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Special Diploma, IDD, Paper -2, CHARACTERISTICS OF CHILDREN WITH DEVELOPMENTAL DISABILITIES, Unit-4 (विकासात्मक विकलांगताओं वाले बच्चों की विशेषताएँ)

Unit 4: Learning characteristics of students with ID
4.1 Basic understanding of intellectual disability – definition, meaning and description (concept, aetiology, prevalence, incidence, historical perspective, cultural perspective, myths, recent trends and updates)
4.2 Classification of students with ID, learning environment and learning
4.3 Understanding strengths and needs of learners with intellectual disabilities
4.4 Learning characteristics, cognitive processes, sequential processing of information in children with ID
4.5 Level of intellectual disability and its relevance to learning characteristics

अध्यान 4: बौद्धिक विकलांगता (ID) वाले छात्रों की अध्ययन विशेषताएँ
4.1 बौद्धिक विकलांगता की बुनियादी समझ – परिभाषा, अर्थ और विवरण (संकल्पना, उत्पत्ति, प्रसार, घटना, ऐतिहासिक दृष्टिकोण, सांस्कृतिक दृष्टिकोण, मिथक, हाल की प्रवृत्तियाँ और अद्यतन)
4.2 बौद्धिक विकलांगता वाले छात्रों का वर्गीकरण, अध्ययन वातावरण और अध्ययन
4.3 बौद्धिक विकलांगता वाले शिक्षार्थियों की ताकत और जरूरतों को समझना
4.4 बौद्धिक विकलांगता वाले बच्चों में अध्ययन विशेषताएँ, संज्ञानात्मक प्रक्रियाएँ, जानकारी की अनुक्रमिक प्रसंस्करण
4.5 बौद्धिक विकलांगता का स्तर और इसके अध्ययन विशेषताओं से संबंध

4.1 Basic understanding of intellectual disability, – definition, meaning and description, (concept,
aetiology, prevalence, incidence, historical perspective cultural perspective, myths, recent trends and updates)

4.1 बौद्धिक अक्षमता की बुनियादी समझ, – परिभाषा, अर्थ और विवरण, (अवधारणा, एटियोलॉजी, व्यापकता, घटना, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य, मिथक, हालिया रुझान और अपडेट)

बौद्धिक अक्षमता की बुनियादी समझ:

बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability) एक ऐसी स्थिति है जो विभिन्न कारणों से मस्तिष्कीय कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है, जिसके कारण मानसिक और शारीरिक विकास अपेक्षाकृत धीमा होता है।

  • अवधारणा: मानसिक मंदता का कोई एक रूप नहीं होता, बल्कि इसकी गंभीरता और प्रकार विभिन्न हो सकते हैं। यह मानसिक विकास में किसी प्रकार की रुकावट या मंदता का परिणाम हो सकता है। सभी मानसिक मंद बच्चों की समस्याएं और गंभीरता अलग-अलग होती हैं।
  • एटिओलॉजी (कारण): मानसिक मंदता के कारणों में आनुवंशिक, जैविक, पर्यावरणीय, या संज्ञानात्मक विकास से संबंधित कारक हो सकते हैं। इसके कारण से संबंधित वैज्ञानिक शोध और पारिवारिक इतिहास में विविधता हो सकती है।
  • व्यापकता (Prevalence): मानसिक मंदता की व्यापकता में विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कारक भी प्रभाव डाल सकते हैं। यह समाज और प्रौद्योगिकी के विकास के साथ बढ़ता और घटता रहता है।
  • घटना (Incidence): मानसिक मंदता का घटना दर विभिन्न समाजों और क्षेत्रों में अलग-अलग हो सकता है।
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: मानसिक मंदता का इतिहास प्राचीन समाजों में भी देखा गया था। पहले इसके इलाज और समझ के तरीके सीमित थे, लेकिन आधुनिक चिकित्सा और मनोविज्ञान में इसे अधिक सटीक तरीके से समझा और इलाज किया जाता है।
  • सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य: विभिन्न सांस्कृतिक समूहों में मानसिक मंदता को लेकर धारणाएं और दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ समाजों में इसे सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है, जबकि अन्य में इसका इलाज और सामाजिक समर्थन बेहतर होता है।
  • मिथक: मानसिक मंदता को लेकर कई मिथक प्रचलित हैं, जैसे कि मानसिक मंदता वाले व्यक्ति हमेशा शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं या वे सीखने में सक्षम नहीं होते। हालांकि, यह तथ्य सही नहीं है, और मानसिक मंदता वाले व्यक्ति भी अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर सकते हैं।
  • हाल के रुझान और अपडेट: हाल के वर्षों में मानसिक मंदता के इलाज और प्रबंधन में कई नई विधियां आई हैं, जैसे इंटेग्रेटेड शिक्षा, संज्ञानात्मक प्रशिक्षण, और सामाजिक कौशल का विकास, जिनसे व्यक्तियों को उनकी क्षमता के अनुसार सुधार और विकास में मदद मिलती है।

Special Diploma, IDD, Paper -2, CHARACTERISTICS OF CHILDREN WITH DEVELOPMENTAL DISABILITIES, Unit-4
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मानसिक मंदता पर परिभाषा:

अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ मेंटल रिटार्डेशन (AAIDD) के अनुसार मानसिक मंदता एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति की सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता औसत से कम होती है और विकासात्मक अवधि के दौरान यह कमी सामाजिक और व्यक्तिगत व्यवहार में दिखाई देती है।

  • बुद्धि लब्धांक (IQ): मानसिक मंदता का माप प्रायः बुद्धि लब्धांक (IQ) के माध्यम से किया जाता है। औसतन IQ 100 होता है, और मानसिक मंदता वाले व्यक्ति का IQ 70 से कम होता है।
  • अनुकूल व्यवहार: इसका मतलब यह है कि व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने की क्षमता आयु के अनुसार कम होती है। उदाहरण के लिए, एक 10 वर्ष के बच्चे से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने दैनिक जीवन के कार्य (जैसे खाना खाना, शौच जाना, स्नान करना) खुद कर सके, लेकिन मानसिक मंदता वाले बच्चे को यह कार्य करने में कठिनाई हो सकती है।

यदि वह स्वयं देखरेख संबंधी कार्य नहीं कर पाता है और रुपये-पैसों को पहचानता नहीं है, तो उसके अनुकूलन व्यवहार में कमी मानी जाती है।

परिभाषा का तीसरा पहलू विकासात्मक अवधि से है, जिसे गर्भधारण से लेकर 18 वर्ष तक की आयु तक स्पष्ट किया गया है।

अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेंटल डिफीसिएंसी का नाम अमेरिकन एसोसिएशन ऑन मेंटल रिटार्डेशन के रूप में बदलने के बाद, मानसिक मंदता को समय-समय पर अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है, जिसका वर्णन इस प्रकार है:

AAMR 1983 के अनुसार :- मानसिक मंदता का तात्पर्य सामान्य बौद्धिक क्रियाशीलता के औसत स्तर में अर्थपूर्ण कमी से है, जिसके परिणामस्वरूप अनुकूलन व्यवहार में क्षति होती है और यह विकास की अवधि के दौरान अभिव्यक्त होता है।

AAMR 2002 के अनुसार :- मानसिक मंदता एक अक्षमता है, जिसमें बुद्धि लब्धि और अनुकूलन व्यवहार दोनों सीमित हो जाते हैं, जो वैचारिक, सामाजिक तथा व्यवहारिक कौशलों में प्रदर्शित उम्र से पहले होती है। यह अक्षमता 18 वर्ष की आयु से पहले होती है।

मानसिक मंदता की व्यापकता (Prevalence of Mental Retardation):

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (1991) के अनुसार पूरी आबादी का लगभग 2-3 प्रतिशत व्यक्ति मानसिक रूप से मंद है। भारत में मानसिक मंदता की व्यापकता निर्धारित करने के लिए कोई व्यवस्थित राष्ट्रीय सर्वेक्षण नहीं किया गया है। राष्ट्रीय सर्वेक्षण (2001) भी मानसिक मंदता के सर्वेक्षण के लिए असफल रहा है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि हमारे देश में 2 करोड़ अतिअल्प मानसिक मंद हैं तथा लगभग 40 लाख लोग अल्प एवं गंभीर रूप से मानसिक मंदता से ग्रसित हैं।

मानसिक मंदता की रोकथाम (Prevention of Mental Retardation):

थोड़ी सी रोकथाम परिस्थितियों में महत्वपूर्ण होती है। सामान्य तौर पर कहा जाता है कि उपचार से अधिक सावधानी और रोकथाम महत्वपूर्ण है। इसलिए मानसिक मंदता से बचने के लिए विभिन्न प्रकार की सावधानी बरतने के सुझाव दिए जाते हैं। ये सावधानियाँ विभिन्न अवस्थाओं में अलग-अलग तरीके से रखनी चाहिए। ये महत्वपूर्ण अवस्थाएँ इस प्रकार हैं:

  1. गर्भधारण से पहले की अवस्था।
  2. गर्भकालीन अवस्था।
  3. प्रसव के दौरान की अवस्था।
  4. प्रसव के बाद की अवस्था।

1. गर्भधारण से पहले की अवस्था में रोकथाम के उपाय:

किसी भी बच्चे को जन्म देने के लिए न सिर्फ माता-पिता को शारीरिक रूप से स्वस्थ और परिपक्व होना चाहिए, बल्कि मानसिक रूप से तैयार होना भी आवश्यक होता है। इस अवस्था में ध्यान देने योग्य कुछ अन्य बातें इस प्रकार हैं:

  • सबसे पहले, माँ बनने की आयु 20-30 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
  • माँ की कम या अधिक आयु मानसिक मंदता का जोखिम बढ़ाती है।
  • सगे-सम्बन्धियों (खून के रिश्ते) में शादी नहीं करनी चाहिए।
  • शादी से पहले रक्त समूह की जांच कराना अनिवार्य होता है।
  • अनुवांशिक परामर्श भी मंदबुद्धि बच्चे होने की संभावना को कम कर सकता है।

2. गर्भकालीन अवस्था में रोकथाम के उपाय:

यह बच्चे के लिए सबसे अधिक संवेदनशील अवस्था होती है। चिकित्सकीय तौर पर इसे तीन भागों में बांटा गया है:

  1. प्रथम त्रैमासिक (ट्राइमेस्टर) – गर्भधारण से 3 माह की अवधि।
  2. द्वितीय त्रैमासिक (ट्राइमेस्टर) – गर्भावस्था की 3-6 माह की अवधि।
  3. तृतीय त्रैमासिक (ट्राइमेस्टर) – गर्भावस्था की 6-9 माह की अवधि।

उपरोक्त तीनों ट्राइमेस्टर में प्रत्येक का महत्व एक दूसरे से कम नहीं है, परन्तु प्रथम ट्राइमेस्टर ज्यादा संवेदनशील होता है। इसमें स्वतः गर्भपात और रक्तपात की संभावना बनी रहती है। गर्भावस्था में ध्यान देने योग्य अन्य महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं:

  • गर्भावस्था में समय-समय पर गर्भवती महिला की चिकित्सकीय जांच अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
    इस प्रकार, यदि किसी तरह की असामान्यता, बीमारी और संक्रमण होता है तो इससे बचा जा सकता है।
  • प्रारंभिक जांच के अंतर्गत रक्त, मूत्र और रक्तचाप आदि की जांच अनिवार्य है।
    रक्त जांच द्वारा हीमोग्लोबिन का प्रतिशत तथा गर्भवती स्त्री के रक्त समूह की जांच भी की जाती है ताकि जरूरत पड़ने पर रक्तदान में मदद हो सके। आर.एच. फैक्टर ऋणात्मक या धनात्मक है, इसकी जांच भी की जाती है। एल्बुमिन की मात्रा मूत्र जांच द्वारा पता की जाती है, जिससे विषाक्तता से बचा जा सकता है।
  • पोषाहार पर ध्यान देना चाहिए:
    विशेषकर भोजनों में आयरन, प्रोटीन, और विटामिन युक्त आहार की प्रचुरता विशेष होनी चाहिए।
  • समय पर आवश्यक टीके लगवाना चाहिए।
    संक्रमण से बचना चाहिए, विशेषकर मीजल्स, रूबेला और सिफलिस से।
  • अनावश्यक एवं बिना परामर्श के दवाइयाँ लेने से बचना चाहिए।
  • शराब और तंबाकू के उपयोग से बचना चाहिए।
  • अत्यधिक शारीरिक कार्य और मानसिक तनाव से बचना चाहिए।
  • एक्स-रे और रासायनिक पदार्थों से बचना चाहिए।
  • यदि गर्भपात कराना अनिवार्य हो, तो योग्य चिकित्सक से कराना चाहिए।
  • शारीरिक चोट, स्कूटर की सवारी या लंबी यात्रा से बचना चाहिए।
  • यदि पहले से अनुवांशिकता की समस्या वाली संतान रही हो, तो इससे संबंधित परीक्षण हेतु संपर्क करना चाहिए।
  • गर्भवती स्त्री को पर्याप्त आराम, नींद और शुद्ध हवा की जरूरतों को पूरा करना चाहिए।

3. प्रसव के दौरान रोकथाम के उपाय:

कुशल एवं साफ-सुथरा प्रसव के लिए सही और साधनयुक्त जगह का चुनाव करना आवश्यक होता है। बच्चे और माँ के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रसव के समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  • मानसिक मंदता की रोकथाम हेतु प्रसव के दौरान अच्छी देखभाल आवश्यक है।
    प्रसव के समय मस्तिष्क को चोट पहुँचने से बचाना चाहिए। प्रसव के दौरान औजार के प्रयोग से सिर में चोट की संभावना रहती है, इसलिए इस स्थिति से बचाना चाहिए।
  • प्रसव प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों से ही करवाना चाहिए ताकि जटिल स्थिति से बचा जा सके।
  • यदि गर्भाशय में गर्भ की स्थिति असामान्य हो या बहुत लंबे समय से दर्द हो रहा हो तो योग्य चिकित्सक से ही प्रसव कराना चाहिए।
  • जन्म के समय अनावश्यक दवा या ऑक्सीटोसिन दवा का अनुचित प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • अनावश्यक मालिश वगैरह से बचना चाहिए।

4. प्रसव के उपरांत रोकथाम के उपाय:

प्रसव के उपरांत बच्चे की सही देखभाल, खानपान और पोषण आवश्यक होता है। अतः इस समय में शिशु के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

  • नवजात शिशु के सिर को चोट से बचाना चाहिए।
  • शिशु के पोषण के लिए जन्म के बाद जांच पड़ताल के तुरंत बाद से ही माँ का दूध देना चाहिए।
    इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बहुत सारी बीमारियों से बच्चे की सुरक्षा होती है।
  • जन्म के बाद पहले सप्ताह से ही टीकाकरण शुरू हो जाता है। बी.सी.जी., पोलियो, खसरा, काली खाँसी और हेपेटाइटिस बी के टीके समयानुसार लगवाते रहना चाहिए।
  • बच्चे को अति ज्वर से बचाना चाहिए। यदि तेज बुखार हो तो ठंडे पानी की पट्टियों का उपयोग करना चाहिए।
  • सफाई का ध्यान रखते हुए संक्रमण से बच्चे की सुरक्षा करनी चाहिए।
  • यदि बच्चे की विकास प्रक्रिया धीमी हो तो चिकित्सक से उचित सलाह लेनी चाहिए।

बच्चे का सही पोषण, समय पर टीकाकरण और व्यक्तिगत सफाई इत्यादि विभिन्न मुद्दों पर ध्यान देकर मानसिक मंदता से बचाव किया जा सकता है।

1. फैजाइल-X सिन्ड्रोम (Fragile X Syndrome):

यह गुणसूत्रीय विकृति से संबंधित स्थिति है, जिससे पीड़ित व्यक्तियों में मानसिक मंदता के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इसकी पहचान सर्वप्रथम 1943 ई. में हुई थी, लेकिन इसकी औपचारिक पहचान और चर्चा में आना 1978 ई. में शुरू हुआ। लुब्स (Lubs) ने सर्वप्रथम 1868 ई. में फैजाइल एक्स स्थान (Fragile X site) को खोजा था। डाउन सिन्ड्रोम के बाद, मानसिक मंदता के नैदानिक प्रकारों में यह प्रमुख है। यह एक प्रमुख कारण है, जिससे मानसिक मंदता पुरुषों में अधिक होती है।

इसकी उत्पत्ति X गुणसूत्र के अनुपयुक्त निर्माण के कारण होती है। इसमें X गुणसूत्र की छोटी बाँह का सिरा संकुचित (restricted) दिखाई देता है। वर्तमान में उस स्थान (region) की खोज कर ली गई है, जो इसके लिए उत्तरदायी जीन को रखता है। इस जीन की व्यापकता दर पुरुषों में 1,500 में 1 तथा स्त्रियों में 1,000 में 1 है। इसकी निदान या पहचान जन्म के पूर्व भी किया जा सकता है, लेकिन प्रायः यह बाद में पहचाना जाता है।

नैदानिक पहचान:
इसकी पहचान प्रायः प्रारंभिक बाल्यावस्था में विकासात्मक ह्रास या बढ़े हुए कानों के अवलोकन के आधार पर की जाती है।

लक्षण:
इसके सामान्य लक्षणों में प्रमुख हैं:

  • जबड़ा का बड़ा होना (Prominent Jaws)
  • मैक्रोआर्चडिस्म (Macroorchidism)
  • लंबा और पतला चेहरा
  • लंबा और मुलायम कान
  • सिर के अग्रभाग (Forehead) का बड़ा होना
  • सिर का अपेक्षाकृत बड़ा होना

इसके अतिरिक्त, इससे पीड़ित बच्चों में मानसिक मंदता के लक्षण भी देखे जाते हैं। इन व्यक्तियों में बुद्धिलब्धि का स्तर तीव्र से लेकर अतितीव्र तक हो सकता है, जबकि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें बुद्धिलब्धि का सामान्य स्तर होता है।
फैजाइल एक्स सिन्ड्रोम से ग्रसित पुरुषों में नपुंसकता के लक्षण भी देखने को मिलते हैं। इससे पीड़ित स्त्रियाँ इसकी वाहक होती हैं और यह स्थिति दूसरी पीढ़ी तक पहुँच सकती है। इस विकृति से ग्रसित कुछ बच्चों में स्वलीनता के लक्षण भी देखे जाते हैं।

उपचार:
इस स्थिति का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन वर्तमान समय में इसके उपचार के लिए फोलिक अम्ल (Folic Acid) की चिकित्सा प्रविधि का उपयोग किया जा रहा है।


5.डाउन सिन्ड्रोम (Down Syndrome):

इतिहास:
डाउन सिन्ड्रोम की चर्चा सर्वप्रथम लैंगडॉन डाउन (Langdon Down) ने 1866 में की थी। यह मानसिक मंदता से ग्रसित व्यक्तियों में सबसे प्रमुख और सामान्य प्रकार है।

कारण:
इस विकृति का मुख्य कारण ट्राईसोमी 21 है, जो गुणसूत्र के 21 वें युग्म में पाया जाता है। इसमें कोशिका विभाजन के दौरान गुणसूत्र पूरी तरह से अलग नहीं हो पाते, जिससे कोशिका में एक अतिरिक्त गुणसूत्र (47 की संख्या) बन जाता है। यह विकृति आमतौर पर अधिक उम्र में गर्भधारण, औषधियों, विकिरण, रासायनिक तत्वों का सेवन, और विषाणु संक्रमण से उत्पन्न होती है।

विकृति के प्रकार:

  1. ट्राईसोमी 21 (Trisomy-21):
    इस स्थिति में कोशिका विभाजन के दौरान गुणसूत्र अलग नहीं हो पाते और कोशिका में एक अतिरिक्त गुणसूत्र (47) हो जाता है। यह विकृति मुख्य रूप से माता की उम्र से जुड़ी होती है।
  2. ट्रांसलोकेशन टाइप (Translocation Type):
    यह विकृति दो अलग-अलग गुणसूत्रों के युग्मन से होती है, विशेष रूप से 13, 15 और 21 वें गुणसूत्रों के बीच। यह एक अनुवांशिक स्थिति है और माता की गर्भधारण अवस्था से संबंधित नहीं होती है।
  3. मोजेसिज्म (Mosaicism):
    इसमें कोशिका विभाजन ठीक से नहीं होता और व्यक्ति में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं— कुछ कोशिकाओं में 47 गुणसूत्र होते हैं जबकि अन्य में 46 होते हैं। इससे व्यक्ति में सामान्य और ट्राईसोमी कोशिकाओं का मोजेक दिखता है।

लक्षण:
डाउन सिन्ड्रोम से प्रभावित बच्चों में निम्नलिखित लक्षण देखे जाते हैं:

  • हृदय संबंधित विकृति
  • पेशीय टोन (Muscle Tone) में कमी
  • श्वसन संबंधी विकृति
  • लैंगिक अपरिपक्वता

जीवनकाल:
अनुसार इनका जीवनकाल 1 से बढ़कर 30 वर्ष चिपटा तक पहुँच गया है। ऐसे व्यक्तियों में मुख्य रूप से मध्यम स्तर की मानसिक मंदता देखने को मिलती है।

शारीरिक विशेषताएँ:

  • छोटा कद
  • चौड़ा चेहरा
  • छोटा कान और नाक
  • चौड़े हाथ और छोटी घुमावदार अंगुलियाँ
  • हथेली पर एक लंबी और गहरी लकीर
  • हाइपोटोनिया (कम पेशीय टोन)
  • अतिलचीलापन
  • अनुपयुक्त लैंगिक विकास
  • छोटा सिर
  • घुमावदार और लंबी जीभ

स्वास्थ्य सम्बंधी विकृतियाँ:

  • ल्यूकेमिया
  • कान और नेत्र संबंधित संक्रमण
  • मोटापा
  • त्वचा संबंधित विकृति
  • स्मृति संबंधित विकृति

उपचार:
इनके उपचार में अतिशीघ्र हस्तक्षेप के साथ-साथ वर्तमान समय में प्लास्टिक सर्जरी का बहुत उपयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, अनुवांशिकी परामर्श, भौतिक और शारीरिक शिक्षा, उपचार, शारीरिक अभ्यास तथा जैविक चिकित्सा का उपयोग किया जाता है।


प्राडर विली सिन्ड्रोम (Prader Willi Syndrome):
यह भी एक गुणसूत्रीय विकृति से संबंधित स्थिति है, जो मानसिक मंदता उत्पन्न करती है। इसका मुख्य कारण 15वें गुणसूत्र में आंशिक कमी (Deletion) होता है। इस कमी में गुणसूत्र में पाये जाने वाले कुछ मूलतत्व अनुपस्थित होते हैं। इसे अन्तःस्रावी ग्रंथि की विकृति भी माना जाता है।

लक्षण:

  • गामक और बौद्धिक विकास देर से होना
  • लैंगिक विकास अपरिपक्व होना
  • अधिक भूख लगना
  • छोटा कद
  • अल्प से मध्य स्तर की मानसिक मंदता
  • अधिगम अक्षमता
  • बच्चों में भूख अधिक लगना और खाने के लिए सदैव तत्पर रहना

उपचार:
इसके उपचार और प्रबंधन की दिशा में अभी भी काम जारी है। इसके प्रबंधन में आरंभिक हस्तक्षेप, खानपान संबंधित हस्तक्षेप, अधिक कैलोरी वाले खाने की चीज़ों पर रोक प्रमुख हैं।


4.2, Classification of students with ID, learning environment and learning (ID, सीखने के माहौल और सीखने के साथ छात्रों का वर्गीकरण)

चिकित्सा वर्गीकरण:

  1. संक्रमण और नशा
  2. आघात या शारीरिक चोट
  3. चयापचय या पोषण
  4. सकल मस्तिष्क रोग (प्रसवोत्तर)
  5. ज्ञात जन्मपूर्व प्रभाव
  6. असामान्य असामान्यता
  7. गर्भकालीन विकार
  8. मानसिक विकार
  9. पर्यावरणीय प्रभाव
  10. अन्य प्रभाव

मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण (AAMR 1983 के आधार पर):

मानसिक मंदता के लिए परिचालन वर्गीकरण इस प्रकार है:

  1. बुद्धिलब्धि सीमा रेखाबद्ध मानसिक मंदता -(70-85 या 90)
  2. अति अल्प मानसिक मंदता- (50-70)
  3. अल्प मानसिक मंदता -(35-50)
  4. गंभीर मानसिक मंदता- (20-35)
  5. अति गंभीर मानसिक मंदता -(20 से नीचे)
  1. बुद्धिलब्धि सीमा रेखाबद्ध मानसिक मंदता (70-85 या 90)
    इस श्रेणी में व्यक्तियों की मानसिक स्थिति सामान्य से थोड़ा कम होती है। वे स्वतंत्र रूप से जीवन जी सकते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में उन्हें अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता हो सकती है।
  2. अति अल्प मानसिक मंदता (50-70)
    इस श्रेणी के व्यक्तियों को जीवन में कुछ आधारभूत कार्यों के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। वे सामान्य शैक्षिक वातावरण में कठिनाइयों का सामना करते हैं लेकिन उचित सहायता और ध्यान से कार्यों को पूरा कर सकते हैं।
  3. अल्प मानसिक मंदता (35-50)
    इस श्रेणी में व्यक्तियों को दैनिक कार्यों के लिए निरंतर सहायता की आवश्यकता होती है। वे शैक्षिक और सामाजिक स्थितियों में महत्वपूर्ण कठिनाइयों का सामना करते हैं।
  4. गंभीर मानसिक मंदता (20-35)
    इस श्रेणी के व्यक्तियों को उच्च स्तर की निरंतर सहायता की आवश्यकता होती है। उनका मानसिक विकास बहुत धीमा होता है और उन्हें ज्यादातर कार्यों में सहायता की आवश्यकता रहती है।
  5. अति गंभीर मानसिक मंदता (20 से नीचे)
    इस श्रेणी में व्यक्तियों को अधिकतम सहायता की आवश्यकता होती है। उनके पास बहुत सीमित मानसिक और शारीरिक क्षमता होती है, और वे अधिकतर समय अन्य लोगों पर निर्भर रहते हैं।

समर्थन के स्तर (AAMR):

  • आंतरायिक समर्थन (Intermittent Support): यह “आवश्यकतानुसार” आधार पर प्रदान किया जाता है, और जीवन के संक्रमणों में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है (जैसे स्कूल से काम पर जाना)।
  • सीमित समर्थन (Limited Support): लगातार समर्थन की आवश्यकता होती है, हालांकि यह दैनिक आधार पर नहीं होती। यह समर्थन गैर-गहन प्रकृति का होता है।
  • व्यापक समर्थन (Extensive Support): दैनिक व्यापक समर्थन की आवश्यकता होती है, जो कई वातावरणों में होता है, जैसे कि घर में रहने के लिए।
  • गहन समर्थन (Pervasive Support): जीवन के सभी पहलुओं में अत्यधिक समर्थन की आवश्यकता होती है, जो एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करता है।

शिक्षण रणनीतियाँ:
बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए समावेशी शिक्षण में विभिन्न रणनीतियाँ मददगार हो सकती हैं:

  • अवधारणाओं का अभ्यास: प्रमुख अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करें और उनके अभ्यास के अवसर प्रदान करें।
  • पठनीय सूची: पाठ्यक्रम के प्रारंभ से पहले पढ़ने की सूची प्रदान करें ताकि छात्रों को जल्दी शुरू करने में मदद मिले।
  • गहन अध्ययन: कई ग्रंथों के बजाय कुछ ग्रंथों पर गहन अध्ययन करें।
  • चरणबद्ध निर्देश: किसी प्रक्रिया या अभ्यास के लिए स्पष्ट चरणों और अनुक्रम को मौखिक और लिखित रूप में समझाएं।
  • सहायक तकनीक का उपयोग: विभिन्न सहायक तकनीकों का उपयोग छात्रों को उनके शैक्षिक प्रयासों में मदद करने के लिए किया जा सकता है।

4.3, Understanding Strengths and Needs of Learners with Intellectual Disabilities ( बौद्धिक अक्षमता वाले शिक्षार्थियों की शक्तियों और आवश्यकताओं को समझना)


बौद्धिक विकलांग शिक्षार्थियों की ताकत और जरूरतों को समझना सकारात्मक मनोविज्ञान के क्षेत्र में चरित्र विज्ञान के उदय के साथ जुड़ा हुआ है, जो विकलांगता के क्षेत्र में होने वाले बदलावों को प्रतिबिंबित करता है। पहले विकलांगता को एक कमी के रूप में देखा जाता था, लेकिन अब इसे एक समग्र दृष्टिकोण से समझने का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें विकलांगता के साथ जीने की शक्ति और संभावना को पहचानने पर जोर दिया जाता है।

केंद्रित है, ताकत-आधारित दृष्टिकोण जो यह मानते हैं कि विकलांग लोगों के पास, व्यक्तिगत दक्षताओं को भी समझने की जरूरत है और योजना का समर्थन करने के लिए मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए, विकलांग शिक्षा अधिनियम (2004) विशेष रूप से कहता है कि 16 वर्ष और उससे अधिक उम्र के युवाओं को स्कूल से वयस्क दुनिया में संक्रमण का समर्थन करने के लिए प्रदान की जाने वाली संक्रमण सेवाओं को “बच्चे की ताकत, वरीयताओं और रुचियों” को ध्यान में रखना चाहिए। यह जनादेश अनुसंधान के बढ़ते निकाय द्वारा संचालित है जो विकलांगता वाले युवाओं में मौजूद ताकत का दस्तावेज है जो संक्रमण प्रक्रिया को सूचित कर सकता है और ताकत के आधार पर सूचित सार्थक आईईपी और संक्रमण लक्ष्यों को विकसित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

इसी तरह, शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा है कि विकलांग वयस्कों के लिए समर्थन और व्यक्तिगत समर्थन योजनाओं को एक ताकत के परिप्रेक्ष्य से संचालित किया जाना चाहिए जो व्यक्ति की ताकत, रुचियों, वरीयताओं और जीवन लक्ष्यों पर विचार करते हुए क्षमता और डिजाइन का समर्थन करता है। सामान्य आबादी में, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन में चरित्र शक्तियों का उपयोग कई सकारात्मक परिणामों से जुड़ा हुआ है और यह कि किसी की चरित्र शक्तियों को समझना बाधाओं को दूर करने के लिए समर्थन की प्रणाली बनाने के साधन के रूप में कार्य कर सकता है। बौद्धिक और विकासात्मक अभिनेता और विकलांग लोगों को उनके चरित्र की ताकत को समझने और इन चरित्र शक्तियों को शैक्षिक और समर्थन प्रावधान में रणनीतियों को विकसित करने के लिए कार्य करने की के और विकासा आवश्यकता है। को कुल मिलाकर, रणनीतियों के कई अनुप्रयोग हैं जो चरित्र की ताकत पर निर्माण करते हैं जो बौद्धिक और विकासात्मक विकलांग लोगों द्वारा अनुभव किए गए समर्थन और परिणामों की प्रणाली को बढ़ा सकते हैं।

सकारात्मक मनोविज्ञान और संबंधित क्षेत्रों में गतिविधियों और अनुसंधान को अनुकूलित किया जा सकता है और उन संदर्भों पर लागू किया जा सकता है जिनमें बौद्धिक और विकासात्मक विकलांग लोग अपना जीवन जीते हैं। हालाँकि, बौद्धिक और विकासात्मक अक्षमता के क्षेत्र में इन दृष्टिकोणों के व्यवस्थित विकास और मूल्यांकन की आवश्यकता है, और विभिन्न प्रकार की समर्थन आवश्यकताओं वाले लोगों के लिए ऐसे दृष्टिकोणों को अनुकूलित करने के लिए दिशा-निर्देश विकसित और मूल्यांकन किए गए हैं।

➤ आईडी वाले बच्चे कार्यकारी कामकाज में ताकत और कमजोरियों का प्रदर्शन करते हैं। का

आईडी वाले बच्चे मानसिक आयु उपयुक्त प्रवाह और स्विचिंग दिखाते हैं।

आईडी वाले बच्चों को अवरोध और योजना बनाने में समस्या होती है।

आईडी वाले बच्चों को मौखिक कार्यकारी-भारित कार्यशील स्मृति की समस्या होती है।

मानसिक आयु और अनुभव अलग-अलग कार्यकारी कार्यों से अलग-अलग संबंधित हैं।


4.4 Learning characteristics, Cognitive process, Sequential processing of information in children with ID
(आईडी वाले बच्चे के सीखने की विशेषताएं, संज्ञानात्मक प्रक्रिया, सूचना का अनुक्रमिक प्रसंस्करण)

अकादमिक प्रदर्शन (Academic Performance) :- बौद्धिक अक्षमता वाले छात्र शैक्षणिक कौशल विकसित करने में साथियों के ग्रेड स्तर को बनाए रखने में विफल रहते हैं। ये छात्र पढ़ना सीखने में और बुनियादी गणित कौशल सीखने में धीमे होते हैं इन छात्रों में भाषा कौशल में भी देरी होती है जो लेखन, वर्तनी और विज्ञान जैसे अन्य शैक्षणिक क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है।

संज्ञानात्मक प्रदर्शन (Cognitive Performance)
संज्ञान में ध्यान, स्मृति और सामान्यीकरण जैसे तीन पहलू शामिल हैं।

ध्यान (Attention)
छात्रों को भाग लेने में कठिनाई होती है, जैसे कि उन्हें “कार्य की ओर उन्मुख होने का अर्थ है कि उन्हें कार्य की दिशा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जबकि उन्हें चयनात्मक ध्यान देना चाहिए कि उन्हें केवल प्रासंगिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि महत्वहीन कार्यों और निरंतर ध्यान इसका मतलब है कि समय की अवधि के लिए कार्य जारी रखें लेकिन बौद्धिक कठिनाइयों वाले छात्र इन ध्यानों को प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

स्मृति (Memory)
छात्रों को जानकारी याद रखने में कठिनाई होती है, उदाहरण के लिए, उन्हें तथ्यों या वर्तनी को याद रखने में समस्या हो सकती है या यदि उन्हें यह जानकारी एक दिन याद रहती है, तो वे अगले दिन इसे भूल सकते हैं।

सामान्यीकरण (Generalization)
बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों को अन्य सामग्री या सेटिंग्स में जानकारी को सामान्य बनाने में कठिनाई हो सकती है। उदाहरण के लिए, वह एक विषय क्षेत्र में एक नया शब्द सीख सकता है लेकिन दूसरे विषय में एक ही शब्द सीखने में कठिनाई हो सकती है।

सामाजिक कौशल प्रदर्शन
बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों की संज्ञानात्मक विशेषताएं भी सामाजिक रूप से बातचीत करने में कठिनाई पैदा कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, निम्न स्तर का संज्ञानात्मक विकास और धीमी भाषा विकास एक छात्र को मौखिक संचार और अपेक्षाओं को समझने में समस्या का कारण बन सकता है। इसी तरह ध्यान में कठिनाई और स्मृति के साथ कठिनाई भी छात्रों की सामाजिक बातचीत को इस तरह से प्रभावित कर सकती है। बौद्धिक अक्षमता वाले छात्र अपनी क्षमताओं में व्यापक रूप से भिन्न होते हैं। विशिष्ट विशेषताओं में शामिल हैं:

  • सामान्य सीखने की क्षमता में हल्के से महत्वपूर्ण कमजोरियां
  • सभी शैक्षणिक क्षेत्रों में कम
  • स्मृति और प्रेरणा में कमी
  • असावधान / विचलित करने वाला
  • खराब सामाजिक कौशल
  • अनुकूली व्यवहार में कमी
  • कुछ असामान्य लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • कुछ को गंभीर चिकित्सीय स्थितियां हो सकती हैं।

अनुक्रमिक प्रसंस्करण (Sequential processing)
अनुक्रमिक प्रसंस्करण में जटिल जानकारी को धारावाहिक संरचनाओं में परिवर्तित करना और इसके विपरीत, या धारावाहिक संरचनाओं को एक प्रारूप से दूसरे प्रारूप में परिवर्तित करना शामिल है। अनुक्रमिक प्रसंस्करण की जांच के लिए दो मौलिक और पारस्परिक रूप से ऑर्थोगोनल पहलू प्रासंगिक हैं: अनुक्रम की प्रकृति संसाधित की जाती है। अक्सर यह कहा जाता है कि बौद्धिक अक्षमता वाले लोगों को ‘सीखना, सीखना और सीखना’ चाहिए। इसका मतलब यह है कि उन्हें भविष्य में जानकारी को समझने और बनाए रखने के लिए अवधारणाओं और कौशल का अभ्यास करने के लिए कई अवसरों की आवश्यकता हो सकती है।
बौद्धिक अक्षमता वाले व्यक्ति (आईडी, पूर्व में मानसिक मंदता) अन्य शिक्षण चुनौतियों वाले लोगों को पढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली समान शिक्षण रणनीतियों से लाभान्वित होते हैं।

इसमें सीखने की अक्षमता, अटेंशन डेफिसिट/हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर और ऑटिज्म शामिल हैं।

शिक्षण रणनीतियाँ:

  1. सीखने के कार्यों को छोटे-छोटे चरणों में तोड़ना:
    प्रत्येक सीखने का कार्य एक समय में एक कदम में पेश किया जाता है। एक बार जब छात्र एक कदम में महारत हासिल कर लेता है, तो अगला कदम पेश किया जाता है। यह एक प्रगतिशील, चरणबद्ध, सीखने का दृष्टिकोण है।
  2. शिक्षण दृष्टिकोण को संशोधित करना:
    अधिकांश दर्शकों के लिए लंबे मौखिक निर्देश और अमूर्त व्याख्यान अप्रभावी होते हैं। आईडी वाले छात्रों के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण विशेष रूप से सहायक होता है। उदाहरण के लिए, गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा को सिखाने के कई तरीके हैं – शिक्षक इसे अमूर्त रूप में बता सकते हैं, प्रदर्शन कर सकते हैं, या छात्रों से इसे सीधे अनुभव करने के लिए कह सकते हैं।
  3. दृश्य एड्स का उपयोग करना:
    आईडी वाले लोग सीखने के माहौल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं जहाँ दृश्य एड्स का उपयोग किया जाता है। इसमें चार्ट, चित्र, और ग्राफ शामिल हो सकते हैं। ये उपकरण छात्रों को समझने में मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए उपयोगी होते हैं कि उनसे कौन से व्यवहार की अपेक्षा की जाती है।
  4. प्रत्यक्ष और तत्काल प्रतिक्रिया प्रदान करना:
    आईडी वाले व्यक्तियों को तत्काल प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। यह उन्हें अपने व्यवहार और शिक्षक की प्रतिक्रिया के बीच संबंध बनाने में मदद करता है। प्रतिक्रिया देने में देरी के कारण और प्रभाव के बीच संबंध बनाना मुश्किल हो सकता है, जिससे सीखने का बिंदु छूट सकता है।

4.5, Level of intellectual disability and its relevance to learning characteristics (बौद्धिक अक्षमता का स्तर और सीखने की विशेषताओं के लिए इसकी प्रासंगिकता)

Mild Intellectual Disability (अति अल्प मानसिक मंदता):
इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 के बीच होती है। यह बच्चे सामान्य विद्यालय पाठ्यक्रम से कक्षा 5 तक की पढ़ाई करने में सक्षम होते हैं। सामाजिक कौशल, क्रियात्मक शिक्षण कौशल, गामक एवं सूक्ष्म गामक कौशल, दैनिक क्रिया कौशल इत्यादि में ये पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होते हैं।।

यह व्यवसायिक दृष्टि से भी निर्देशन एवं सहयोग से स्वरोजगार या खुले रोजगार करने में सक्षम होते हैं। ये समाज में अच्छे संबंध बना सकते हैं और सामान्य बच्चों की तुलना में कुछ हद तक अंतर होते हुए भी शारीरिक बनावट, शक्ल आदि में सामान्य बच्चों से भिन्न नहीं होते हैं

Moderate Intellectual Disability (अल्प मानसिक मंदता):

इस श्रेणी के अंतर्गत 35 से 50 बुद्धि लब्धि वाले बच्चे आते हैं। इनका विकास देर से होता है और इनकी सभी शैक्षिक, सामाजिक, और व्यक्तिगत कौशल में अति अल्प मानसिक मंदता वाले बच्चों से ज्यादा कमी होती है। फिर भी इन्हें उचित प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। यह बच्चे व्यवसायिक प्रशिक्षण लेकर रोजगार में भी लगाए जा सकते हैं और पहली या दूसरी कक्षा तक पढ़ाई कर सकते हैं। ये अपनी देखभाल करना भी सीख सकते हैं।

Severe Intellectual Disability (गंभीर मानसिक मंदता):

इस श्रेणी में 20 से 35 बुद्धि लब्धि वाले बच्चे सम्मिलित होते हैं। इन्हें गामक कौशल और स्वयं की देखभाल कौशल में आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। हालांकि, इन्हें निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है। ये बच्चे अपनी किसी भी मांग को वाणी या इशारे से व्यक्त करते हैं। शारीरिक अक्षमता और वाणी दोष के साथ इन्हें शौच, कपड़ा पहनने, और भोजन संबंधी कार्यों में प्रशिक्षित किया जा सकता है।

Profound Intellectual Disability (अति गंभीर मानसिक मंदता):

इस श्रेणी में 20 से कम बुद्धि लब्धि वाले बच्चे आते हैं। ये बच्चे किसी भी कार्य को करने में अक्षम होते हैं और हमेशा दूसरों पर निर्भर रहते हैं। इनकी सभी आवश्यकताएं विशिष्ट होती हैं और इन्हें निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है। ये बच्चे गामक प्रशिक्षण और चिकित्सकीय उपचार के लिए पूरी तरह से आश्रित होते हैं।


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