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Special Diploma, IDD, Paper-4, Child Development and Learning (बाल विकास और अधिगम) Unit-5

इकाई 5: कक्षा प्रबंधन
5.1 शैक्षिक वातावरण को उत्तेजित करना; शारीरिक और भावनात्मक।
5.2 बच्चों में सामान्य व्यवहारिक समस्याएँ।
5.3 व्यवहार का कार्यात्मक विश्लेषण।
5.4 व्यवहार प्रबंधन तकनीकें: संज्ञानात्मक और व्यवहारिक।
5.5 समावेशी और विशेष कक्षा में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के व्यवहार को संशोधित करना।

Unit 5: Classroom Management
5.1 Stimulating learning environment; physical and emotional.
5.2 Common behavior problems in children.
5.3 Functional analysis of behavior.
5.4 Behavior management techniques: Cognitive and behavioral.
5.5 Modifying behaviors of children with special needs in inclusive and special classrooms.

5.1, सीखने के माहौल को उत्तेजित करना (Stimulating Learning Environment):


एक उत्तेजक कक्षा का माहौल छात्रों की सीखने की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। जब सामग्री रुचिकर होती है और छात्रों को शारीरिक और भावनात्मक रूप से शामिल किया जाता है, तो वे अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और अध्ययन में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। पारंपरिक कक्षा से अधिक संरचित और उत्तेजक माहौल की आवश्यकता होती है, खासकर विशेष शैक्षिक जरूरतों वाले बच्चों के लिए।

कक्षा उत्तेजना के लाभ (Benefits of Classroom Stimulation):
एक उत्तेजक कक्षा में, छात्र सक्रिय रूप से सीखने में भाग लेते हैं, ज्ञान प्राप्त करने के नए तरीके अपनाते हैं और अपने आस-पास की हर चीज़ पर सवाल उठाते हैं। यह उन्हें सीखने की प्रक्रिया में अधिक रुचि पैदा करता है और सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देता है।

Special Diploma, IDD, Paper-4, Child Development and Learning (बाल विकास और अधिगम) Unit-5
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मुख्य क्षेत्रों की पहचान (Key Areas of Stimulation):

  1. संज्ञान और सीखना (Cognition and Learning):
    कुछ विकलांग बच्चों को अमूर्त विचारों और अवधारणाओं को समझने के लिए व्यावहारिक, संवेदी या शारीरिक अनुभवों की आवश्यकता हो सकती है।
  2. व्यवहारिक, भावनात्मक और सामाजिक (Behavioral, Emotional, and Social):
    इस प्रकार के बच्चों के लिए, एक संरचित सीखने का माहौल जरूरी होता है, जिसमें प्रत्येक गतिविधि के लिए स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित होती हैं। यह बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण में काम करने की स्वतंत्रता देता है, जिससे उनका मानसिक और भावनात्मक विकास हो सकता है।
  3. संचार और बातचीत:– यहां, कम स्तर की व्याकुलता के साथ आसानी से समझे जाने वाले वातावरण की आवश्यकता है। चिंता के स्तर को कम करने के लिए संवेदी उत्तेजना को शामिल किया जाना चाहिए। इन विचारों वाले बच्चे भी शांत रहने के लिए सुरक्षित स्थान पर जाने से लाभान्वित हो सकते हैं।
  4. संवेदी या शारीरिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए – संवेदी या शारीरिक कक्षाओं में ध्वनिक और प्रकाश व्यवस्था की स्थिति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है, विशेषज्ञ सहायता, उपकरण या फर्नीचर के अलावा, कुछ अतिरिक्त स्थान और अतिरिक्त साइनपोस्टिंग की आवश्यकता हो सकती है। यह विद्यार्थियों को बिना सहायता प्राप्त और स्वतंत्र रूप से महत्वपूर्ण विचार के लिए अपने पर्यावरण पर बातचीत करने में मदद करने के लिए तैयार है। विशेष शैक्षिक आवश्यकताओं और विकलांग शिक्षार्थियों के लिए एक अनुकूलित वातावरण बनाते समय, ऐसे कई व्यावहारिक मुद्दे हैं जिन पर कुछ विचार करने की आवश्यकता है।

संवेदी तत्व:
एसईएन रिक्त स्थान में प्रकाश, ध्वनिकी, सामग्री और बनावट पर नियंत्रण आवश्यक हो सकता है।

स्वास्थ्य और भलाई:
उपयुक्त शौचालयों की नियुक्ति, स्वच्छता सुविधाओं के माध्यम की जरूरत है। इन सुविधाओं की आवृत्ति, स्थान और पहुंच पर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

सुरक्षा:
आप एक अबाधित स्थान बनाना चाहते हैं जिसमें छात्र, या लोग, जहां उपयुक्त हो, स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ सकें।

आउटडोर तक पहुंच:
जिन ग्राहकों के साथ हमने शिक्षा के स्थान पर भागीदारी की है, बाहरी शिक्षा और कक्षाओं पर जोर देते हुए क्या वह एसईएन के साथ विद्यार्थियों के लिए इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अनुकूलित कर सकते हैं। अक्सर, हमारे क्लासरूम में द्वि-गुना दरवाजे होते हैं, जो पहले से अधिक अनुकूलन के साथ-साथ नाइटडोर्स को अंदर लाने के लिए लचीलेपन की पेशकश करते हैं। छतरियों का उपयोग तत्वों से बचाने और बाहरी स्थानों के उपयोग को प्रोत्साहित पहले करने के लिए किया जा सकता है। एसईएन कक्षा के अच्छे डिजाइन के माध्यम से एक सकारात्मक शिक्षण वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना नितांत आवश्यक है। उपयोगकर्ताओं के दृष्टिकोण को समझना, स्थान का उपयोग, और एक बहु-संवेदी वातावरण की महत्वपूर्ण भूमिका यह सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है कि डिजाइन उद्देश्य के लिए उपयुक्त है।

बहुसंवेदी पाठों के संपर्क में आने से सभी बच्चे लाभान्वित होते हैं, इनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें सीखने या ध्यान देने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है। चाहे सामान्य शिक्षा हो या विशेष शिक्षा, यदि किसी छात्र को एक से अधिक अर्थों का उपयोग करके कुछ सीखने का अवसर मिलता है, तो जानकारी एक यादगार प्रभाव डालने की संभावना है और वह आंतरिक हो गया। हालांकि, सीखने की अक्षमता और संज्ञानात्मक सीमाओं वाले छात्रों के लिए बहुसंवेदी शिक्षण विशेष रूप से सहायक हो सकता है, जिनके पास शिक्षा के एक या अधिक क्षेत्रों में अंतर हो सकता है। उदाहरण के लिए, एक विकलांग छात्र को दृश्य जानकारी संसाधित करने में परेशानी हो सकती है। यह उनके लिए केवल पढ़ने और दृश्य उत्तेजनाओं के माध्यम से जानकारी को सीखना और बनाए रखना चुनौतीपूर्ण बना सकता है। अन्य इंद्रियों का उपयोग करना, जैसे कि स्पर्श या मौखिक, ये बच्चे जो सीख रहे हैं उनके साथ एक मजबूत संबंध बना सकते हैं।

सीखने के वातावरण की भौतिक विशेषताएं महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक और व्यवहारिक परिणामों के साथ, शिक्षार्थियों को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यद्यपि पर्यावरणीय उत्तेजनाओं के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रियाएं व्यक्तियों और गतिविधियों में व्यापक रूप से भिन्न होती हैं, अधिकांश छात्रों को शायद ऐसी कक्षा में सीखना मुश्किल लगता है जो अत्यधिक गर्म होती है। इसके विपरीत, सकारात्मक भावनात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त करने वाले वातावरण से न केवल सीखने में वृद्धि हो सकती है, बल्कि उस स्थान के लिए एक शक्तिशाली, भावनात्मक लगाव भी हो सकता है। यह एक ऐसा स्थान बन सकता है जहां छात्र सीखना पसंद करते हैं, एक ऐसा स्थान जहां वे सीखना चाहते हैं, और एक ऐसा स्थान जिसे वे अपने सीखने के अनुभवों पर प्रतिबिंबित करते समय प्यार से याद करते हैं।

उच्च शिक्षा में, हम अपने छात्रों को सीखने के लिए ऐसे स्थान प्रदान करने की आशा करते हैं, भले ही हम एक और बड़े व्याख्यान कक्ष का निर्माण करते हैं और अपने छात्रों को भीड़-भाड़ वाले, शोर-शराबे वाले और असुविधाजनक स्थानों में निचोड़ने का प्रयास करते हैं। शारीरिक विशेषताओं से सीखने में हस्तक्षेप करने की उम्मीद की जा सकती हैः सकारात्मक भावनात्मक राज्यों का उत्पादन करने वाले वातावरण से सीखने की सुविधा और स्थान लगाव के विकास की उम्मीद की जा सकती है।


Unit:- 5.2 Common behaviour problems in children (बच्चों में सामान्य व्यवहार की समस्याएं):

व्यवहार:
व्यवहार हमारे क्रिया-कलापों का अभाज्य अंग हैं। इसमें बाह्य क्रिया, चिन्तन संवेग, समस्या समाधान के व्यवहारिक पहलू आदि समाहित हैं।

परिभाषा:
किसी उत्तेजना के प्रति मानसिक एवं शारीरिक प्रतिक्रिया करना ही व्यवहार कहलाता है। यह व्यवहार आंतरिक भी हो सकता है एवं बाह्य भी। अर्थात, कुछ व्यवहार को देखा जा सकता है, कुछ को नहीं।

व्यवहार के प्रकार:
व्यवहार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।

  1. कौशल व्यवहार
  2. समस्या व्यवहार

1. कौशल व्यवहार:
ऐसा व्यवहार जो सामाजिक रूप से बच्चों की प्रक्रिया में सहायक हो, उसे कौशल व्यवहार कहते हैं। यह व्यवहार बच्चों के विकास में मदद करता है और समाज में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाता है।

2. समस्या व्यवहार:
समस्या व्यवहार वह व्यवहार है जो कि व्यक्ति के जीवन में बाधा उत्पन्न करता है। यह व्यक्ति को अपनी दिनचर्या को ठीक से निभाने में अवरोध उत्पन्न करता है और उचित वातावरण में उचित कार्य करने में असमर्थ बनाता है।


कौशल व्यवहार के प्रकार:

  1. गामक या प्रेरक कुशलताएँ:
    यह वे कौशल हैं जो बच्चों को उनके उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं।
  2. दैनिक जीवन के क्रिया-कलाप:
    बच्चों को दैनिक जीवन की गतिविधियों में शामिल करने से उनकी सामाजिक और शारीरिक विकास में मदद मिलती है।
  3. भाषा ज्ञान:
    बच्चों को भाषा सीखने और संवाद करने की कुशलताएं प्रदान करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनके समग्र विकास को प्रभावित करता है।
  4. पढ़ने-लिखने की कुशलताएँ:
    शिक्षा के प्रारंभिक चरणों में बच्चों को पढ़ने और लिखने की कुशलताएँ सिखाना उनके बौद्धिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  5. अक एवं समय ज्ञान:
    यह कौशल बच्चों को समय की समझ और उचित समय पर कार्य करने के महत्व को सिखाता है।
  6. घरेलू और सामाजिक कुशलताएँ:
    बच्चों को सामाजिक और पारिवारिक वातावरण में उचित व्यवहार की आदतें विकसित करनी चाहिए, जिससे वे समाज में बेहतर तरीके से शामिल हो सकें।
  7. पूर्व व्यवसायिक कुशलताएँ:
    बच्चों को किसी भी पेशे में आने से पहले पेशेवर व्यवहार और कार्य संबंधी कुशलताएँ सीखनी चाहिए।

समस्या व्यवहार के प्रकार:

समस्या व्यवहार मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:

  1. बाह्य मुख (Externalizing Behavior):
  2. अन्तमुख (Internalizing Behavior):

1. बाह्य मुख:
बाह्य मुख का तात्पर्य उन समस्या व्यवहारों से है जो स्वयं व्यक्ति को कम नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन दूसरों को इससे काफी नुकसान सहन करना पड़ता है।

बाह्य मुख व्यवहार के प्रकार:

  1. दूसरों के साथ दुर्व्यवहार: दूसरों पर थूकना, दूसरों पर चीजें फेंकना आदि।
  2. विद्रोही व्यवहार: कहना न मानना, उल्टा करना।
  3. अति चंचलता: अपेक्षित समय तक एक ही स्थान पर टिक कर न बैठना, काम को पूरा न करना।
  4. उम्रविनाश व्यवहार: किताब फाड़ना, वस्तु तोड़ना, वस्तु फेंकना।
  5. असामाजिक व्यवहार: चोरी करना, खेल में धोखा देना, दूसरों को चोट पहुंचाना।

2. अन्तमुख व्यवहार:
यह वह व्यवहार है जिसमें दूसरों के मुकाबले स्वयं व्यक्ति विशेष को अधिक नुकसान पहुंचता है।

अन्तमुख व्यवहार के प्रकार:

  1. स्वयं घातक व्यवहार: सिर पटकना, अपने को नोचना, खुद को काटना, अपनी चोट से छिलका निकालना।
  2. भय: स्थान, व्यक्ति, जानवर अथवा वस्तु से डरना।
  3. पुनरावृत्ति व्यवहार: सिर हिलाना, शरीर के अंगों को बार-बार हिलाना आदि।
  4. अनोखा व्यवहार: बिना कारण अपने आप से बोलना, हंसना, उपलक्ष्य के बिना कड़ा इकट्ठा करना।
  5. चिड़चड़ापन और झिल्लाहट: चीखना, चिल्लाना, जोर जोर से रोना।

Unit :- 5.3 Functional analysis of behavior (व्यवहार का कार्यात्मक विश्लेषण):


व्यवहार का कार्यात्मक विश्लेषण एक प्रक्रिया है जिसमें किसी भी व्यवहार के कारण या परिणाम का विश्लेषण किया जाता है। यह विश्लेषण विशेष रूप से मानसिक मंद बच्चों के समस्या व्यवहारों को समझने के लिए किया जाता है। इस विश्लेषण के अंतर्गत तीन मुख्य प्रतिमान होते हैं, जो गार्डनर द्वारा प्रतिपादित किए गए हैं। ये प्रतिमान उन कारकों की पहचान करने में मदद करते हैं जो समस्या व्यवहार की पूरी घटना में योगदान करते हैं।

कार्यात्मक विश्लेषण के दो प्रमुख मॉडल:

  1. A-B-C मॉडल:
    यह मॉडल व्यवहार के पूर्व, वर्तमान और परिणाम (कंटेक्स्ट) के संबंध को समझने के लिए उपयोग किया जाता है।
    • A (पूर्ववत कारण): इसमें उस व्यवहार से पहले क्या हुआ था, जो समस्या व्यवहार का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक बच्चा दूसरे बच्चे को चुटकी काटता है, तो यह घटना के पूर्व कारक के रूप में देखा जाएगा।
    इस संबंध में निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाता है:
    1. समस्या व्यवहार कब घटित होता है और किन परिस्थितियों में घटित होता है?
    2. क्या दिन का कोई विशेष समय है जब समस्या व्यवहार अधिक घटित होता है?
    3. क्या यह किसी विशेष व्यक्ति की उपस्थिति में उत्पन्न होता है?
    4. क्या बालक को कुछ करने के लिए कहा गया था?
    5. क्या बालक को कुछ करने से रोका गया था?

(B) व्यवहार:
व्यवहार उस समय को संदर्भित करता है जब कोई समस्या व्यवहार घटित हो रहा होता है। इसे हम वर्तमान समय में उस व्यवहार के प्रकार, उसकी आवृत्ति (कितनी बार घटित होता है), और उस समय के विश्लेषण के रूप में समझ सकते हैं।

(C) परिणाम:
यह उन कारकों का विश्लेषण है जो समस्या व्यवहार के घटित होने के बाद तुरंत होते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रश्नों पर ध्यान दिया जाता है:

  1. समस्या व्यवहार के तुरंत बाद बच्चों के आसपास के लोग किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं?
  2. बालक और दूसरे लोगों पर समस्यात्मक व्यवहार का क्या प्रभाव पड़ता है? क्या बालक को कोई लाभ प्राप्त होता है या कुछ प्राप्त करता है?

(ii) कैनफर एवं शैश्ली मॉडल:
समस्या व्यवहार का क्रियात्मक विश्लेषण करने के लिए कैनफर एवं शैश्ली मॉडल का प्रयोग किया जाता है। इसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है:

  1. इसमें बच्चों की क्षमता और अक्षमता दोनों पर ध्यान दिया जाता है।
  2. यह समझना जरूरी है कि बच्चा क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता।
  3. उस विशेष परिस्थिति की जानकारी रखना, जिसमें समस्या व्यवहार घटित होता है।
  4. यह भी ध्यान में रखना कि कौन से कारक हैं जो समस्या व्यवहार को प्रोत्साहित करते हैं और उसे बढ़ाते हैं।

समस्या व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कारों का चयन:
व्यवहार संशोधन (चाहे वह वांछनीय व्यवहार को बढ़ाने के लिए हो या अवांछनीय व्यवहार को घटाने के लिए) में पुरस्कार एक महत्वपूर्ण चरण होता है। यह समस्या व्यवहार के प्रबंधन के लिए कौशल प्रशिक्षण में मदद करता है, जहां समस्या व्यवहार को रोकने के लिए पुरस्कारों का चयन किया जाता है।


Unit 5.4: Behaviour Management Techniques: Cognitive and Behavioural (व्यवहार प्रबंधन तकनीकः संज्ञानात्मक और व्यवहारिक):

व्यवहार प्रबंधन बच्चों में विशिष्ट समस्या व्यवहार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से पूर्ववर्ती कारकों और परिणामों का विश्लेषण करने पर आधारित होता है। शिक्षकों को समस्या व्यवहार का प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त तकनीकों का चयन करना चाहिए। इन तकनीकों में निम्नलिखित प्रमुख विधियाँ शामिल होती हैं:

  1. प्रत्यक्ष दण्ड विधियाँ
  2. दण्ड विहीन विधियाँ

1. प्रत्यक्ष दण्ड विधियाँ:
यह विधि अवांछनीय व्यवहार की घटना को कम करने के लिए उपयोग की जाती है। इसमें निम्नलिखित विधियाँ शामिल हैं:

टाइम आउट (Time-out):
यह अवांछनीय व्यवहार को दूर करने का एक प्रमुख तरीका है। इस विधि में, अवांछनीय व्यवहार के होने के बाद एक निश्चित समय के लिए व्यक्ति को उसके मिलने वाले सारे पुरस्कारों से वंचित कर दिया जाता है। बच्चों को उनके पुनर्बलन मिलने वाले स्थान से हटा दिया जाता है, ताकि अवांछनीय व्यवहार को नियंत्रित किया जा सके। यह दो प्रकार की होती है:

  1. बहिष्करण समय समाप्त (Exclusionary Time-out)
  2. गैर बहिष्करण टाइम आउट (Non-exclusionary Time-out)

1. Exclusion Time-Out (बहिष्करण टाइम-आउट):
इस प्रकार के टाइम-आउट में बच्चे को उसके अवांछनीय व्यवहार के बाद भौतिक रूप से उस विशेष वातावरण से कुछ समय के लिए हटा दिया जाता है। यह तीन प्रकार का होता है:

  1. Contingent Observation Time-Out (सशर्त पर्यवेक्षण टाइम-आउट): इस विधि में बच्चे को एक ऐसे स्थान पर बैठा दिया जाता है जहां वह दूसरों के व्यवहार को देख सकता है, लेकिन स्वयं कोई सक्रिय भागीदारी नहीं कर सकता। यह पर्यवेक्षण के द्वारा बच्चे को अपने व्यवहार पर विचार करने का अवसर देता है।
  2. Isolation Time-Out (आइसोलेशन टाइम-आउट): इसमें बच्चे को एक अलग, नीरस और ध्यान केंद्रित करने के लिए एकांत स्थान पर भेज दिया जाता है, जहां उसे कोई पुरस्कार या अन्य सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलती है।
  3. Seculation Time-Out (सेक्युलेशन टाइम-आउट): इस प्रकार के टाइम-आउट में बच्चे को अन्य गतिविधियों से पूरी तरह से अलग किया जाता है और उसे अकेले छोड़ दिया जाता है, जिससे वह सोचने का समय पा सके।

2. Non-Exclusion Time-Out (गैर बहिष्करण टाइम-आउट):
इस विधि में बच्चे को किसी अन्य स्थान पर नहीं हटाया जाता, बल्कि उसी वातावरण में बच्चे से कुछ सकारात्मक पुनर्बलन (reinforcement) को रोक दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर, सामाजिक पुनर्बलन (social reinforcement) जैसे ध्यान न देना या बातचीत में कटौती करना। इस विधि के दो प्रकार होते हैं:

  1. Planned Ignoring (संगठित अनदेखी): इस प्रक्रिया में बच्चे के अवांछनीय व्यवहार के परिणामस्वरूप उसे मिलने वाले सकारात्मक पुनर्बलन को रोक लिया जाता है। इसमें शिक्षक बच्चे को पूरी तरह से अनदेखा करते हैं और उसे कोई भी ध्यान या पुरस्कार नहीं मिलता।
  2. Removal of Specific Reinforcement (विशिष्ट पुनर्बलन का हटाना): इस विधि में बच्चे को मिलने वाले सकारात्मक पुनर्बलन, जैसे टोकन मनी (token money) को हटा दिया जाता है, ताकि बच्चे को सीखने का अवसर मिले कि अवांछनीय व्यवहार के परिणामस्वरूप पुरस्कार नहीं मिलेगा।

अति सुधार (Over-correction):
यह एक ऐसी विधि है, जो बच्चे को न केवल अवांछनीय व्यवहार से बचने के लिए समायोजन करती है, बल्कि उसे उचित व्यवहार सिखाती है। इसमें बच्चे से उस वातावरण को पहले से भी बेहतर बनवाने की कोशिश की जाती है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई बच्चा कक्षा में पेशाब करता है, तो उसे न केवल उस स्थान को साफ करने के लिए कहा जाता है, बल्कि उसे कक्षा के अन्य हिस्सों को भी साफ करने को कहा जाता है।


घनात्मक अभ्यास (Positive Practice):
इस विधि में बच्चे को अवांछनीय व्यवहार के स्थान पर वांछनीय व्यवहार करने के लिए बाध्य किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, अगर बच्चा अवांछनीय व्यवहार करता है, तो उसके बाद उसे वांछनीय व्यवहार करने के लिए बार-बार अभ्यास कराया जाता है। जब बच्चा सही तरीके से वांछनीय व्यवहार का अभ्यास करता है, तो उसे पुरस्कार (reinforcement) दिया जाता है।


शारीरिक प्रतिबंध (Physical Restraint):
यह विधि तब उपयोग की जाती है जब कोई बच्चा आक्रामक या हिंसक व्यवहार करता है। इसमें बच्चे की शारीरिक गतिविधियों को कुछ समय के लिए प्रतिबंधित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, बच्चे के हाथों को पकड़कर उसे कुछ मिनटों तक रोकना, ताकि वह हिंसक या आक्रामक व्यवहार न कर सके।


वातावरण की पुनर्संरचना (Environmental Restructuring):
यह प्रक्रिया अवांछनीय व्यवहार के कारणों का विश्लेषण करके, उन कारकों को बदलने पर आधारित होती है जो उस व्यवहार को बढ़ावा देते हैं। इस विधि के द्वारा उन कारकों को हटा दिया जाता है या बदला जाता है जो अवांछनीय व्यवहार को प्रोत्साहित करते हैं।


विलोपन (Extinction):
यह विधि तब उपयोग की जाती है जब अवांछनीय व्यवहार का मुख्य कारण मिलने वाले पुनर्बलन (reinforcement) को हटाना होता है। इस प्रक्रिया में, उस व्यवहार के परिणामस्वरूप मिलने वाले सभी सकारात्मक या नकारात्मक पुनर्बलन को हटा दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई बच्चा कक्षा में शोर करता है, तो शिक्षक उसे कोई भी ध्यान या प्रतिक्रिया नहीं देते हैं, जिससे बच्चे के शोर करने की प्रवृत्ति में कमी आ जाती है।

दण्ड विहिन विधियाँ (Non-punitive methods):

दण्ड विहिन विधियाँ समस्या व्यवहार को कम करने और वांछनीय व्यवहार को बढ़ाने के लिए होती हैं। इन विधियों में विभेदिय पुनर्बलन (Differential Reinforcement) का प्रयोग किया जाता है, जो बच्चों में अवांछनीय व्यवहार को दूर करने और समायोजित व्यवहार (appropriate behavior) को सिखाने के लिए एक प्रभावी तरीका है। इसमें अवांछनीय और वांछनीय व्यवहार के बीच अंतर करते हुए, उचित व्यवहार को बढ़ावा दिया जाता है।

विभेदिय पुनर्बलन की विभिन्न प्रकार की विधियाँ निम्नलिखित हैं:

1. DRO (Other Behavior Differential Reinforcement):

इस विधि में, बच्चा जब निर्धारित अवांछनीय व्यवहार को एक निर्धारित समय में नहीं करता है, तो उसे पुनर्बलन (reinforcement) दिया जाता है। इस समय में बच्चा कोई भी अन्य सकारात्मक व्यवहार करता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह तकनीक मुख्य रूप से अवांछनीय व्यवहार की अनुपस्थिति पर आधारित होती है। उदाहरण: यदि बच्चा 10 मिनट तक शोर नहीं करता है, तो उसे पुरस्कार दिया जाएगा।

2. DRA (Alternative Behavior Differential Reinforcement):

इस तकनीक में, बच्चे को अवांछनीय व्यवहार के स्थान पर एक वैकल्पिक, वांछनीय व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया जाता है। जब बच्चा वह वैकल्पिक व्यवहार करता है, तो उसे पुनर्बलन (reinforcement) मिलता है। इसका उद्देश्य बच्चे को न केवल अवांछनीय व्यवहार को रोकना, बल्कि उसे एक नई आदत और उचित व्यवहार सिखाना है। उदाहरण: यदि बच्चा शोर करता है, तो उसे शांत बैठने के लिए प्रेरित किया जाता है और जब वह शांत बैठता है, तो उसे पुरस्कार दिया जाता है।

3. DRI (Incompatible Behavior Differential Reinforcement):

इस विधि में अवांछनीय व्यवहार के लिए ठीक विपरीत (incompatible) व्यवहार को पुनर्बलित किया जाता है। यह उस समय होता है जब अवांछनीय व्यवहार और वांछनीय व्यवहार एक साथ नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा चीजें फेंकता है, तो उसे सही तरीके से चीजों को रखने का अभ्यास कराया जाता है। जब वह ऐसा करता है, तो उसे पुरस्कार दिया जाता है।

4. DRL (Low Rate of Response Differential Reinforcement):

इस विधि में, वांछनीय व्यवहार की आवृत्ति (frequency) को घटाने पर बल दिया जाता है। यदि बच्चा कोई व्यवहार कम बार करता है (बेसलाइन से कम), तो उसे पुनर्बलन मिलता है। उदाहरण के तौर पर, यदि बच्चा कक्षा में 10 बार नमस्ते करता है, तो यदि वह 5 बार नमस्ते करता है, तो उसे पुरस्कार मिलता है।

5. DRH (High Rate of Response Differential Reinforcement):

इस विधि में, वांछनीय व्यवहार की आवृत्ति (frequency) को बढ़ाने पर बल दिया जाता है। यदि बच्चा बेसलाइन से अधिक बार वांछनीय व्यवहार करता है, तो उसे पुनर्बलन मिलता है। उदाहरण: यदि बच्चा कक्षा में 3 बार नमस्ते करता है और उसे 5 बार नमस्ते करने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो जब वह 5 बार नमस्ते करता है, तो उसे पुरस्कार मिलता है।


व्यवहार परिमार्जन का चरण (Behavior Modification Steps):

  1. समस्या व्यवहार की पहचान (Identifying Problem Behavior):
    व्यवहार संशोधन (behavior modification) की प्रक्रिया में सबसे पहला कदम समस्या व्यवहार की पहचान करना है। इसके लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे साक्षात्कार, रेटिंग स्केल, और चेकलिस्ट आदि।
  2. समस्या व्यवहार का व्यवहार परक वर्णन (Describing the Problem Behavior in Behavioral Terms):
    समस्या व्यवहार का वर्णन केवल व्यवहारिक (observable) शब्दों में किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यवहार का सही ढंग से विश्लेषण किया जा सके। उदाहरण: “बच्चा स्थिर नहीं रहता है” की बजाय, “बच्चा 15 सेकंड से अधिक समय तक एक स्थान पर नहीं बैठता है”।
  3. समस्या व्यवहार का चयन (Selecting the Problem Behavior to Address):
    समस्या व्यवहार की पहचान और उसका वस्तुनिष्ठ वर्णन करने के बाद, सबसे पहले यह तय किया जाता है कि किस विशेष समस्या व्यवहार को सुधारने की आवश्यकता है।

प्राथमिकता क्रम में रखने को कहते हैं
जब हम किसी विशेष समस्या व्यवहार को सुधारने के लिए कार्य करते हैं, तो इसे प्राथमिकता क्रम में रखने का मतलब है कि हमें सबसे पहले उन व्यवहारों को संबोधित करना चाहिए, जो या तो बच्चे के लिए या उसके आस-पास के लोगों के लिए हानिकारक हों। इस प्रक्रिया में केवल एक या दो समस्या व्यवहार का चयन करना उचित होता है, ताकि इन पर ध्यान केंद्रित कर सकें और इनके सुधार के लिए प्रभावी तरीके अपना सकें।

प्राथमिकता क्रम में रखने के लिए निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

  1. एक समय में एक या दो से अधिक समस्या व्यवहार का चयन नहीं करना चाहिए।
    यदि हम एक साथ बहुत सारे समस्यात्मक व्यवहारों को सुधारने का प्रयास करते हैं, तो हम सही परिणाम नहीं प्राप्त कर पाएंगे। इसलिए एक या दो प्रमुख व्यवहारों का चयन करना अधिक प्रभावी होता है।
  2. सुगम या सरल प्रबंधन वाले व्यवहार को पहले प्राथमिकता देना चाहिए।
    ऐसे समस्यात्मक व्यवहारों को पहले संबोधित करें जिन्हें जल्दी और आसानी से सुधारा जा सकता है। इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा और बाद में बाकी व्यवहारों के प्रबंधन में मदद मिलेगी।
  3. वे समस्या व्यवहार जिन्हें बच्चे या अन्य लोगों के लिए हानिकारक हो, उन्हें प्राथमिकता दें।
    सबसे पहले उन व्यवहारों को ठीक करें जो बच्चे के या दूसरों के लिए घातक या जोखिमपूर्ण हैं, जैसे हिंसा, आत्महानि, आदि।
  4. अभिभावक और शिक्षक से परामर्श लेकर समस्या व्यवहार का चयन करना चाहिए।
    इस निर्णय में बच्चों के अभिभावकों और शिक्षकों से भी राय ली जानी चाहिए, ताकि हम उस व्यवहार का चयन करें जो वास्तव में बच्चे के जीवन को प्रभावित कर रहा हो।

समस्या व्यवहार के आधारभूत आंकड़े:
समस्या व्यवहार को समझने और उसका समाधान निकालने के लिए, सबसे पहले हमें उस व्यवहार के आधारभूत आंकड़ों को एकत्रित करना होता है। यह आंकड़े किसी विशेष व्यवहार की आवृत्ति, अवधि या अंतराल के हिसाब से एकत्रित किए जाते हैं, ताकि हम सही रणनीतियों का चुनाव कर सकें।

  1. निरीक्षण की विधियाँ:
    समस्या व्यवहार का अवलोकन करना और इसे मापने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। ये विधियाँ सुनिश्चित करती हैं कि हम उस व्यवहार को सही तरीके से समझ सकें।
  2. निरीक्षण का स्थान:
    निरीक्षण करने के लिए यह तय करना जरूरी है कि हम किस स्थान पर यह व्यवहार देख रहे हैं — जैसे कक्षा, घर, या खेल का मैदान।
  3. निरीक्षण की तकनीकी:
    इसमें यह तय किया जाता है कि हम किस तरह से निरीक्षण करेंगे, जैसे आवृत्ति आलेखन, अवधि आलेखन, या अंतराल आलेखन।
  4. अंतराल अवधि:
    निरीक्षण करने के लिए समय के अंतराल को भी तय करना आवश्यक होता है। उदाहरण: हर 5 मिनट के अंतराल में निरीक्षण करना या हर घंटे में एक बार निरीक्षण करना।

निरीक्षण की विधियाँ:

  1. आवृत्ति आलेखन (Frequency Recording):
    यह विधि तब उपयोगी होती है जब हमें यह देखना हो कि एक समय में कितनी बार समस्या व्यवहार घटित होता है। यह खासकर तब उपयोग की जाती है जब समस्या व्यवहार की संख्या मापने की आवश्यकता हो, जैसे हिंसक या अति सक्रिय व्यवहार। इस विधि में घटना को एक निश्चित अवधि के भीतर गिना जाता है, जैसे कि तीन दिनों तक।
  2. अवधि आलेखन (Duration Recording):
    यह विधि तब उपयोग की जाती है जब किसी विशेष समस्या व्यवहार की घटना का समय अधिक महत्वपूर्ण हो। उदाहरण के लिए, बच्चा कक्षा में ध्यान नहीं दे रहा है या वह लगातार दौड़ता रहता है। इस विधि में, हम यह मापते हैं कि समस्या व्यवहार कितने समय तक चलता है, जैसे कि बच्चा कितने समय तक कक्षा में चुप नहीं रहता है।
  3. अंतराल आलेखन (Interval Recording):
    इस विधि में, समस्या व्यवहार के हर एक छोटे समय में निरीक्षण किया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर हम एक घंटे के दौरान पांच मिनट के अंतराल में समस्या व्यवहार का निरीक्षण करते हैं, तो हम यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि कितने अंतरालों में समस्या व्यवहार घटित हुआ है।
  4. लघु विस्तार समय प्रतिदर्श (Momentary Time Sampling):
    इस विधि में, निरीक्षण का समय छोटे-छोटे अंतरालों में बांट दिया जाता है, जैसे हर 5 मिनट में। इसमें हम यह मापते हैं कि समस्या व्यवहार एक पूर्व निर्धारित समय पर हुआ या नहीं।

Unit 5.5: Modifying behaviours of children with special needs in inclusive and special classrooms
समावेशी और विशेष कक्षाओं में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के व्यवहार को संशोधित करना

माता-पिता के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक अपने बच्चों के कठिन या उद्दंड व्यवहार का प्रबंधन करना है। चाहे बच्चे अपने जूते पहनने से इनकार कर रहे हों, या पूरी तरह से नखरे कर रहे हों, माता-पिता अक्सर प्रभावी प्रतिक्रिया देने में संघर्ष करते हैं। इसके लिए, व्यवहारिक चिकित्सा तकनीकें (Behavioral Therapy) एक सुसंगत दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, जिससे माता-पिता को अपने बच्चों के व्यवहार को विनियमित करने के लिए आवश्यक विकासात्मक कौशल हासिल करने में मदद मिलती है। यह बच्चों को अपने स्वयं के व्यवहार को नियंत्रित करने का अवसर प्रदान करता है।


ABC’s of behavior management at home
समस्याग्रस्त व्यवहार को समझने और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिए, आपको यह विचार करना होगा कि इससे पहले क्या हुआ, और इसके बाद क्या परिणाम आए। किसी भी व्यवहार के तीन महत्वपूर्ण पहलू होते हैं:

  1. पूर्ववृत्त (Antecedents):
    ये वे कारक होते हैं जो किसी व्यवहार के होने की संभावना को बढ़ाते या घटाते हैं। इनको “ट्रिगर” भी कहा जा सकता है। इन पूर्ववर्तियों को समझना और अनुमान लगाना, दुव्र्यवहार को रोकने के लिए एक अत्यंत सहायक उपकरण हो सकता है।
  2. व्यवहार (Behavior):
    ये वे विशिष्ट कार्य होते हैं जिन्हें आप करना चाहते हैं या जिन्हें आप हतोत्साहित करना चाहते हैं।
  3. परिणाम (Consequences):
    ये वे परिणाम होते हैं जो किसी व्यवहार के बाद स्वाभाविक रूप से या तार्किक रूप से आते हैं। परिणाम किसी भी सकारात्मक या नकारात्मक व्यवहार को प्रभावित करते हैं, और जितना तत्काल परिणाम होता है, वह उतना ही शक्तिशाली होता है।

Special Education – व्यवहार को परिभाषित करें
एक अच्छे व्यवहार प्रबंधन योजना का पहला कदम लक्षित व्यवहार की पहचान करना होता है। यह व्यवहार विशिष्ट होना चाहिए (ताकि सभी को स्पष्ट रूप से पता चले कि क्या अपेक्षित है), देखने योग्य और मापने योग्य होना चाहिए (ताकि सभी सहमत हो सकें कि व्यवहार हुआ या नहीं)।


पूर्ववृत्त: अच्छा और बुरा
पूर्ववृत्त कई रूपों में होते हैं। कुछ पूर्ववृत्त बुरे व्यवहार का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य सहायक उपकरण होते हैं, जो माता-पिता को संभावित समस्याग्रस्त व्यवहार शुरू होने से पहले उसे रोकने में मदद करते हैं और अच्छे व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।


बचने के लिए पूर्वगामी उपाय:
यह मानकर कि अपेक्षाएं समझी गई हैं, यह जरूरी है कि बच्चों को स्पष्ट रूप से बताया जाए कि उनसे क्या अपेक्षित है। बच्चों से यह उम्मीद करना कि वे स्वाभाविक रूप से समझेंगे, गलत हो सकता है। स्थिति दर स्थिति, मांग बदलती है और जब बच्चों को यह स्पष्ट नहीं होता कि उन्हें क्या करना चाहिए, तो उनके गलत व्यवहार की संभावना बढ़ जाती है।

चीजों को दूर से बुलाना:
बच्चों को महत्वपूर्ण निर्देश हमेशा आमने-सामने देकर देना सुनिश्चित करें। दूर से चिल्लाए गए निर्देशों को याद रखना और समझना बच्चों के लिए कठिन हो सकता है। इसके बजाय, उन्हें करीब से संबोधित करें ताकि वे आसानी से सुन और समझ सकें।

चेतावनी के बिना संक्रमण:
बच्चों के लिए संक्रमण (एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि में बदलना) कठिन हो सकता है, विशेष रूप से जब वे किसी ऐसी चीज में व्यस्त होते हैं जिसे वे पसंद करते हैं। यदि बच्चों को संक्रमण से पहले चेतावनी दी जाती है, तो उन्हें एक गतिविधि से दूसरे में सहजता से बदलाव करने का अवसर मिलता है। इससे संक्रमण कम मुश्किल हो जाता है और बच्चे इसे बेहतर तरीके से स्वीकार कर पाते हैं।

रैपिड फायर प्रश्न पूछना, या निर्देशों की एक श्रृंखला देना:
जब बच्चों को सवालों या निर्देशों की एक लंबी श्रृंखला दी जाती है, तो उनके लिए उन सभी को सुनना, समझना और सही ढंग से करना मुश्किल हो सकता है। यह उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और वे जो निर्देश दिए गए हैं, उन्हें सही से याद नहीं रख पाते।


EMBRACE की पूर्वकथा

स्थिति से अवगत रहें:
बच्चों के व्यवहार पर भावनात्मक और पर्यावरणीय कारक भी असर डाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर बच्चा भूखा, थका हुआ या चिंता में है, तो उसके लिए अपने व्यवहार को नियंत्रित करना कठिन हो सकता है। इस स्थिति में, माता-पिता को इस तरह के कारकों पर विचार करना चाहिए ताकि वे बच्चे को सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकें।

वातावरण को समायोजित करें:
जब बच्चे को होमवर्क या अन्य कार्य करने के लिए बैठाया जाए, तो विकर्षणों को हटा दें (जैसे वीडियो स्क्रीन और खिलौने)। बच्चों को एक संगठित और शांत जगह प्रदान करें, और उन्हें कुछ ब्रेक देने का भी विचार करें। इस तरह के वातावरण में बच्चे बेहतर ध्यान लगा सकते हैं और कार्य में मन लगाते हैं।

अपेक्षाओं को स्पष्ट करें:
यह महत्वपूर्ण है कि आप और बच्चा दोनों यह समझें कि आपसे क्या अपेक्षाएं हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी कार्य में शुरुआत से ही अपेक्षाएं स्पष्ट करते हैं, तो गलतफहमियां कम होंगी और बच्चे को भी समझने में आसानी होगी।

संक्रमण के लिए उलटी गिनती प्रदान करें:
बच्चों को आने वाली गतिविधियों के बारे में पहले से सूचित करें। उदाहरण के लिए, रात के खाने के समय या होमवर्क के लिए 10 मिनट पहले उन्हें सूचित करें, फिर 2 मिनट पहले उन्हें याद दिलाएं। इस तरह की उलटी गिनती से बच्चे संक्रमण के लिए मानसिक रूप से तैयार हो सकते हैं।

बच्चों को एक विकल्प दें:
जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, यह महत्वपूर्ण है कि वे अपने दैनिक कार्यक्रम में कुछ निर्णय खुद लें। उदाहरण के लिए, “क्या आप रात के खाने के बाद स्नान करना चाहते हैं या पहले?” इस तरह के विकल्प देने से बच्चे को आत्मनिर्भरता और स्व-विनियमन सीखने में मदद मिलती है।


प्रभावी परिणाम बनाना (Creating Effective Consequences)

हर परिणाम एक जैसा नहीं होता। कुछ परिणाम बच्चों को स्वीकार्य और अस्वीकार्य व्यवहार के बीच अंतर समझने में मदद करते हैं, जबकि कुछ परिणाम बुरे व्यवहार को बढ़ावा भी दे सकते हैं। माता-पिता के रूप में यह समझना जरूरी है कि परिणामों का प्रयोग बुद्धिमानी से और निरंतरता के साथ कैसे किया जाए, ताकि बच्चों के व्यवहार में सुधार हो।

बचने योग्य परिणाम:
नकारात्मक ध्यान देना:
बच्चे वयस्कों से ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, और कभी-कभी नकारात्मक ध्यान (जैसे चिल्लाना या डांटना) भी उन्हें मिलता है। लेकिन यह ध्यान, चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, बच्चों के लिए एक जैसा होता है। नकारात्मक ध्यान जैसे चिल्लाना या आलोचना करने से बच्चों के आत्म-सम्मान पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और यह समय के साथ उनके बुरे व्यवहार को बढ़ा सकता है।

विलंबित परिणाम (Delayed Consequences):
सबसे प्रभावी परिणाम वे होते हैं जो तत्काल मिलते हैं। जब कोई बच्चा किसी कार्य को करता है और परिणाम में विलंब होता है, तो वह बच्चा अपने व्यवहार और परिणाम के बीच संबंध नहीं जोड़ पाता। इससे बच्चा व्यवहार में सुधार के बजाय दंड को एक नकारात्मक अनुभव के रूप में महसूस करता है, जो भविष्य में उसे अधिक सुधारने की संभावना को कम कर सकता है।

असंगत परिणाम (Inconsistent Consequences):
माता-पिता कभी-कभी निराश होकर बच्चों के व्यवहार पर प्रतिक्रिया करते हैं, लेकिन यदि परिणामों में असंगति होती है, तो यह बच्चे को भ्रमित कर सकता है। बहुत कठोर परिणाम बच्चे के आत्मविश्वास को तोड़ सकते हैं और उन्हें अपनी गलतियाँ सुधारने के बजाय हतोत्साहित कर सकते हैं। परिणामों का लगातार और सही तरीके से पालन किया जाना चाहिए।

सकारात्मक परिणाम (Positive Consequences):
जब बच्चों को अपने कार्यों के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तो वे उसे फिर से दोहराने की संभावना बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि बच्चा अपने जूते पहनने में समय लेता है और आप उसकी मदद करते हैं, तो अगले बार वह जानता है कि आप उसकी मदद करेंगे। इस तरह, बच्चे को सकारात्मक परिणाम मिलने से उसे अपनी गतिविधियों में सुधार करने की प्रेरणा मिलती है।


नैतिक निर्णय स्क्रीन (Ethical Decision Screen) – व्यवहार बदलने के संदर्भ में:

आदर्श उपयुक्त नेतृत्व (Model Appropriate Leadership):
शिक्षक को अपने व्यवहार से बच्चे को सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। शिक्षक का व्यवहार और उनकी मूल्य-निर्णय बच्चे को प्रभावित करेंगे, और बच्चा शिक्षक से प्रेरित होकर वही व्यवहार अपनाएगा। यह बच्चों को शिक्षक के साथ मजबूत संबंध और विश्वास विकसित करने में मदद करता है।

आत्म-अनुशासन (Self-Discipline):
व्यवहार प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य आत्म-अनुशासन को प्रोत्साहित करना है। शिक्षक को कक्षा में बच्चों के आत्म-नियंत्रण को प्रोत्साहित करना चाहिए। सम्मान और विश्वास की भावना बच्चों को खुद को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस कराती है, जो उन्हें अपनी जिम्मेदारियों को समझने और अपनाने में मदद करती है।

सहानुभूति दिखाएं (Show Empathy):
शिक्षक को बच्चों की समस्याओं को निष्पक्ष तरीके से समझना चाहिए। सहानुभूति हमें किसी समस्या को कई दृष्टिकोणों से देखने की अनुमति देती है, जिससे शिक्षक बच्चों की भावनाओं और विचारों को समझ पाते हैं और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन कर पाते हैं।

स्वतंत्रता और स्वतंत्र कार्य की अनुमति (Freedom and Independence to Function):
बच्चों को अपने कार्यों को स्वतंत्र रूप से करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। जब बच्चे अपने कार्यों के तार्किक परिणामों का अनुभव करते हैं, तो यह उनके आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। यदि उन्हें कभी विफलता का सामना करना पड़ता है, तो यह उन्हें सुधारने और सीखने का अवसर प्रदान करता है।

सामान्यीकरण का सिद्धांत (Generalization Principle):
बच्चों को विभिन्न प्रकार के सामान्य वातावरण में काम करने की अनुमति मिलनी चाहिए। इससे वे यह सीख सकते हैं कि कैसे विभिन्न परिस्थितियों में अपनी प्रतिक्रियाओं को अनुकूलित करना है।

निष्पक्षता का सिद्धांत (Equity Principle):
शिक्षक को हस्तक्षेप करते समय निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए। परिणामों को बच्चे की गलती की गंभीरता के आधार पर लागू किया जाना चाहिए, ताकि उसे महसूस हो कि हस्तक्षेप न्यायसंगत है और वह स्कूल में सफल होने का अवसर पा रहा है।

व्यक्ति की गरिमा और मूल्य का सम्मान (Respect for the Dignity and Value of the Individual):
जब भी हस्तक्षेप किया जाए, तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को किसी भी रूप में अपमानित न किया जाए। हस्तक्षेप का उद्देश्य बच्चे को अपने व्यवहार को सुधारने के लिए मार्गदर्शन देना है, न कि उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाना।

व्यवहार प्रबंधन हस्तक्षेपों की निरंतरता (Continuity of Behavior Management Interventions):
शिक्षक को हस्तक्षेप करने के लिए ऐसे उपायों का चयन करना चाहिए जो बच्चे के अधिकारों को न्यूनतम रूप से प्रतिबंधित करते हुए प्रभावी हों। अत्यधिक प्रतिबंध बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और स्वायत्तता पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।

व्यवहार परिवर्तन तर्कसंगत और सुनियोजित होना चाहिए:
व्यवहार में परिवर्तन एक सुविचारित और व्यवस्थित प्रक्रिया होनी चाहिए, जो बच्चों के कक्षा में प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से हो। शिक्षक के पास यह तर्क होना चाहिए कि यह व्यवहार कक्षा में विघ्न डाल रहा है, और इसके सुधार के लिए एक स्पष्ट रणनीति का पालन किया जाना चाहिए। यह प्रक्रिया नैतिक दृष्टिकोण से पक्षपाती नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह बच्चों के विकास को बेहतर बनाने के लिए उद्दिष्ट होनी चाहिए।

अनुमति (Consent):

शिक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे कक्षा के बच्चों के साथ सभी प्रबंधन प्रक्रियाओं को साझा करें और इसके लिए सहमति प्राप्त करें। बच्चों के माता-पिता और अन्य संबंधित व्यक्तियों से सहमति प्राप्त करने से न केवल संघर्ष से बचने में मदद मिलती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित होता है कि सभी पक्षों को इस हस्तक्षेप के उद्देश्य और तरीकों के बारे में सही जानकारी है।

निष्पक्षता (Fairness):

शिक्षक को कक्षा में सभी छात्रों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। कभी-कभी शिक्षक अपनी पसंद के छात्रों के साथ अधिक स्नेहभाव दिखा सकते हैं, लेकिन ऐसा करना अनजाने में पक्षपात की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। शिक्षक को अपनी बातचीत, ध्यान और प्रतिक्रिया में समानता बनाए रखनी चाहिए, ताकि कोई भी छात्र यह न महसूस करे कि उसे अनदेखा किया जा रहा है या उसे असमान तरीके से ट्रीट किया जा रहा है।

आदर (Respect):

शिक्षक को छात्रों के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। कोई भी अपमानजनक या आलोचनात्मक टिप्पणी बच्चों को आहत कर सकती है और उनकी मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। छात्रों के विचारों का सम्मान करना और उनकी बातों को समझने की कोशिश करना बहुत आवश्यक है। यदि छात्र शिक्षक के विचारों को चुनौती देते हैं, तो शिक्षक को उन्हें ध्यान से सुनकर, विचारशील और संवेदनशील उत्तर देना चाहिए।

छात्रों के लिए चिंता (Concern for Students):

छात्र यह उम्मीद करते हैं कि शिक्षक उनके अकादमिक प्रदर्शन और समग्र कल्याण की चिंता करते हैं। शिक्षक को कक्षा में छात्रों के नाम जानने चाहिए और उनसे संवाद स्थापित करना चाहिए। इससे छात्रों को यह महसूस होता है कि शिक्षक उनकी चिंता करते हैं और वे सिर्फ अकादमिक रूप से ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी उनका ख्याल रखते हैं। इसके अलावा, यदि कोई छात्र शिकायत करता है, तो शिक्षक को उसकी शिकायत को गंभीरता से लेना चाहिए और उचित समाधान प्रदान करना चाहिए।

अखंडता (Integrity):

सत्यनिष्ठा का मतलब है कि शिक्षक अपने निर्णयों और नीतियों में ईमानदार और सुसंगत रहते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि शिक्षक यह स्पष्ट करें कि क्यों किसी विशिष्ट नीति या प्रक्रिया की आवश्यकता है और इसका उद्देश्य क्या है। उदाहरण के लिए, एक उपस्थिति नीति यह सुनिश्चित करने के लिए हो सकती है कि छात्रों की उपस्थिति उनकी शिक्षा और ग्रेड के साथ सहसंबद्ध है। शिक्षक को वादों का पालन करना चाहिए और जहां आवश्यकता हो, अपनी गलतियों को स्वीकार भी करना चाहिए।

औचित्य (Propriety):

औचित्य का अर्थ है कि शिक्षक को सामाजिक रूप से स्वीकार्य और सही तरीके से काम करना चाहिए, जो छात्रों की संवेदनाओं को ठेस नहीं पहुंचाए। शिक्षक को अपनी बातचीत और कक्षा में सभी नियमों और आदर्शों का पालन करना चाहिए, ताकि छात्रों को किसी प्रकार की असुविधा या परेशानी न हो।


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