Table of Contents

Special Diploma, IDD, Paper -1, INTRODUCTION TO DISABILITIES (विकलांगताओं का परिचय), Unit-3

Unit 3: Definition, Causes & Preventive Measures, Types, Educational Implications, and Management of
3.1 Intellectual Disability
3.2 Specific Learning Disabilities
3.3 Autism Spectrum Disorder
3.4 Mental Illness, Multiple Disabilities
3.5 Chronic Neurological Conditions and Blood Disorders


यूनिट 3: परिभाषा, कारण और रोकथाम के उपाय, प्रकार, शैक्षिक निहितार्थ और प्रबंधन
3.1 बौद्धिक विकलांगता
3.2 विशिष्ट शिक्षण विकार
3.3 ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार
3.4 मानसिक बीमारी, बहु विकलांगताएँ
3.5 दीर्घकालिक तंत्रिका संबंधी स्थितियाँ और रक्त विकार

3.1, बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability)

बौद्धिक अक्षमता, जिसे मानसिक मंदता भी कहा जाता है, एक ऐसी अवस्था है जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति का मानसिक विकास शारीरिक विकास की तुलना में अपेक्षाकृत धीमा होता है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाएं ज्ञात और अज्ञात कारणों से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, और उनका विभाजन या विकास सामान्य रूप से नहीं होता। इस कारण, व्यक्ति का बौद्धिक विकास सामान्य से पीछे रह जाता है, जिससे उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं में कमी आ सकती है।

परिभाषाएँ (Definitions)

  1. मेंटल डेफीसिएन्सी एक्ट 1927 के अनुसार:
    “मंदबुद्धि एक ऐसी अवस्था है जिसमें 18 वर्ष की आयु से पहले मानसिक विकास रुक जाता है और मस्तिष्क पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता। यह अवस्था वंशानुक्रमीय रोगों, बीमारियों, या सिर में चोट के कारण हो सकती है।”
  2. अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेंटल रिटार्डेशन (AAMR, 1983) के अनुसार:
    “मानसिक मंदता का मतलब सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता के औसत स्तर में अर्थपूर्ण कमी से है, जिसके परिणामस्वरूप अनुकूलन व्यवहार में भी कमी होती है, और यह विकास की अवधि के दौरान अभिव्यक्त होता है।”
  3. अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेंटल रिटार्डेशन (AAMR, 2002) के अनुसार:
    “मानसिक मंदता एक अक्षमता है जिसमें बुद्धि लब्धि (intellectual functioning) और अनुकूल व्यवहार दोनों सीमित हो जाते हैं, और यह वैचारिक, सामाजिक और व्यवहारिक कौशलों में प्रदर्शित होते हैं। यह स्थिति 18 वर्ष की आयु से पहले उत्पन्न होती है।”

Special Diploma, IDD, Paper -1, INTRODUCTION TO DISABILITIES (विकलांगताओं का परिचय), Unit-3
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मानसिक मंदता में अन्य समस्याएँ (Associated Issues with Intellectual Disability):

मानसिक मंदता वाले बच्चों में शारीरिक, दृश्य और श्रव्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जो मस्तिष्क की क्षतिग्रस्त स्थिति पर निर्भर करती हैं। मस्तिष्क को जितना अधिक नुकसान होगा, उतना ही अधिक गंभीर सह-क्षमता विकारों (co-occurring disabilities) की संभावना रहती है। इनमें कुछ सामान्य विकारों के उदाहरण हैं:

  • डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome)
  • प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy)
  • स्वलीनता (Autism)

मानसिक मंदता का वर्गीकरण (Classification of Mental Retardation):

मानसिक मंदता को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। निम्नलिखित तीन प्रमुख वर्गीकरण हैं:

1. चिकित्सकीय वर्गीकरण (Medical Classification):

चिकित्सकीय दृष्टिकोण से मानसिक मंदता के कारणों को विभिन्न कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • संक्रमण एवं नशा (Infections and Toxins): जैसे सिर की चोट या गर्भकाल में विषैले तत्वों का प्रभाव।
  • मानसिक एवं शारीरिक कारक (Mental and Physical Factors): जैसे जन्म के समय मस्तिष्क में हुई विकृति।
  • उपापचय एवं पोषण (Metabolic and Nutritional): पोषण की कमी या उपापचय की समस्याएं।
  • मानसिक रोग (Mental Illness): मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं जो मानसिक मंदता में योगदान देती हैं।
  • जन्म पूर्व अज्ञात कारक (Prenatal Unknown Causes): गर्भावस्था में होने वाली समस्याएं, जैसे दवाओं का असर।
  • गुण सूत्रीय असमानता (Genetic Abnormalities): जैसे क्रोमोसोमल असमानताएं (डाउन सिंड्रोम आदि)।
  • गर्भधारण संबंधी रोग (Pregnancy-related Issues): जैसे गर्भपात या प्रसव के समय जटिलताएं।
  • मनोविकार (Psychological Disorders): मानसिक विकार जो मानसिक मंदता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors): जैसे गरीबी, सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं।
  • अन्य कारक (Other Factors): अन्य कारण जो मंदता में योगदान कर सकते हैं।

2. मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण (Psychological Classification):

मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण के अंतर्गत व्यक्ति के बौद्धिक स्तर का आकलन मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से किया जाता है। इन परीक्षणों में बुद्धि परीक्षण (Intelligence Tests) का उपयोग करके बौद्धिक क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है। इसके बाद, किसी व्यक्ति की बुद्धि लब्धि को मापने के लिए IQ (Intelligence Quotient) का सूत्र उपयोग किया जाता है।

मानसिक आयु और बुद्धि लब्धि

बुद्धि लब्धि (Intelligence Quotient, IQ) =

बुद्धि लब्धि के आधार पर मानसिक मंदता को पांच श्रेणियों में बांटा गया है:

  1. सीमा रेखित (Borderline): 70 से 85 या 90 तक
  2. अति अल्प मानसिक मंदता (Mild): 50 से 70
  3. अल्प मानसिक मंदता (Moderate): 35 से 50
  4. गंभीर मानसिक मंदता (Severe): 20 से 35
  5. अति गंभीर मानसिक मंदता (Profound): 20 से नीचे

मानसिक मंदता की श्रेणियाँ और बुद्धि लब्धि

  1. सीमा रेखित (Borderline):
    • बुद्धि लब्धि: 70 से 85 या 90 तक
    • पहचान करना कठिन, सामान्य विद्यालयों में पढ़ाई करते हैं।
    • विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है।
    • समेकित शिक्षा के अंतर्गत सहायता प्राप्त होती है।
  2. अति अल्प मानसिक मंदता (Mild):
    • बुद्धि लब्धि: 50 से 70
    • मानसिक आयु 8-10 वर्ष के बच्चों के बराबर होती है।
    • सामान्य जीवन में कुछ हद तक आत्मनिर्भर होते हैं।
    • मार्गदर्शन और सूक्ष्म निर्देशन की आवश्यकता होती है।
    • सामाजिक और शैक्षिक कौशल में प्रशिक्षित किया जा सकता है।
  3. अल्प मानसिक मंदता (Moderate):
    • बुद्धि लब्धि: 35 से 50
    • सामाजिक जागरूकता कम होती है।
    • दैनिक जीवन की गतिविधियों, सामाजिक कौशल और कार्यात्मक कौशल में प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
    • पेशेवर कौशल सिखाए जा सकते हैं ताकि आत्मनिर्भर हो सकें।
  4. गंभीर मानसिक मंदता (Severe):
    • बुद्धि लब्धि: 20 से 35
    • अधिक देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है।
    • गामक विकास (motor development) धीमा होता है।
    • व्यक्तिगत देखभाल कौशल सिखाने की अधिक आवश्यकता होती है।
  5. अति गंभीर मानसिक मंदता (Profound):
    • बुद्धि लब्धि: 20 से नीचे
    • पूरी तरह दूसरों पर निर्भरता होती है।
    • सभी आवश्यकताओं के लिए सहारे की जरूरत होती है।
    • पूरी तरह से दूसरों की देखभाल पर निर्भर रहते हैं।

शैक्षणिक वर्गीकरण

शैक्षणिक दृष्टिकोण से, मानसिक मंदता को क्रियाकलाप और कार्य प्रदर्शन के स्तर के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:

अ. शिक्षणीय मानसिक मंद (E-M-R, Educable Mental Retardation): इस श्रेणी में उन बच्चों को रखा जाता है जिनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है। इन्हें समाज में बेहतर ढंग से समायोजित किया जा सकता है। इन्हें सामाजिक और शैक्षिक कौशल सिखाने के साथ-साथ व्यावसायिक कौशल भी सिखाए जा सकते हैं। ये बच्चे पूर्ण या आंशिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

ब. प्रशिक्षणीय मानसिक मंद (T-M-R): इसके अंतर्गत ऐसे मंदबुद्धि बच्चे आते हैं, जिन्हें प्रशिक्षण द्वारा कुछ हद तक आगे बढ़ाया जा सकता है। इन्हें छोटे-छोटे कौशलों में प्रशिक्षण दिया जाता है। इनका सामाजिक समायोजन एक सीमा तक ही हो पाता है। इन्हें भी व्यवसाय हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है।

स. अभिरक्षणीय (C-M-R): इसके अंतर्गत वे बच्चे आते हैं, जिन्हें विशेष देखरेख की जरूरत होती है। इनके गामक विकास हेतु विभिन्न प्रकार के उपकरणों का प्रयोग करते हुए प्रशिक्षण दिया जाता है।


3.2, Specific Learning Disabilitiesविशिष्ट अधिगम अक्षमता

यह एक छुपी हुई विकलांगता है, जिसमें सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। बाल्यावस्था एवं विद्यालय अवस्था के प्रारंभिक दौर में पहचानी जा सकती है। इनकी बुद्धि लब्धि औसत से कम नहीं होती, परंतु इनकी उपलब्धि या प्राप्तांक कम होता है। सामान्यतः इनमें 90 से ऊपर की बुद्धि लब्धि पाई जाती है। इसमें अधिकांशतः स्मृति एवं प्रत्यक्षीकरण की समस्या होती है। इसमें भाषा, गणित, प्रत्यक्षीकरण, तार्किकता लिखने, पढ़ने, सुनने, बोलने एवं सामाजिकता में कमी दिखती है। यह लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक दिखाई पड़ती है।


अधिगम अक्षमता के प्रकार:

  1. डिस्लेक्सिया (Dyslexia): इसमें व्यक्ति को शब्दों के साथ कार्य में कमी होती है, जैसे अक्षरों को पहचानने में कठिनाई होना या अशुद्ध रूप से पढ़ना।
  2. डिसग्राफिया (Dysgraphia): लेखन संबंधी कमी दिखती है, जैसे शब्दों के अक्षरों को पलट देना या श्यामपट्ट या कॉपी से नकल करने में परेशानी होना।
  3. डिस्कल्कुलिया (Dyscalculia): इसमें बच्चा गणितीय संबंधी गलतियां करता है, जैसे अंकों को उल्टा लिखना या दो अंकों की संख्या को पलट देना।
  4. डिस्प्रेक्सिया (Dyspraxia): यह विशिष्ट अक्षमता गामक कौशल विकास में कमी को दर्शाता है। इसमें बच्चों को सूक्ष्म गामक कार्यों को नियोजन एवं पूरा करने में कठिनाई होती है, जैसे हाथ हिलाना, ब्रश करना आदि।

3.3, Autism Spectrum Disorder (स्वलीनता):

स्वलीनता एक जटिल स्नायु विकासात्मक कमी है, जिसमें संप्रेषण, सामाजिक सोच विचार एवं व्यवहार प्रभावित होते हैं। इसमें बच्चे सामाजिक समायोजन, मेलजोल, और बातचीत के अभाव में एकाग्रचित्त हो जाते हैं। यह 3 वर्ष की उम्र तक पहचाना जा सकता है।

स्वलीनता को 1943 में कैनर ने बाल्टिमोर में आकलित किया और इसे स्वलीन विक्षिप्तता के नाम से प्रकाशित किया।

परिभाषा:

अमेरिकन विकलांगता अधिनियम (1990) के अनुसार:
स्वलीनता एक विकासात्मक विकलांगता है जो मुख्य रूप से शाब्दिक और अशाब्दिक संप्रेषण एवं सामाजिक अंतःक्रिया को प्रभावित करता है। यह घटना सामान्य रूप से 3 वर्ष की उम्र से पहले होती है, और यह शैक्षणिक निष्पादन को प्रभावित करती है। इसके साथ कुछ अन्य लक्षण भी होते हैं, जैसे एक ही क्रिया को बार-बार दोहराना, दिनचर्या में परिवर्तन, अनावश्यक प्रतिक्रियाएं, और संवेदी अनुभूतियां।


स्वलीनता से मिलती-जुलती स्थितियां:

  1. इलेक्टिव म्यूटिज्म: इस स्थिति में बालक किसी विशेष स्थिति में बात करने के लिए सक्षम नहीं होता।
  2. विशिष्ट भाषा विकार: इसमें विचित्र प्रकार की भाषा विकास संबंधी समस्याएं पाई जाती हैं।
  3. एटिपिकल ऑटिज्म: इस स्थिति में स्वलीनता के सिर्फ एक या दो लक्षण होते हैं।
  4. एसपरगर्स सिंड्रोम: इसमें बुद्धि और संप्रेषण का विकास सामान्य बच्चों की तरह होता है, परंतु सामाजिक कौशल में विकास सीमित होता है।
  5. रेट्स सिंड्रोम: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें स्नायु तंत्र की समस्याएं होती हैं, जैसे हाथ की लिखावट और गतिकीय असमानता।
  6. डिसइन्टिग्रेटिव डिसआडर: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चों में सामान्य विकास होने के बाद तेजी से सभी कौशलों में गिरावट देखी जाती है।

स्वलीनता के लक्षण:

  1. व्यवहारात्मक विशेषताएं:
    इसमें बच्चों का व्यवहार अन्य बच्चों से अलग होता है।
  2. भाषा संबंधी विकृति:
    इसमें बच्चों को भाषाई समस्याओं का सामना होता है, जैसे शब्दों का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पाना।
  3. पुनरावृत्ति व्यवहार:
    इस लक्षण में बच्चे कुछ विशेष व्यवहार को बार-बार करते हैं, जैसे एक ही काम को बार-बार दोहराना।
  4. संवेगात्मक अस्थिरता:
    इस स्थिति में बच्चे अपने भावनात्मक रूप से अस्थिर होते हैं, जैसे बार-बार मूड में बदलाव।
  5. अन्य लक्षण:
    • अति चंचलता
    • आक्रामकता
    • आत्मघाती विचार

इकाई-3.4: Mental Illness (मानसिक बीमारी), Multiple Disabilities (बहु विकलांगता)

Mental illness :
मानसिक बीमारी एक ऐसी अवस्था है जो व्यक्ति की सोच, एहसास या व्यवहार को प्रभावित करती है और उसकी दैनिक क्रियाओं को प्रभावित करती है। यह सामाजिक एकीकरण में समस्या उत्पन्न कर सकती है। मानसिक रुग्णता को मस्तिष्कीय विकार के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह मस्तिष्क के कार्यों से संबंधित होता है। मानसिक रुग्णता के साथ शरीर के अन्य पहलुओं, जैसे शारीरिक तंत्र और रासायनिक प्रक्रियाएं भी जुड़ी होती हैं।


मानसिक बीमारी की परिभाषा:

मानसिक बीमारी को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार के तीनों पहलुओं – सांवेगिक, संज्ञानात्मक, और क्रियात्मक में विसंतुलन उत्पन्न हो जाता है।

निट्जेल (1998) के अनुसार:
मानसिक रुग्णता का तात्पर्य व्यक्ति के व्यवहारात्मक या मनोवैज्ञानिक कार्यों में पाए जाने वाले विक्षोभ से होता है, जो व्यक्ति के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू से मेल नहीं खाता और जिसके कारण व्यक्ति में तनाव, व्यवहारात्मक अक्षमता और सर्वांगीण क्रियाओं में असंतुलन उत्पन्न होता है।


मानसिक बीमारी के प्रकार:

मानसिक बीमारी की प्रकृति और गंभीरता के आधार पर कई प्रकार होते हैं। इसमें प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. चिंता विकार (Anxiety Disorders):

चिंता विकृति से ग्रसित लोग कुछ वस्तुओं अथवा स्थितियों के प्रति डर और आशंका की प्रतिक्रिया करते हैं, साथ ही चिंता अथवा घबराहट के लक्षण प्रदर्शित करते हैं, जैसे तेज हृदय गति और पसीने छूटना आदि। यदि व्यक्ति की प्रतिक्रिया स्थिति के अनुरूप नहीं होती है, या वह प्रतिक्रिया पर नियंत्रण नहीं कर पाता है, और चिंता सामान्य क्रियाओं में बाधा डालती है, तो व्यक्ति को चिंता विकार से ग्रसित माना जाता है।

2. मनोदशा विकार (Mood Disorders):

इसे प्रभावी विकृति के नाम से भी जाना जाता है। इसके अंतर्गत दुख का एहसास बने रहना, या कुछ समय के लिए बहुत अधिक प्रसन्नता महसूस करना, अथवा अत्यंत खुशी से बहुत दुख की स्थिति महसूस करना आदि विकृतियां देखी जा सकती हैं। मनोदशा विकार में उन्माद, तनाव, और द्विध्रुवीय विकार प्रमुख रूप से होते हैं।

3. मनोविक्षिप्तता विकार (Psychotic Disorders):

मनोविक्षिप्तता विकार में व्यक्ति मतिभ्रम और भ्रम से ग्रसित हो सकता है।

  • मतिभ्रम के अंतर्गत व्यक्ति ऐसे चित्रों और ध्वनियों का अनुभव करता है जो वास्तविक नहीं होते।
  • भ्रम में व्यक्ति गलत चीजों को प्रमाण के बावजूद भी सही मानते हैं।

4. खाने में विकार (Eating Disorders):

इस विकार में अत्यधिक भावात्मकता और स्नायविक विकार की वजह से व्यक्ति खाने की आदतों में विकृति प्रदर्शित करता है। यह विकार कई बार शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं।

5. आवेग नियंत्रण एवं व्यसन विकार (Impulse Control and Addiction Disorders):

इस विकार से ग्रसित व्यक्ति को उकसाने या विरोध करने में कठिनाई होती है, जिससे वह खुद या दूसरों से चोरी करना, जुआ खेलना आदि करने लगता है। इस विकार में मदिरा का सेवन भी एक प्रमुख उदाहरण है, जिसमें व्यक्ति खतरनाक कार्य करता है और आदत में पड़ने के कारण अपने रिश्तों और जिम्मेदारियों को नकारने लगता है।

6. व्यक्तित्व विकार (Personality Disorders):

व्यक्तित्व विकार से ग्रसित व्यक्ति का व्यक्तित्व अत्यंत जटिल होता है, जो उसे कष्ट देता है और कार्य, विद्यालय या सामाजिक संबंधों में समस्याएं उत्पन्न करता है। उदाहरण स्वरूप, समाज विरोधी व्यक्तित्व विकार और सम्मोह बाध्य करण व्यक्तित्व विकार होते हैं।

7. समायोजन विकार (Adjustment Disorders):

जब कोई व्यक्ति तनावपूर्ण स्थिति में भावात्मक या व्यवहारात्मक लक्षण प्रदर्शित करता है, तो समायोजन विकार उत्पन्न होता है। यह तनाव प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, आदि जैसी स्थितियों में हो सकता है।

8. संबंध विच्छेद विकार (Dissociative Disorders):

इस विकार से ग्रसित लोग स्मरण में परिवर्तन, चेतना, पहचान, और स्वयं के आसपास की जानकारी से संबंधित समस्याओं से परेशान रहते हैं। यह विकार प्रायः अत्यधिक तनाव, सदमे के आघात, दुर्घटना या किसी त्रासदी के परिणामस्वरूप होता है।

9. टिक विकार (Tic Disorders):

इस विकार में व्यक्ति लगातार या अचानक अनियंत्रित आवाज करता है या शरीर की गति करता है। इसे वाक टिक भी कहा जाता है, जैसे कि कुछ मानसिक मंद बच्चों में देखा जाता है। टोरेट सिंड्रोम टिक विकार का एक उदाहरण है।


Multiple Disability (बहु विकलांगता):

बहु विकलांगता का तात्पर्य दो या दो से अधिक विकलांगताओं का होना है। यह ना तो संक्रामक है और ना ही आनुवांशिक। अन्य विकलांगताओं के मुकाबले इसमें अधिक जटिलता होती है, जिसमें दो या अधिक विकलांगताएं एक साथ मौजूद होती हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी व्यक्ति में एक से अधिक विकलांगताएं एक साथ पाई जाती हैं। कभी-कभी मानसिक मंद बच्चों में 15 से 20 वर्षों की अवधि में दृष्टि में भी कमी हो जाती है, और इस स्थिति में उन्हें मानसिक विकलांगता की बजाय विकलांगता की संज्ञा दी जाती है।

परिभाषा:

फेडरल परिभाषा (विकलांग जन शिक्षा अधिनियम 1990):
इस परिभाषा के अनुसार कुछ विकलांगताओं जैसे मानसिक मंदता, चक्षुहीनता, मानसिक मंदता, आर्थोपेडिक क्षति आदि को विकलांगता में शामिल किया गया है, लेकिन शैक्षिक स्तर पर श्रवण और दृष्टिबाधित को बहु विकलांगता में शामिल नहीं किया गया था।


बहु विकलांगता के प्रकार:

बहु विकलांगता में एक से अधिक विकलांगता होने की स्थिति में व्यक्ति को निम्नलिखित प्रकार की विकलांगताएं हो सकती हैं:

  1. श्रवण अक्षम एवं दृष्टिबाधित:
    जब व्यक्ति को बाहरी वातावरण की ध्वनियों को सुनने में कठिनाई होती है और साथ ही किसी वस्तु को सामान्य दूरी पर स्पष्ट रूप से देखने में भी समस्या होती है, तो इसे श्रवण और दृष्टिबाधित बहु विकलांगता कहते हैं।
  2. दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम तथा मानसिक मंदता:
    यदि किसी व्यक्ति में सोचने, समझने, सीखने, और निर्णय लेने में कठिनाई हो, साथ ही वह श्रवण अक्षम हो और दृष्टि संबंधित समस्याएं भी हों, तो इसे दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम और मानसिक मंदता से ग्रस्त बहु विकलांगता कहते हैं।
  3. दृष्टिबाधित एवं मानसिक मंदता:
    यदि व्यक्ति को दृष्टि संबंधित समस्याएं होती हैं और सोचने या सीखने में भी कठिनाई होती है, तो इसे दृष्टिबाधित और मानसिक मंदता से ग्रस्त बहु विकलांगता कहा जाता है।
  4. प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात एवं मानसिक मंदता:
    यदि मस्तिष्कीय क्षति होने के कारण सोचने, समझने, सीखने और निर्णय लेने में मंदता होती है, और साथ ही अंगों में लकवा या मांसपेशियों की समस्या भी होती है, तो इसे प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात और मानसिक मंदता से ग्रस्त बहु विकलांगता कहा जाता है।
  5. दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षमता एवं गामक अक्षमता:
    जब किसी व्यक्ति को चोट या दुर्घटना के कारण शारीरिक विकलांगता होती है और साथ ही वह दृष्टिबाधित और श्रवण अक्षम भी होता है, तो इसे दृष्टिबाधित, श्रवण अक्षम एवं गामक अक्षमता से ग्रस्त बहु विकलांगता कहा जाता है।

बहु विकलांगता के लक्षण:

बहु विकलांगता के लक्षण विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं का मिश्रित रूप होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  1. शारीरिक विकास में धीमा होना:
    बहु विकलांगता से ग्रस्त बच्चों का शारीरिक विकास धीमा होता है। उदाहरण स्वरूप, वे सामान्य रूप से गर्दन को स्थिर करने, बैठने, घुटनों के बल चलने या खड़ा होने में कठिनाई महसूस करते हैं।
  2. शौच नियंत्रण का अभाव:
    इन बच्चों में शौच नियंत्रण की समस्या होती है, जिससे उन्हें इस पर नियंत्रण पाने में कठिनाई होती है।
  3. मुलायम मोटर कौशल की अक्षमता:
    कुछ बच्चों को मुंह से भोजन निकालने, चबाने, या हाथ का सही उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है।
  4. स्मृति और संवेदनाओं को समझने में कठिनाई:
    ये बच्चे आसानी से देखने, सुनने, स्पर्श करने, गंध या स्वाद को नहीं समझ पाते हैं।
  5. भावनाओं, विचारों और आवश्यकताओं को व्यक्त करने में कठिनाई:
    इन बच्चों को अपनी भावनाओं, विचारों और आवश्यकताओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में परेशानी होती है, जिससे वे दूसरों से अपनी स्थिति या समस्या साझा नहीं कर पाते।

3.5, क्रॉनिक तंत्रिका संबंधी स्थितियां और रक्त विकार (Chronic Neurological Conditions and Blood Disorders)

भारत में आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 के तहत क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन को विकलांगताओं की सूची में शामिल किया गया है।

क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन की परिभाषा:

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 4 जुलाई 2018 को जारी अधिसूचना में क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन की परिभाषा दी गई है। इसमें कहा गया है कि क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन तंत्रिका तंत्र से संबंधित दीर्घकालिक और प्रगतिशील रोग होते हैं। इनमें मुख्य रूप से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं की क्षति होती है, जो व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक कार्यों को प्रभावित कर सकती है।

क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन के उदाहरण:

  1. मल्टीपल स्केलेरोसिस:
    यह एक सूजन तंत्रिका तंत्र की बीमारी है जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की तंत्रिका कोशिकाओं के अक्षतंतु के आसपास माइलिन म्यान क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे डेमिलीनेशन होता है। इसके कारण मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संवाद करने की क्षमता में कमी आ जाती है।
  2. पार्किंसंस रोग:
    यह एक प्रगतिशील तंत्रिका तंत्र रोग है जो मुख्य रूप से वृद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता है। इसमें कंपकंपी, पेशीय कठोरता, और धीमी गति से गति करने की समस्या होती है। यह रोग मस्तिष्क में बेसल गैंग्लिया के अध: पतन और डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर की कमी के कारण होता है।

तंत्रिका संबंधी विकार:

तंत्रिका संबंधी विकार केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र से जुड़े होते हैं। इनमें मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, कपाल की नसें, परिधीय तंत्रिकाएं, तंत्रिका जड़ें, स्वायत्त तंत्रिका तंत्र, न्यूरोमस्कुलर जोड़ और मांसपेशियां शामिल हैं। तंत्रिका संबंधी विकारों में शामिल हैं:

  • मिर्गी
  • अल्जाइमर रोग और अन्य मनोभ्रंश
  • स्ट्रोक
  • माइग्रेन और सिरदर्द विकार
  • मल्टीपल स्केलेरोसिस
  • पार्किंसंस रोग
  • न्यूरोइन्फेक्शन्स
  • ब्रेन ट्यूमर
  • तंत्रिका संबंधी आघात संबंधी विकार

इन विकारों का कारण सिर के आघात, कुपोषण, और विभिन्न प्रकार के संक्रमण (जैसे माइकोबैक्टीरियल, वायरल, फंगल, और पैरासाइटिक संक्रमण) हो सकते हैं।

क्रॉनिक न्यूरोलॉजिकल कंडीशन के अन्य उदाहरण:

  1. अल्जाइमर रोग
  2. पार्किंसंस रोग
  3. डायस्टोनिया
  4. न्यूरोमस्कुलर रोग
  5. मल्टीपल स्केलेरोसिस
  6. मिर्गी,
  7. स्ट्रोक

1. अल्जाइमर रोग (Alzheimer’s Disease) और अन्य मनोभ्रंश (Dementia):

अल्जाइमर रोग एक न्यूरोलॉजिकल विकार है जो बौद्धिक कार्यों और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों में पाया जाता है। इसके शुरुआती चरण में स्मृति हानि हल्की होती है, लेकिन जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, व्यक्ति दैनिक कार्यों को पूरा करने, बातचीत करने और अपने परिवेश के प्रति प्रतिक्रिया करने की क्षमता खो देता है। अल्जाइमर रोग की प्रगति धीरे-धीरे होती है, और इस रोग के अंतिम चरण में व्यक्ति को पूरी तरह से निर्भरता हो सकती है।

यह दुनिया भर में वृद्ध व्यक्तियों में सबसे आम कारणों में से एक है। अल्जाइमर रोग से पीड़ित व्यक्ति औसतन आठ साल तक जीवित रहते हैं, हालांकि कुछ मामलों में यह अवधि चार से 20 वर्ष तक हो सकती है।

पार्किंसंस रोग और अल्जाइमर रोग दोनों ही तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकार हैं, लेकिन इनका प्रभाव अलग-अलग होता है। पार्किंसंस रोग में शरीर में कंपकंपी, शारीरिक कठोरता, और गति की धीमी गति जैसे लक्षण होते हैं, जबकि अल्जाइमर में स्मृति और मानसिक क्षमताओं का ह्रास होता है।

इन रोगों के कारण, व्यक्ति का जीवन कई शारीरिक और मानसिक चुनौतियों से भरा हो सकता है, और इनकी देखभाल के लिए चिकित्सा सहायता और परिवार की मदद की आवश्यकता होती है।

1. मिर्गी (Epilepsy):

मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें मस्तिष्क में असामान्य इलेक्ट्रिकल गतिविधि की वजह से व्यक्ति को बार-बार दौरे (seizures) पड़ते हैं। मिर्गी के दौरान व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और शरीर लड़खड़ाने लगता है। यह दौरे शरीर के किसी भी हिस्से पर प्रभाव डाल सकते हैं, जैसे चेहरे, हाथ या पैर। मिर्गी के दौरों में कई लक्षण होते हैं, जैसे बेहोशी आना, गिर पड़ना, और हाथ-पांव में झटके आना।

मिर्गी के प्रकार:
मिर्गी को मुख्य रूप से 4 प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। दौरे के प्रकार के आधार पर मिर्गी को अलग-अलग श्रेणियों में रखा जाता है, और यह इस बात पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क के किस हिस्से से यह गतिविधि शुरू होती है।

1.-आंशिक दौरा (Partial Seizure)

एक आंशिक दौरे का अर्थ है कि रोगी के मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में मिर्गी की गतिविधि हुई थी। आंशिक दौरे के दो प्रकार होते हैं

सरल आंशिक दौरा इस दौरे की अवधि में रोगी जागरूक रहते हैं। ज्यादातर मामलों में रोगी अपने परिवेश से भी अवगत रहते हैं, भले ही दौरा बढ़ रहा हो ।

जटिल आंशिक दौरा इसमें रोगी की चेतना खत्म हो जाती है। मरीज को आमतौर पर दौरे के बारे में याद नहीं रहता

  1. सामान्यीकृत दौरा (Generalised Seizure) – एक सामान्यीकृत दौरा तब आता है, जब मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में मिर्गी संबंधी गतिविधि होती है। जब दौरा बढ़ जाता है, तो मरीज की चेतना खत्म हो जाती है ।

टॉनिक – क्लोनिक दौरे ये सामान्यीकृत दौरे के शायद सबसे प्रसिद्ध प्रकार हैं। ये चेतना के लुप्त होने शरीर के अकड़ने और कांपने का कारण बनते हैं ।

एब्सेंस दौरे – इसमें चेतना थोड़े समय के के लिए लिए – लुप्त लुप्त हो हो जाती है और ऐसा लगता है, जैसे व्यक्ति अंतरिक्ष को घूर रहा हो ।

टॉनिक दौरे – मांसपेशियाँ कठोर हो जाती हैं। इस दौरे में व्यक्ति नीचे गिर सकता है ।

एटोनिक दौरे – मांसपेशियों पर नियंत्रण में कमी, जिसके कारण व्यक्ति अचानक गिर सकता है । अचानक

क्लोनिक दौरे – ये दौरे नियत अंतराल के बाद लगने वाले झटकों के साथ संबद्ध हैं ।

  1. माध्यमिक सामान्यीकृत दौरे ( एक माध्यमिक सामान्यीकृत दौरा तब पड़ता है, जब मिर्गी संबंधी गतिविधि आंशिक दौरे के रूप में शुरू होती है, लेकिन फिर मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में फैल जाती है । । जब दौरा बढ़ जाता है, तो मरीज अपनी चेतना खो देता है ।

Epilepsy मिर्गी के लक्षण :- मिर्गी के मुख्य लक्षण दौरे अनुसार भिन्न होते हैं पडना है । अलग अलग व्यक्तियों में इसके लक्षण दौरों के प्रकार के

1 फोकल (आंशिक ) दौरे आंशिक – चेतना को कोई खास नुकसान नहीं होता। इसके लक्षणों में निम्न शामिल है स्वाद, गंध, दृष्टि, श्रवण या स्पर्श इन्द्रियों बदलाव आना। अंगों में झनझनाहट महसूस होना इत्यादि ।

2 जटिल आंशिक दौरे इसमें रोगी की चेतना खत्म हो जाती है। मरीज को आमतौर पर दौरे के बारे में याद नहीं रहता

3 एटोनिक दौरे में मांसपेशियों पर नियंत्रण कम होता जाता है और व्यक्ति अचानक गिर सकता है।

4 क्लोनिक दौरों की पहचान चेहरे, गर्दन और बांह की मांसपेशियों में लगने वाले पुनरावृत्त झटकों से होती है ।

5 मायोक्लोनिक दौरे के कारण हाथों और पैरों में स्वाभाविक रूप से तेज झनझनाहट होती है।

6 टॉनिक – क्लोनिक दौरों को ‘ग्रैंड मल दौरे’ कहा जाता था। इसके लक्षणों में शरीर में अकड़न, कम्पन या मल आने पर नियंत्रण कम होना जीभ को काटना, चेतना का लोप होना शामिल हैं। दौरे के बाद आपको उसके बारे में याद नहीं रहता है या आप कुछ घंटों के लिए थोड़ा बीमार महसूस कर सकते हैं ।

तंत्रिका पेशीय रोग :- न्यूरोमस्कुलर रोग एक व्यापक शब्द है जिसमें कई बीमारियां और भी शामिल हैं जो मांसपेशियों के कार्य को बाधित करती हैं। ये सीधे या परोक्ष रूप से नसों या न्यूरोमस्कुलर जंकऑन (मोटर नसों और मांसपेशी फाइबर का मिलन बिंदु) को शामिल करके पेशी को सीधे या परोक्ष रूप से शामिल कर सकते हैं। न्यूरोमस्कुलर रोगों के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं :

न्यूरोमस्कुलर रोग और रक्त विकार:

1. न्यूरोमस्कुलर रोग (Neuromuscular Disorders):

न्यूरोमस्कुलर रोग तंत्रिका और मांसपेशियों के बीच के संबंधों से जुड़े होते हैं। ये रोग मांसपेशियों की कमजोरी, दर्द, मांसपेशियों में शोष, और अन्य असामान्य संवेदनाओं को उत्पन्न कर सकते हैं। इन रोगों में मांसपेशियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और तंत्रिका तंत्र से मांसपेशियों तक सिग्नल भेजने में समस्या आती है।

न्यूरोमस्कुलर रोगों के प्रमुख प्रकार:

  1. पूर्वकाल हॉर्न कोशिकाओं के रोग (Anterior Horn Cell Disorders): इसमें रीढ़ की हड्डी और मोटर तंत्रिका के बीच संपर्क में समस्या होती है।
  2. मोटर न्यूरॉन रोग (Motor Neuron Diseases): इन रोगों में मोटर और संवेदी तंत्रिकाओं का प्रभाव होता है।
  3. परिधीय न्यूरोपैथी (Peripheral Neuropathy): इसमें तंत्रिका तंत्र के बाहरी हिस्से प्रभावित होते हैं।
  4. मायस्थेनिया ग्रेविस और संबंधित रोग (Myasthenia Gravis and Related Diseases): यह रोग मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिकाओं के साथ संबंध प्रभावित करता है।
  5. मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और भड़काऊ मायोपैथीज (Muscular Dystrophy and Inflammatory Myopathies): इन रोगों में मांसपेशियों का कमजोर होना या सूजन होना शामिल है।

2. रक्त विकार (Blood Disorders):

(i) थैलेसीमिया (Thalassemia):

थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें हीमोग्लोबिन उत्पादन की प्रक्रिया में गड़बड़ी होती है। इसके कारण रक्त की भारी कमी (एनीमिया) होती है। यह रोग बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक रूप से प्राप्त होता है और इसके कारण उन्हें बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। थैलेसीमिया के दो प्रकार होते हैं:

  • मेजर थैलेसीमिया (Thalassemia Major): यह तब होता है जब माता-पिता दोनों के जीन में थैलेसीमिया होता है। इस प्रकार का थैलेसीमिया जीवन के लिए गंभीर हो सकता है और इसमें बार-बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
  • माइनर थैलेसीमिया (Thalassemia Minor): यह तब होता है जब केवल एक माता-पिता में थैलेसीमिया का जीन होता है। इस प्रकार में लक्षण हल्के होते हैं और जीवन के लिए गंभीर नहीं होते।

थैलेसीमिया से प्रभावित बच्चों को गंभीर एनीमिया हो सकता है, जिससे शरीर में पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती। लंबे समय तक रक्त चढ़ाने से शरीर में अधिक लौह तत्व जमा होने लगते हैं, जो हृदय, यकृत, और फेफड़ों को प्रभावित कर सकते हैं।

(ii) हीमोफीलिया (Hemophilia):

हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर के बाहर बहने वाला रक्त जमता नहीं है। इसका कारण “क्लॉटिंग फैक्टर” नामक प्रोटीन की कमी होती है, जो रक्त को थक्का बनने में मदद करता है। जब किसी व्यक्ति को चोट या दुर्घटना लगती है, तो रक्त का बहना रुकता नहीं है, और यह जानलेवा हो सकता है। यह रोग पुरुषों में अधिक पाया जाता है, क्योंकि यह एक X-लिंक्ड विकार है, जो महिलाओं द्वारा फैलता है।

हीमोफीलिया के लक्षण:

  • रक्तस्राव का लंबा चलना
  • छोटी चोटों से भी ज्यादा रक्तस्राव होना
  • जोड़ों और मांसपेशियों में रक्तस्राव की समस्या होना

थैलेसीमिया और हीमोफीलिया दोनों ही आनुवंशिक रक्त विकार हैं, जो शरीर में रक्त की कमी और रक्तस्राव से संबंधित समस्याएं पैदा करते हैं।

न्यूरोमस्कुलर रोग में मांसपेशियों और तंत्रिकाओं के बीच संपर्क में गड़बड़ी होती है, जिससे शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

हीमोफीलिया (Hemophilia)

हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें रक्त का थक्का नहीं बन पाता। इसके कारण, चोट लगने पर शरीर से खून बहता रहता है, और यह स्थिति खतरनाक हो सकती है। आमतौर पर यह रोग पुरुषों को प्रभावित करता है और यह महिलाओं द्वारा फैलता है। इस रोग में खून में श्रांबोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक पदार्थ की कमी होती है, जो खून को जल्दी थक्का बना देता है। जब इस पदार्थ की कमी होती है, तो खून का बहना बंद नहीं होता और यह गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न करता है।

लक्षण:

  • शरीर में नीले नीले निशान (Bruising)
  • नाक से खून का बहना (Nosebleeds)
  • आँखों के अंदर खून का निकलना (Blood in the Eyes)
  • जोड़ों की सूजन (Joint Swelling)

थक्का बनने का समय (Clotting Time):

  • हीमोफीलिया में खून के थक्का बनने का समय बढ़ जाता है, जिसके कारण खून का बहना रुकता नहीं है।

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