स्वतंत्रपूर्वक सरकारी परिवहन में आ जा सके।
  • रेल के डिब्बे, बस, जलयान, वायुयान को इस तरह से बनाया जाए कि वह आसानी से उन तक पहुंच सके।
  • दृष्टिहीन या अल्प दृष्टि वाले व्यक्तियों के लिए जेबरा क्रॉसिंग की व्यवस्था करना।
  • रैंप का निर्माण।
  • सार्वजनिक स्थानों पर लिफ्ट एवं ब्रेल प्रतीकों की व्यवस्था करना।

9. अनुसंधान एवं मानव संसाधन विकास:
निशक्तता के क्षेत्र में अनुसंधान एवं कार्यक्रम संचालित किए जाने की नितांत आवश्यकता है। इसके अंतर्गत फैक्ट्रियों एवं कार्यालयों में निशक्तता से ग्रसित बच्चों के लिए अनुकूलन संरचनात्मक विशेषताओं के विकास के लिए अनुसंधान कार्य किए जाएंगे। सरकार द्वारा सहायक उपकरणों का विकास रोजगार कार्यक्रम की पहचान एवं कार्यालय में सुधार करने हेतु अनुसंधान किए जाएंगे। साथ ही साथ सरकार द्वारा विद्यालयों एवं अन्य विश्वविद्यालयों, व्यवसाय दिलाने वाली संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी, जिससे यह संगठन विशेष शिक्षा, पुनर्वास तथा मानव संसाधन विकास पर अनुसंधान कर सकें।

10. निशक्त व्यक्तियों के लिए संस्थाओं को मान्यता:
ऐसे व्यक्ति या संस्थाएं जो अक्षम व्यक्ति के लिए कार्यरत हैं, उन्हें इस विधेयक के अंतर्गत आवेदन करना होगा। यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के प्रारंभ होने के ठीक पूर्व से निशक्त जनों हेतु संस्था का संचालन कर रहा है, तो अधिनियम के प्रारंभ होने से 6 माह तक का संचालन चालू रखा जा सकता है। और इस छह माह की अवधि में संस्था द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन कर दिया जाता है, तो आवेद चालू रखा जा सकता है। निर्णय लेने तक संस्था का संचालन जारी रहेगा।

11. गंभीर रूप से निशक्त व्यक्तियों हेतु संस्था:
निशक्तजन अधिनियम में बताया गया है कि प्रत्येक सरकार गंभीर रूप से निशक्त व्यक्तियों हेतु संस्थाओं का संचालन कर सकती है। यदि कोई संस्था पूर्व से ही गंभीर रूप से निशक्तता से ग्रसित व्यक्तियों हेतु कार्य कर रही है, तो राज्य सरकार उसे इस अधिनियम के अंतर्गत मान्यता प्रदान कर सकती है। सामान्यत: इस अधिनियम के अंतर्गत उन्हें संस्थाओं को मान्यता प्रदान की जाएगी, जो अधिनियम के नियमों और शर्तों का पूर्णतः पालन करेंगी।

12. निशक्त व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त एवं आयुक्त:
केंद्र सरकार को विधेयक लागू करने के लिए एक मुख्य आयुक्त को नियुक्त करना होगा। मुख्य आयुक्त एकाधिक आयुक्तों के कार्य में समन्वय स्थापित करेगा और केंद्र सरकार द्वारा किए गए फंड के उपयोग को जांचेगा। राज्य स्तर पर आयुक्तों की भी समान जिम्मेदारी होगी, जो निशक्त व्यक्तियों के कल्याण और अधिकारों की रक्षा करने के लिए सरकार द्वारा निर्गत कानूनों, निर्देशों को लागू न होने से संबंधित शिकायतों को सुनेंगे।

13. सामाजिक सुरक्षा:
इस अधिनियम के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी सरकारें अपने पास उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकलांग व्यक्ति हेतु कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं एवं संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती हैं। निशक्त जनों हेतु बीमा योजना का संचालन किया जाएगा। ऐसे निशक्तजन जो विशेष रोजगार कार्यक्रमों में 2 वर्ष की अवधि से अधिक समय से पंजीकृत हैं, एवं उन्हें अभी तक रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जा सका है, उनके लिए बेरोजगारी भत्ता की व्यवस्था की जाएगी।

14. अन्य:
इस अधिनियम के अंतर्गत निशक्त जनों हेतु उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग यदि कोई व्यक्ति छलपूर्वक करता है या उपभोग करने का प्रयास करता है, तो उसे 2 वर्ष का कारावास एवं 20,000 तक के जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे कानून को लागू करने के लिए मुख्य अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अंतर्गत लोक सेवक समझा जाएगा। अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए अधिसूचना जारी कर आवश्यकता अनुसार नियम बनाए जा सकते हैं।

RPWD ACT – आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016:
पीडब्ल्यूडी एक्ट 1995 के स्थान पर आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 लाया गया। आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में पीडब्ल्यूडी एक्ट 1995 में मौजूदा विकलांगता के 7 प्रकारों से बढ़कर 21 प्रकार कर दिए गए हैं और साथ ही यह भी सुनिश्चित कर दिया गया कि केंद्र सरकार के पास और विकलांगता के प्रकार जोड़ने की शक्ति भी होगी।

वर्ष 2016 में संसद के द्वारा पारित कर दिया गया, जिसको लागू 15 जून 2017 से किया गया। इस आर पीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में पीडब्ल्यूडी एक्ट 1995 की जगह ली।

आरपीडब्ल्यूडी 2016 में 21 विकलांगताओं का वर्णन है।

  1. अंधापन
  2. कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति
  3. कम दृष्टि
  4. लोकोमोटर विकलांगता
  5. बौद्धिक विकलांगता
  6. मस्कुलर विकलांगता
  7. बेसिक सीखने की क्षमता
  8. भाषण और भाषा विकलांगता (स्क्)
  9. हीमोफीलिया
  10. बहरापन
  11. ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार
  12. सुनवाई हानि
  13. बौनापन
  14. मानसिक बीमारी
  15. सेरेब्रल बीमारी
  16. जीर्ण तंत्रिका संबंधी बीमारी
  17. मल्टीपल स्क्लेरोसिस
  18. थैलेसीमिया
  19. सिकलसेल रोग
  20. एसिड अटैक लोग
  21. पार्किंसंस रोग

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में पहली बार भाषण और भाषा विकलांगता को जोड़ा गया है, इसमें एसिड अटैक को भी शामिल किया गया है। तथा बीमारी थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, सिकलसेल रोग भी पहली बार शामिल किए गए हैं। आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में सरकार के पास यह अधिकार है कि वह अन्य किसी विकलांगता को इस सूची में शामिल कर सकेंगे।

उपर्युक्त सरकारों पर जिम्मेदारी भी डाली गई है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विकलांग व्यक्ति दूसरों के साथ समान रूप से अधिकारों का आनंद ले सकें।

इस एक्ट के तहत उच्च शिक्षा, सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा, भूमि के आवंटन में भी आरक्षण होगा, गरीबी उन्मूलन योजना का लाभ होगा।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 के अंतर्गत 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच बेंचमार्क विकलांगता वाले प्रत्येक बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार दिया जाएगा।

प्रधानमंत्री सुलभ भारत अभियान को मजबूत करने के लिए निर्धारित समय सीमा में सरकारी भवनों में सुलभता की जाएगी।

बेंचमार्क विकलांगता वाले जो भी व्यक्ति होंगे, उनके लिए सरकारी संस्थानों में रिक्तियों का आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% किया जाएगा।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में जिला न्यायालय द्वारा संरक्षकता प्रदान करने के प्रावधान हैं।

विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त के कार्यालय को मजबूत किया जाएगा, जिन्हें अब दो आयुक्तों और एक सलाहकार समिति द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में विकलांग राज्य आयुक्तों के कार्यालयों को मजबूती प्रदान की जाएगी, जिन्हें एक सलाहकार समिति द्वारा सहायता भी प्राप्त होगी।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 के अंतर्गत विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के लिए मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त शिकायत निवारण एजेंसियों के रूप में कार्य करेंगे तथा अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी भी करेंगे।

आरपीडब्ल्यूडी अधिनियम की चिंताओं को दूर करने के लिए राज्य सरकार द्वारा जिला स्तरीय समितियों का गठन किया जाएगा, और संविधान और ऐसी समितियों के कार्यों का विवरण नियमों में राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में विकलांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। इसके लिए राष्ट्रीय और राज्य कोष का निर्माण किया जाएगा, और साथ ही ट्रस्ट फंड को राष्ट्रीय कोष के साथ सदस्यता दी जाएगी।

इस विधेयक में विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए मजबूती से दंड का प्रावधान दिया जाएगा। कानून का उल्लंघन करने के लिए दंड का प्रावधान होगा।

आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 अधिनियम का उल्लंघन करने से संबंधित मामलों के लिए सभी जिलों में विशेष न्यायालयों को नामित किया जाएगा।


National Trust Act-1999 (राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999)
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा संचालित अधिनियम है। इसे राष्ट्रीय (मानसिक मंदता, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, शालीनता एवं विकलांगता ग्रस्त का कल्याण) न्यास अधिनियम 1999 भी कहा जाता है। इस अधिनियम के अंतर्गत उक्त चारों विकलांगता हेतु एक न्यास बनाने की बात कही गई है। यह अधिनियम 30 दिसंबर सन 1999 में महामहिम राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद लागू किया गया। इसमें कुल 9 अध्याय हैं।

  1. प्रारंभिक: विकलांगता से संबंधित अन्य नियमों की तरह इस अधिनियम में भी प्रर्युक्त विशेष शब्दों एवं शिक्षकों को परिभाषित किया गया है। इस अध्याय में न्यास के अध्यक्ष, मुख्य कार्यकारी अधिकारी तथा सदस्यों की नियुक्ति एवं चुनाव के साथ-साथ 4 विकलांगताओं को परिभाषित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस अध्याय में व्यवसायिक पंजीकरण, न्यास तथा गंभीर विकलांगता इत्यादि को परिभाषित किया गया है।
  2. राष्ट्रीय न्यास: यह अध्याय स्वलीनता, मानसिक मंदता, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, और बहु विकलांगता हेतु राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के नाम से जाना जाता है। इस अध्याय में यह निर्देशित किया गया है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक समिति का गठन किया जाएगा जिसके लिए अध्यक्ष, सदस्य, और सचिव की नियुक्ति की जाएगी। न्यास का अध्यक्ष किसी ऐसे व्यक्ति को ही बनाया जाएगा जो मानसिक मंदता, स्वलीनता, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, विकलांगता के क्षेत्र में कार्य करने का पर्याप्त अनुभव रखता हो। न्यास के अध्यक्ष और सदस्य का कार्यकाल नियुक्ति तिथि से 3 वर्ष का होता है। न्यास के उद्देश्य एवं कार्यों के संचालन हेतु एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी जो संयुक्त सचिव स्तर का होगा।

3. न्यास के लक्ष्य:
न्यास का मुख्य उद्देश्य निशक्त जनों को अधिकारों से पूर्ण एवं आत्मनिर्भर बनाना है। निशक्त जनों एवं उनके परिवार को सहायता प्रदान करके उन्हें मजबूती प्रदान करना। परिवार ही निशक्त व्यक्तियों की सहायता करना। जिन निशक्त व्यक्तियों के अभिभावक जीवित नहीं रहते उनके लिए अभिभावक की नियुक्ति करना। इसके साथ ही साथ निशक्त व्यक्तियों के लिए समान अवसर अधिकारों का संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी उपलब्ध कराना न्यास का मुख्य लक्ष्य है।

4. बोर्ड के अधिकार एवं कर्तव्य:
बोर्ड केंद्रीय सरकार से 100 करोड़ का सुरक्षित फंड अपने पास रखेंगा। उससे होने वाली आय को निशक्त व्यक्तियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए खर्च करेगा। बोर्ड, न्यास के उद्देश्यों की पूर्ति एवं न्यास में पंजीकृत संस्थाओं द्वारा न्यास के सहजन से चलाए जा रहे कार्यक्रमों को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी भी व्यक्ति से उसकी संपत्ति का वसीयतनामा या दान प्राप्त कर सकेगा। साथ ही केंद्रीय सरकार से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में अनुदान भी प्राप्त कर सकेगा।

बोर्ड केंद्रीय सरकार से उतनी ही राशि प्राप्त कर सकेगा जितनी अनुमोदित कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में आवश्यक समझी जाए।

5. पंजीकरण की प्रक्रिया:
निशक्त जनों के पुनर्वास के क्षेत्र में कार्य करने वाला कोई संगठन, निशक्त व्यक्तियों की समिति, अभिभावक संगठन या कोई स्वयंसेवी संगठन जिसका मुख्य उद्देश्य निशक्त व्यक्तियों के कल्याण का सम्वर्धन करना हो, पंजीकरण के लिए उचित रीति, मध्यम एवं आवेदन शुल्क, आवश्यक दस्तावेजों के साथ न्यास द्वारा निर्धारित पटल पर आवेदन कर सकता है। आवेदन प्राप्त होने पर न्यास संगठन के द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाओं का सत्यापन कराकर यह निर्णय लेगा की संगठन का पंजीकरण किया जाएगा या नहीं, आवेदन को निरस्त करने का पूर्ण अधिकार न्यास के पास सुरक्षित रहेगा। और आवेदन निरस्त होने की दशा में न्याय द्वारा आवेदन की समस्त त्रुटियों को बताएगा। संगठन चाहे तो त्रुटियों को निस्तारण कर पुनः आवेदन कर सकता है।

6. स्थानीय स्तर की समितियां:
अधिनियम के अनुसार प्रत्येक जिला स्तर पर एक स्थानीय समिति का गठन किया जाएगा जिसमें अध्यक्ष जिला अधिकार या आयुक्त से कम का ना हो। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय न्यास के तहत पंजीकृत किसी भी संस्था का प्रमुख या प्रतिनिधि एक निशक्त व्यक्ति सदस्य के रूप में सम्मिलित किया जाएगा। समिति का कार्यकाल 3 वर्ष का होगा। यह समिति निशक्त व्यक्तियों हेतु अभिभावकों के लिए आवेदन प्राप्त करेगी इसके अतिरिक्त न्यास में पंजीकृत कोई भी संस्था इस कार्य के लिए आवेदन कर सकती है।

7. जवाबदेही और परिवेक्षण:
बोर्ड के पास उपलब्ध पुस्तकें और दस्तावेज़ किसी भी पंजीकृत संस्था के अवलोकन हेतु सदैव उपलब्ध रहेंगे। कोई भी संस्था न्यास के पास उपलब्ध पुस्तक एवं अन्य दस्तावेजों की प्रति हेतु लिखित रूप से आवेदन कर सकती है। न्यास के लिए नियम बना सकती है। न्यास ऐसी संस्था या संगठन जो इस अधिनियम के उप बंधुओं के तहत पंजीकृत है एवं न्यास द्वारा बंध पुस्तकें और वित्तीय सहायता को प्राप्त करके निशक्त जनों के कल्याण कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है इसके समस्त नियमों का निरीक्षण एवं उसका सत्यापन करेगा। न्यास प्रत्येक वर्ष पंजीकृत संगठनों का एक अधिवेशन बुलाएगा।

8. वित्त लेखा और संपरीक्षा:
न्यास द्वारा जो भी अनुदान प्राप्त किया गया हो, उसे न्यास के प्रशासनिक कार्यों एवं स्वयं द्वारा संचालित कार्यक्रमों के संचालन हेतु प्रयोग में ला सकता है। न्यास वार्षिक बजट को बनाकर पूर्व निर्धारित समय से केंद्रीय सरकार के पास भेज सकता है ताकि उसे संसद में प्रस्तुत किया जा सके, न्यास अपने समस्त वार्षिक आय-व्यय की एक आख्या बनाएगा एवं इसे सरकार के पास भेजेगा। साथ ही साथ इस आख्या को भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक से समय-समय पर सत्यापित कराएगा।

9. अन्य:

  1. निर्देश जारी करने की केंद्र सरकार की शक्ति
  2. बोर्ड का अतिक्रमण करने की केंद्र सरकार की शक्ति
  3. आय पर कर से छूट
  4. सद्भावना से की गई कार्यवाही के लिए सुरक्षा
  5. नियम बनाने की शक्ति

इकाई-1.4 An overview of Causes, Prevention, prevalence & demographic profile of disability: National and Global
(विकलांगता के कारणों, रोकथाम, व्यापकता और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल का अवलोकनः राष्ट्रीय और वैश्विक)

विकलांगता के कारण:

  1. गर्भधारण के पूर्व के कारक
  2. गर्भावस्था के समय के कारण
  3. जन्म के समय के कारण

गर्भधारण से पूर्व के कारण:

  • नजदीकी से में शादी होना।
  • मां का उम्र में कम या ज्यादा होना।
  • कुपोषण या स्वास्थ्य का खराब होना।
  • मादक पदार्थों का सेवन।
  • अनुवांशिकता या वंशानुगत।

गर्भावस्था के समय के कारण:

  • केसिसम
  • गर्भवती महिला को प्रथम 3 महीने टीवी आदि में ऐसे संक्रमण का होना जो गर्भ में बालक के मस्तिष्क पर प्रभाव डालें। जैसे खसरा,
  • गर्भावस्था में मां का उच्च रक्तचाप या मधुमेह या निम्न रक्तचाप होना रक्त की कमी होना।
  • चोट लगने से भारी सामान उठाने से।
  • सलाह के दवाई का सेवन करने से। बिना डॉक्टर की सल सेवन।
  • गर्भवती स्त्री को मदिरा, धूम्रपान का सेवन करने से।
  • गर्भावस्था के दौरान अधिक एक्सरे करवाने से।
  • पेचीदा।
  • पोषाहार की कमी।
  • खास शिक्षा।

जन्म के समय के कारण:

  • समय से पूर्व बच्चे का जन्म होना।
  • जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी होना।
  • मां का अत्यधिक खून बह जाना।
  • अत्यधिक कम वजन होने पर।
  • मां को दी गयी बेहोशी के कारण।
  • लंबे समय से प्रसव पीड़ा होने के कारण।

जन्म के बाद:

  • जन्म के 2 वर्ष के जीवन काल में बच्चे को अधिक कुपोषण के कारण।
  • दवाइयों के कुपोषण के कारण।
  • यदि बच्चों को बार-बार मिर्गी के दौरे आ रहे हो।
  • टीकाकरण समय से ना होने के कारण।

रोकथाम (Prevention):
अक्षमता की रोकथाम मुख्यतः तीन प्रकार की होती है। हमारे देश की कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत किसी न किसी अक्षमता से ग्रसित है। यह अक्षम व्यक्ति अपने परिवार व समाज के ऊपर बहुत समझे जाते हैं। रोकथाम इलाज से बेहतर उपाय है। रोकथाम के विभिन्न उपायों में से समाज में व्यक्ति को विकलांगता के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है। रोकथाम के कार्य निम्नलिखित स्तर पर किए जाते हैं।

  1. प्राथमिक स्तर
  2. द्वितीयक स्तर
  3. तृतीयक स्तर

प्राथमिक स्तर:
इसमें रोगों से बचने के लिए जो भी उपाय किए जाते हैं उसे प्राथमिक रोकथाम कहते हैं।

  • निकट रक्त संबंध में शादी ना करना।
  • सुरक्षित गर्भावस्था
  • पौष्टिक आहार
  • संक्रमित रोगों से बचाव
  • गर्भावस्था की नियमित जांच
  • सुरक्षित प्रसव
  • मां की आयु

द्वितीयक रोकथाम:
यदि कोई रोग द्वितीय ग्रुप के अंतर्गत आता है, तो इसके लिए चिकित्सकीय इलाज कराना पड़ता है। चिकित्सकीय के कारण शीघ्र पहचान बहुत आवश्यक होती है। उन सभी व्यक्तियों का इलाज व पहचान जल्द से जल्द होना चाहिए, जिससे विकलांगता भयानक रूप ना ले सके।
जैसे- यदि किसी बच्चे को आंख में देखने में समस्या होती है, तो उसे जल्द से जल्द नेत्र चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए, जिससे उस बच्चे की समस्या का निदान हो सके और अगर समय पर इलाज ना हुआ तो बच्चा दृष्टि बाधित हो सकता है।

तृतीयक रोकथाम:
यह रोकथाम का कार्य किए जाते हैं तृतीयक रोकथाम के अंतर्गत आते हैं। अंतिम चरण है जब रोग अक्षमता का रूप धारण करता है तो उसके पुनर्वास के लिए जो भी उपाय किए जाते हैं।
जैसे: यदि कोई व्यक्ति गामक अक्षमता से ग्रसित हो तो उसे चलने फिरने में कठिनाइयों से बचाने के लिए तथा उसका पुनर्वास करने के लिए उस गामक अक्षमता वाले व्यक्ति के लिए ट्राईसाईकिल, वैशाखी उपलब्ध कराई जा सकती है।

एपिडेमियोलॉजी:
एपिडेमियोलॉजी वह विज्ञान है जो किसी भी रोग के वितरण दोष, अक्षमता या मृत्यु का अध्ययन करता है। इसके अंतर्गत जनसंख्या की कुछ दशा के मामलों की संख्या का अध्ययन भी किया जाता है। इसमे जनसंख्या का वर्गीकरण आयु, लिंग एवं सामाजिक वर्ग के आधार पर भी होता है।

व्यापकता दर:
इसमें मामलों की कुल संख्या का अध्ययन होता है। बेलपत्र शब्द का अर्थ और पुराने सभी प्रकार के वर्तमान मामलों से है जो एक दिए गए आबादी में निश्चित समय में मिलते हैं।
सभी वर्तमान मामलों की संख्या (किसी विशिष्ट बीमारी के जो निश्चित समयावधि में मिले)
व्यापकतादर = (सभी वर्तमान मामलों की संख्या × 100) / दी गई आबादी

उदाहरण:
किसी क्षेत्र की 30,000 आबादी में एक बीमारी के 200 पुराने तथा 500 मामले 1 वर्ष के अंदर मिलते हैं। तो इसकी व्यापकता दर होगी।

(200500X100)/30,000


इकाई-1.5 Concept, meaning and importance of Cross Disability Approach and interventions;

क्रॉस-विकलांगता का अर्थ है, एक स्वतंत्र तरीके से रहने वाले केंद्र के संबंध में, कि केंद्र विकलांग व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों को स्वतंत्र जीवन-यापन सेवाएं प्रदान करता है।

परिभाषा:
यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो विकलांगता के प्रकारों में अंतर नहीं करता है।

दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो व्यापक रूप से सभी प्रकार की अक्षमताओं को एक साथ ध्यान में रखता है और सामूहिक योजना को बढ़ावा देता है।

इस दृष्टिकोण में विशेष उपसमूह पर ध्यान केंद्रित करने से जब भी संभव हो, से बचना चाहिए क्योंकि “भेद अक्सर सबसे कमजोर लोगों को और अधिक कलंक की ओर ले जाता है।” यह सामूहिक रूप से नीतिगत निर्णय लेने के बारे में है और विकलांग लोगों के लिए सभी विकलांगों के लिए समान वाट क्षमता प्रदान करता है। यह दृष्टिकोण विकलांगों की विभिन्न श्रेणियों पर सहयोग और नेटवर्क चाहता है। विभिन्न विकलांग व्यक्तियों और विभिन्न क्षमताओं के साथ शामिल हैं।


क्रॉस डिसेबिलिटी दृष्टिकोण के लाभ:
क्रॉस-डिसेबिलिटी आंदोलन में उन सभी लोगों को शामिल करने के लिए इंद्रधनुष दृष्टिकोण है, जिन्हें विकलांगता लेबल दिया गया है, वास्तव में कुछ ने इसे विकलांगों के आंदोलन का नाम दिया है।

स्वतंत्रता:
जैसा कि हमने क्रॉस डिसेबिलिटी दृष्टिकोण पर चर्चा की है, विकलांगों को समाज में मिलाने के लिए जोखिम प्रदान करता है, विकलांग स्वतंत्र रहना सीखते हैं, समानता के स्तर को प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र रूप से काम करते हैं।

पूर्ण नागरिकता:
पूर्व में विकलांग व्यक्ति को पूर्ण नागरिक नहीं माना जाता था क्योंकि वे विकलांगता के कारण समाज का सक्रिय हिस्सा नहीं थे, लेकिन क्रॉस डिसेबिलिटी दृष्टिकोण ने निर्णय लेने और भागीदारी करने के अवसर प्रदान किए, उन्हें पूर्ण नागरिक माना।

कुल सम्मिलित:

  • खास शिक्षा
  • लीडरशिप को बढ़ावा देना
  • विकलांगता संबंधी कानूनों का पूर्ण प्रवर्तन और कार्यान्वयन
  • कार्यक्रम-जीवन को बढ़ाने के लिए और यह गरीबी और बेरोजगारी को कम करता है
  • यह जीने का अधिकार सुनिश्चित करता है
  • विकलांगता की शब्दावली में एकरूपता
  • जनता और सरकार के नीति निर्माताओं को मुद्दों और विकलांग लोगों को प्रभावित करने के बारे में शिक्षित करना

निष्कर्ष:
यह दृष्टिकोण विकलांगता के प्रकारों में अंतर नहीं करता है।
यह उन सभी लोगों को शामिल करने के लिए एक इंद्रधनुषी दृष्टिकोण है, जिन्हें विकलांगता का लेबल दिया गया है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि यह एक सुनहरा दृष्टिकोण है जिसके द्वारा हम समावेश और सामान्यीकरण के अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं और समानता के अधिकार का संरक्षण संभव है।


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