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Special Diploma, IDD, Paper-5, CURRICULUM DEVELOPMENT (पाठ्यचर्या विकास), Unit-4

Unit 4: ID वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम
4.1. मानसिक विकलांगता वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम डिज़ाइन
4.2. व्यक्तिगत, सामाजिक, कार्यात्मक शैक्षणिक और व्यावसायिक, अवकाश कौशल
4.3. पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लिए पाठ्यक्रम विकास
4.4. पाठ्यक्रम अनुकूलन – समावेशी सेटिंग्स के लिए समायोजन, संशोधन
4.5. पाठ्यक्रम मूल्यांकन प्रक्रिया

Unit 4: Curriculum for Students with Intellectual Disability (ID)
4.1. Curriculum Designing for Students with Intellectual Disability
4.2. Personal, Social, Functional academic, and Occupational, Recreational skills
4.3. Curriculum development for Pre-primary, Primary, and Secondary levels
4.4. Curricular adaptation – Accommodation, Modification for inclusive settings
4.5. Curriculum evaluation process

Unit 4.1: Curriculum Designing for Students with Intellectual Disabilities (बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए पाठ्यचर्या डिजाइनिंग)

बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम डिजाइन करते समय, यह महत्वपूर्ण है कि उनकी विशेष आवश्यकताओं और विकासात्मक क्षमताओं को ध्यान में रखा जाए। ऐसे छात्रों की शैक्षिक यात्रा नियमित शिक्षा से अलग होती है, क्योंकि उन्हें पारंपरिक पाठ्यक्रम की तुलना में अलग प्रकार की शैक्षिक रणनीतियों और सामग्री की आवश्यकता होती है।

पाठ्यचर्या डिजाइन के लिए आवश्यक बातें:

  1. व्यक्तिगत शैक्षिक प्रोग्रामिंग (IEP):
    बौद्धिक अक्षमता वाले प्रत्येक बच्चे के लिए एक व्यक्तिगत शैक्षिक प्रोग्राम (IEP) की आवश्यकता होती है। यह योजना बच्चे के विकासात्मक स्तर और विशेषताओं के अनुसार तैयार की जाती है, ताकि वह आयु उपयुक्त गतिविधियों में भाग ले सके और अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर सके।
  2. सामाजिक दक्षता पर ध्यान केंद्रित करना:
    एक अच्छे पाठ्यक्रम को समाज की जरूरतों के विश्लेषण से तैयार किया जाना चाहिए, और बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को सामाजिक दक्षता प्रदान करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसका उद्देश्य है कि बच्चे समाज में अधिक से अधिक स्वतंत्रता से काम कर सकें और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभा सकें।
  3. विकसित शिक्षा की ओर रुझान:
    एकीकृत शिक्षा की दिशा में, बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए पाठ्यक्रम अक्सर व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह पाठ्यक्रम बच्चों को उनके बड़े होने पर उपयुक्त नौकरी पाने में मदद करता है। इन पाठ्यक्रमों में कार्यात्मक पठन, लेखन, अंकगणित, समय, यात्रा, धन और अन्य संबंधित कौशल शामिल होते हैं।
  4. कक्षा में सामान्यीकरण (Generalization) का महत्व:
    बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चे अक्सर अपने द्वारा सीखे गए कौशल को प्राकृतिक वातावरण में स्वचालित रूप से सामान्य नहीं कर पाते हैं। इसलिए, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कक्षा में सीखी गई चीजों को वास्तविक जीवन के संदर्भ में लागू किया जा सके, ताकि छात्रों को जीवन के वास्तविक कार्यों में सफलता मिल सके।
  5. कार्यात्मक गतिविधियाँ:
    विशेष रूप से मध्यम और गंभीर बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए, पाठ्यक्रम में कार्यात्मक गतिविधियों पर जोर दिया जाता है। इन गतिविधियों में व्यक्तिगत, सामाजिक, व्यावसायिक और मनोरंजक कार्य शामिल होते हैं, जिन्हें दैनिक जीवन में उपयोग किया जा सकता है। शैक्षिक कौशल केवल तभी शामिल किए जाते हैं जब बच्चों में उन्हें सीखने की क्षमता हो।
Special Diploma, IDD, Paper-5, CURRICULUM DEVELOPMENT (पाठ्यचर्या विकास), Unit-4
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व्यवहारिक दृष्टिकोण (Behavioral Approach):

  1. वांछनीय और अवांछनीय व्यवहारों को बढ़ाना और कम करना:
    विशेष शिक्षा में, बच्चों के वांछनीय व्यवहार को बढ़ाने और अवांछनीय व्यवहारों को कम करने के लिए व्यवहार संशोधन तकनीकों का उपयोग किया जाता है। यह तकनीकें जैसे कि कार्य विश्लेषण, मॉडलिंग, आकार देना, संकेत देना और सुदृढीकरण (Reinforcement) बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
  2. संचालन कंडीशनिंग (Operant Conditioning):
    पिछले दो दशकों में, संचालन कंडीशनिंग के सिद्धांतों पर आधारित व्यवहार संशोधन तकनीकें बहुत लोकप्रिय हुई हैं। ये तकनीकें छात्रों के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करती हैं। हालांकि, प्रतिकूल तकनीकों के उपयोग की आलोचना की गई है, क्योंकि ये कभी-कभी मूल व्यवहार को और भी बदतर बना सकती हैं।
  3. कोमल शिक्षण (Gentle Teaching):
    व्यवहार संशोधन में कोमल शिक्षण का विचार भी प्रस्तुत किया गया है, जिसमें पारिस्थितिक हेरफेर, त्रुटिहीन शिक्षा (Errorless Teaching), पर्यावरण इंजीनियरिंग, और लचीलेपन जैसी प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है। यह दृष्टिकोण बच्चों के लिए एक सहायक और सकारात्मक शैक्षिक वातावरण बनाने में मदद करता है।
  4. सेवाकालीन प्रशिक्षण (In-Service Training):
    भारत में विशेष शिक्षक सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यशालाओं के माध्यम से समय-समय पर अद्यतन होते हैं। इन कार्यशालाओं में शिक्षकों को नवीनतम शैक्षिक अवधारणाओं और प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी दी जाती है, ताकि वे बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त शिक्षण विधियों का चयन कर सकें।

बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का डिजाइनिंग एक जटिल और विशिष्ट प्रक्रिया है, जो बच्चों की व्यक्तिगत और शैक्षिक जरूरतों के अनुसार ढालना होता है। इस प्रक्रिया में, शैक्षिक सामग्री, प्रक्रिया, और व्यवहारिक दृष्टिकोण का सही मिश्रण छात्रों को यथासंभव स्वतंत्र और समाज में सहभागी बनाने के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार, बौद्धिक अक्षमता वाले छात्रों के लिए एक प्रभावी पाठ्यक्रम उनके जीवन में सुधार और समृद्धि लाने में सहायक हो सकता है।


Unit 4.2: Personal, Social, Functional Academic, Occupational, Recreational Skills (व्यक्तिगत, सामाजिक, कार्यात्मक शैक्षिक, व्यावसायिक, मनोरंजक कौशल)

Personal Skills (व्यक्तिगत कौशल):

व्यक्तिगत कौशल वे आधारभूत दिनचर्या गतिविधियाँ हैं, जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करती हैं। इसमें खाना खाना, पीना, शौचालय जाना, स्नान करना, कपड़े पहनना और संवारना जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। इन गतिविधियों को सही तरीके से करने के लिए बच्चों को न केवल मोटर कौशल (ग्रॉस मोटर और फाइन मोटर) की आवश्यकता होती है, बल्कि भाषा और संचार कौशल भी जरूरी होते हैं।

उदाहरण:

  1. एक बच्चा पानी के फिल्टर से पानी लेकर गिलास में डालने और पीने की प्रक्रिया को सीखे। इसमें उसे गिलास को पहचानना, नल खोलना, पानी भरना और फिर नल को बंद करना सिखाया जाता है।
  2. यदि बच्चा किसी मित्र के घर जाता है और प्यासा होता है, तो उसे अपनी माँ से पानी की मांग करने के लिए संचार कौशल की आवश्यकता होती है।

यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि व्यक्तिगत कौशल एक-दूसरे से अलग नहीं होते हैं, बल्कि ये आपस में ओवरलैप करते हैं। उदाहरण के तौर पर, खाना खाने और पानी पीने के कौशल के लिए मोटर कौशल और संचार कौशल दोनों की आवश्यकता होती है।


Eating and Drinking (खाना और पीना):

बच्चों को यह समझाने का अवसर देना चाहिए कि भूख लगने पर खाना खाते हैं और प्यास लगने पर पानी पीते हैं। लंच टाइम और ब्रेक टाइम का उपयोग बच्चों को यह सिखाने के लिए किया जा सकता है कि कैसे वे अपना लंच बॉक्स और सामान पहचानें और उसकी देखभाल करें।

प्रशिक्षण के चरण:

  • बच्चों को लंच बॉक्स और बैग की पहचान करने का मौका दें।
  • खाने के बाद, उन्हें अपने सामान का ध्यान रखने के लिए प्रेरित करें।
  • माता-पिता से यह कहें कि वे छात्रों को एक प्लेट और गिलास दें, जिसे स्कूल में रखा जा सकता है।
  • छात्रों के लिए एक चार्ट तैयार करें, जिसमें उनके नाम और गतिविधियाँ दर्शाई गई हों।

Specific Skill Related Points (विशिष्ट कौशल संबंधित बिंदु):

  1. Drinking (पीना):
    • यदि बच्चे को गिलास पकड़ने में कठिनाई हो, तो दोनों तरफ हैंडल वाले कप का उपयोग करें।
    • प्रारंभिक चरणों में, गिलास में एक चौथाई पानी डालें और धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ाएं।
    • बच्चे को पेय पदार्थ के रूप में फलों के रस या छाछ का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करें।
    • पानी या अन्य पेय पदार्थों के चुनाव में बच्चे की पसंद को ध्यान में रखें, ताकि वह पीने के लिए प्रेरित हो।
    • छोटे जग या बोतल से गिलास में पानी डालना सिखाएं।
  2. Eating (खाना):
    • बच्चों को चपाती, करी, दाल, साइड डिश आदि के साथ खाना खाने की प्रक्रिया सिखाएं।
    • बच्चों को यह सिखाएं कि चावल और करी को सही अनुपात में मिलाकर खाया जाए। यदि बच्चा चावल और करी को अलग-अलग खाता है, तो पहले उन्हें चावल और करी को मिलाकर छोटी-छोटी लोइयां बनाने का अभ्यास कराएं, ताकि वे इसे उंगलियों से खा सकें।
    • अगर बच्चे को शारीरिक मार्गदर्शन की आवश्यकता हो, तो उसे सही दिशा में हाथ रखकर मार्गदर्शन करें, उदाहरण के तौर पर, बच्चे के दाहिने हाथ को सही दिशा में निर्देशित करें।
    • बच्चों को यह बताएं कि वे क्या खा रहे हैं और खाद्य पदार्थों के नाम बताएं।
    • हमेशा थोड़ी मात्रा में खाना परोसें, ताकि बच्चा न थके और ध्यान केंद्रित रख सके।

ध्यान देने योग्य बातें:

  • बच्चों को आवश्यकता अनुसार भोजन और पानी देना, न कि एक बार में बहुत सारा।
  • बच्चों के द्वारा भोजन खत्म करने के बाद उनसे यह पूछना कि क्या वे और भोजन चाहते हैं।

Toileting Skills (शौचालय कौशल):

शौचालय कौशल बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। शौचालय कौशल सिखाने के दौरान गोपनीयता बनाए रखना और बच्चों को सही तरीके से शौचालय का उपयोग सिखाना आवश्यक है। यह कौशल उन्हें घर और स्कूल दोनों जगह सिखाया जा सकता है, लेकिन यह हमेशा ठीक समय पर किया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. गोपनीयता सिखाना: बच्चों को शौचालय का दरवाजा बंद करना सिखाना बेहद जरूरी है। यह उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से आत्मनिर्भर बनाता है। जब आप बच्चे को शौचालय का उपयोग करने के लिए सिखा रहे होते हैं, तो उन्हें पैंट उतारने और पहनने की प्रक्रिया के साथ शौचालय का दरवाजा बंद करने के बारे में समझाएं।
  2. शौचालय का उपयोग: बच्चों को शौचालय का उपयोग करते समय घबराहट और डर से बचने के लिए दीवारों के दोनों ओर हैंडल लगाने की सलाह दी जा सकती है। इससे बच्चा बिना किसी डर के शौचालय का उपयोग कर सकता है।
  3. धुलाई और सफाई: शौच के बाद हाथ धोना और शौचालय फ्लश करना शौचालय कौशल का एक अहम हिस्सा है। बच्चों को सही तरीके से हाथ धोने, फ्लश करने और सफाई की प्रक्रिया सिखानी चाहिए।
    • जब बच्चा शौचालय के बाद धोने का काम करता है, तो उसे बाएं हाथ का उपयोग करने की आदत डालें, क्योंकि यह अधिक स्वच्छता और सही तरीके से किया जा सकता है।

Bathing Skills (स्नान कौशल):

स्नान कौशल बच्चों को स्वच्छता बनाए रखने के लिए सिखाया जाता है। यह आमतौर पर परिवार के सदस्य घर पर सिखाते हैं क्योंकि स्कूल में या डेकेयर सेंटर में यह सिखाना मुश्किल हो सकता है। माता-पिता और परिवार के सदस्य बच्चों को स्नान करने के सही तरीके सिखाने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. कपड़े और तौलिया चुनना: बच्चों को स्नान से पहले अपने कपड़े और तौलिया पहचानने और चुनने की अनुमति दें। यह उन्हें अपने कपड़ों की पहचान करने में मदद करता है और साथ ही उनके लिए नामकरण की प्रक्रिया को आसान बनाता है।
  2. तापमान जांचना: बच्चों को स्नान करने से पहले ठंडे पानी और गर्म पानी का मिलाकर तापमान की जांच करने की अनुमति दें, ताकि उन्हें सही तापमान का अनुभव हो सके।
  3. गोपनीयता बनाए रखना: स्नान के दौरान बच्चों को गोपनीयता का एहसास दिलाना जरूरी है। बच्चों को स्नान करते समय यह सिखाएं कि शरीर के विभिन्न हिस्सों की सफाई करने में गोपनीयता बनाए रखी जाए।
  4. साबुन का उपयोग और हाथों से सफाई: बच्चों को साबुन का सही तरीके से उपयोग करना सिखाना चाहिए। शुरुआती चरण में, आप स्पंज का उपयोग कर सकते हैं ताकि बच्चे का शरीर साफ किया जा सके। जिन बच्चों को पीठ तक हाथ पहुंचाने में कठिनाई होती है, उनके लिए रुमाल या छोटे तौलिये का उपयोग किया जा सकता है।

Brushing Skills (ब्रश करना):

ब्रश करना एक जरूरी स्वच्छता कौशल है, जो बच्चों को दांतों की सफाई के लिए सिखाया जाता है। यह स्कूलों में दोपहर के भोजन के बाद उन बच्चों को सिखाया जा सकता है जिन्हें दांत ब्रश करने में कठिनाई होती है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. ब्रश के हैंडल को मोटा करना: अगर बच्चे को ब्रश पकड़ने में कठिनाई होती है, तो ब्रश के हैंडल को कपड़े प्लास्टर से मोटा किया जा सकता है। इसके अलावा, लकड़ी के हैंडल से भी पकड़ में मदद मिल सकती है।
  2. दर्पण का प्रयोग: बच्चों को दांत ब्रश करते समय दर्पण के सामने खड़ा करने की सलाह दी जाती है। इससे बच्चों को यह देखने का मौका मिलता है कि वे सही तरीके से ब्रश कर रहे हैं या नहीं।
  3. पेस्ट खाने से बचना: शुरुआत में, बच्चे दांत ब्रश करने के बाद पेस्ट खा सकते हैं। यह कोई समस्या नहीं है, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों को थूकने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  4. गरारे करने की प्रक्रिया: दांत ब्रश करने के बाद बच्चों को गरारे करने के लिए एक छोटा मग या गिलास पानी दिया जा सकता है।

Dressing Skills (ड्रेसिंग कौशल):

ड्रेसिंग कौशल बच्चों को आत्मनिर्भरता और स्वच्छता बनाए रखने के लिए सिखाया जाता है। इसमें कपड़े उतारने, पहनने, बटन लगाने, जिप और फीता बांधने जैसी गतिविधियाँ शामिल होती हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. कपड़े उतारने और पहनने का प्रशिक्षण: बच्चों को कपड़े उतारने और पहनने का तरीका सिखाते समय, बैठने के लिए स्टूल, कुर्सी या बॉक्स का उपयोग करें। यह बच्चों को संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और वे आसानी से पैंट उतार सकते हैं।
  2. बटन और जिप लगाना: बच्चों को शर्ट पर बड़े बटन लगाने के लिए प्रेरित करें, ताकि शुरुआत में यह आसान हो। बाद में, कपड़े पहनने के बाद बटन, जिप और हुक लगाना सिखाएं। यदि जरूरी हो, तो बच्चे को पीछे से मार्गदर्शन करते हुए इसे सिखाया जा सकता है।
  3. सही और गलत पक्ष की पहचान: कपड़ों के सही और गलत पक्ष की पहचान सिखाने के लिए स्टिकर या लेबल का प्रयोग करें। यह बच्चों के लिए सरल और स्पष्ट तरीका होता है।
  4. अनुकूलन का उपयोग: अगर बच्चों को बटन लगाने या जिप बांधने में कठिनाई होती है, तो आप वेल्क्रो या इलास्टिक बैंड जैसे अनुकूलन का उपयोग कर सकते हैं। इससे बच्चे के लिए यह कार्य सरल हो जाता है।

Grooming Skills (ग्रूमिंग कौशल):

ग्रूमिंग कौशल बच्चों को व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इसमें बालों में कंघी करना, पाउडर लगाना, जूते पहनना, और अन्य व्यक्तिगत देखभाल गतिविधियाँ शामिल हैं।

महत्वपूर्ण बिंदु:

बाल बांधना: बाल बांधना एक जटिल गतिविधि है, लेकिन बालों को छोटा रखना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। आप रबर बैंड का उपयोग करके बालों को बांध सकते हैं, जिससे यह प्रक्रिया सरल और सुलभ हो जाती है।

जूते की पहचान: जो बच्चे बाएं और दाएं का सही पहचान नहीं कर पाते, उनके लिए जूतों की एड़ी में स्टिकर्स या चिह्न लगाए जा सकते हैं, ताकि वे सही जूता पहचान सकें।

जूते के फीते बांधना: जूते का फीता बांधना एक जटिल गतिविधि हो सकती है। इसके लिए, बाजार में बिना फीते वाले जूते उपलब्ध हैं, जिन्हें बच्चों के लिए खरीदा जा सकता है। इस प्रकार, बच्चे को अपनी जरूरतों के अनुसार उपयुक्त जूते पहनने की स्वतंत्रता मिलती है।

पाउडर लगाना: बच्चों को चेहरे पर समान रूप से पाउडर लगाना सिखाने के लिए आप कपड़े के कश का प्रयोग कर सकते हैं। यह बच्चों को इस प्रक्रिया में मदद करता है और वे इसे धीरे-धीरे सीखते हैं।

बिंदी लगाना: लड़कियों को बिंदी स्टिकर का उपयोग करने के लिए प्रेरित करें, क्योंकि यह आसानी से ठीक किया जा सकता है। इससे बच्चों को बिंदी लगाना सिखाना सरल हो सकता है।

बालों में कंघी करना: बालों में कंघी करना सिखाते समय मोटे हैंडल वाली कंघी का चयन करें, क्योंकि यह बच्चों को पकड़ने में आसानी होती है।

सामाजिक कौशल (Social Skills):

बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए सामाजिक कौशल सिखाना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अक्सर अनुचित या असामान्य व्यवहार करते हैं, जो उन्हें समूहों में अलग बना सकता है। आयु-उपयुक्त सामाजिक कौशल की कमी के कारण वे छोटे बच्चों के साथ खेलने की प्रवृत्ति रखते हैं। इसलिए उन्हें विभिन्न परिस्थितियों में सामूहिक व्यवहार सिखाना आवश्यक होता है।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. सामाजिक कौशल सिखाने के अवसर:
    बच्चों को सामाजिक कौशल सिखाने के लिए स्कूल, पड़ोस और समुदाय में स्थितियों का उपयोग करें। उदाहरण के लिए, हम कक्षा, खेल के मैदान, और दोपहर के भोजन के कमरे में बच्चों को धन्यवाद कहना, कतार में खड़ा होना, अपनी बारी का इंतजार करना, साझा करना, और सहकारिता से खेलना जैसी गतिविधियाँ सिखा सकते हैं।
  2. सामूहिक व्यवहार:
    बच्चों को अपनी बारी का इंतजार करना, साझा करना, सहकारिता से खेलना, और नेतृत्व की भूमिका निभाना जैसी गतिविधियाँ सिखाना, जो स्कूल में सामान्य रूप से होती रहती हैं, यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे उचित सामाजिक व्यवहार का पालन करें।
  3. माता-पिता और परिवार का सहयोग:
    माता-पिता और परिवार के सदस्यों को घर पर इन सामाजिक कौशलों का अभ्यास करने के लिए सूचित करना आवश्यक है, क्योंकि यह बच्चों के बीच उचित और स्वीकार्य सामाजिक व्यवहार विकसित करने में मदद करता है।
  4. स्वतंत्र जीवन के लिए कौशल:
    व्यक्तिगत सामान की देखभाल करना, दूसरों के बहकावे में न आना, और अपने अधिकारों को समझना ऐसे महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल हैं जो बच्चों को स्वतंत्र जीवन जीने के लिए सिखाए जाने चाहिए।

कार्यात्मक कौशल (Functional Skills):

कार्यात्मक कौशल वे कौशल होते हैं जो एक छात्र को स्वतंत्र रूप से जीवन जीने के लिए आवश्यक होते हैं। विशेष शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह है कि छात्रों को जितना संभव हो, उतनी स्वतंत्रता और स्वायत्तता प्राप्त हो, चाहे उनकी अक्षमता भावनात्मक, बौद्धिक, शारीरिक, या बहुविकल्पी अक्षमताओं का संयोजन हो।

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. कार्यात्मक कौशल की परिभाषा:
    कार्यात्मक कौशल तब तक कार्यात्मक माने जाते हैं जब तक कि उनका परिणाम छात्र की स्वतंत्रता का समर्थन करता है। ये कौशल छात्रों को अपने दैनिक जीवन को स्वच्छ और व्यवस्थित तरीके से संचालित करने में सक्षम बनाते हैं।
  2. कार्यात्मक कौशल के प्रकार:
    • जीवन कौशल (Life Skills):
      ये वह कौशल होते हैं जो हम सामान्यत: जीवन के पहले कुछ वर्षों में हासिल करते हैं, जैसे चलना, स्वयं खाना खाना, स्वयं शौचालय जाना, और सरल अनुरोध करनाआत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकार और महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक या बहु-विकलांगता वाले बच्चों को इन कौशलों को मॉडलिंग, उन्हें तोड़कर और अनुप्रयुक्त व्यवहार विश्लेषण (ABA) के माध्यम से सिखाने की आवश्यकता होती है।
    • कार्यात्मक शैक्षणिक कौशल (Functional Academic Skills):
      ये कौशल स्वतंत्र रूप से जीने के लिए आवश्यक होते हैं, भले ही वे उच्च शिक्षा या डिप्लोमा के पूरा होने की ओर न ले जाएं। ये कौशल बच्चों को बुनियादी गणना, पढ़ाई, लिखाई, और अन्य शैक्षणिक कार्यों में मदद करते हैं, जो उनके जीवन को सरल और आत्मनिर्भर बनाने में सहायक होते हैं।
  3. समय का प्रबंधन और कार्य योजना:
    बच्चों को समय का प्रबंधन और कार्य योजना बनाना सिखाना भी कार्यात्मक कौशल का हिस्सा होता है। यह उन्हें अपने कार्यों को प्राथमिकता देने और समय पर पूरा करने की क्षमता प्रदान करता है।
  4. स्वास्थ्य और स्वच्छता कौशल:
    जीवन कौशल के तहत, बच्चों को स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में सिखाना भी आवश्यक होता है। यह बच्चों को खुद की देखभाल करने और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करता है।

गणित कौशल (Math Skills):

कार्यात्मक गणित कौशल जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और बच्चों को स्वतंत्र जीवन जीने के लिए आवश्यक होते हैं। इनमें शामिल होते हैं:

  1. समय बताना:
    बच्चों को घड़ी के प्रकार और समय की समझ सिखाना, जैसे कि घड़ी में घंटे और मिनट की स्थिति को पहचानना।
  2. गिनना और पैसे का उपयोग करना:
    पैसे की पहचान और उसका उपयोग करना, जैसे रुपये और सिक्कों को पहचानना और उनका सही तरीके से उपयोग करना।
  3. चेकबुक को संतुलित करना:
    चेकबुक में लेन-देन का हिसाब रखना और उसे संतुलित करना एक उच्च कार्यकारी गणित कौशल है।
  4. माप और मात्रा को समझना:
    बच्चों को माप की विभिन्न इकाइयाँ और उनके उपयोग को समझाना जैसे लम्बाई, वजन, मात्रा आदि।
  5. व्यावसायिक कौशल:
    उच्च कार्य करने वाले छात्रों के लिए, गणित कौशल का विस्तार व्यावसायिक रूप से उन्मुख कौशल जैसे परिवर्तन करना, शेड्यूल का पालन करना, और पैसे के लेन-देन को समझना तक किया जा सकता है।

भाषा कला (Language Arts):

भाषा कला बच्चों के पढ़ने, लिखने, सुनने और बोलने से संबंधित कौशलों का एक सेट है। विशेष रूप से विकलांग छात्रों के लिए, भाषा कला में निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं:

  1. पढ़ने की शुरुआत:
    पढ़ाई प्रतीकों को पहचानने से शुरू होती है और फिर पढ़ने के संकेतों की ओर बढ़ती है। इससे बच्चों को शब्दों, वाक्य और परिच्छेदों को समझने में मदद मिलती है।
  2. ऑडियो रिकॉर्डिंग का उपयोग:
    विकलांग छात्रों को ऑडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से पाठ पढ़ने के साथ-साथ वयस्कों के पढ़ने की मदद से, उन्हें पढ़ाई में समर्थन मिल सकता है।
  3. दिशाओं और संकेतों को पढ़ना:
    जैसे एक बस शेड्यूल, बाथरूम में संकेत, या अन्य दिशाओं को पढ़ने से विकलांग छात्रों को स्वतंत्रता मिल सकती है। यह बच्चों को अपने आसपास के वातावरण को बेहतर समझने में मदद करता है।

व्यवसायिक कौशल (Occupational Skills):

बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को स्वतंत्र जीवन जीने के लिए व्यवसायिक कौशल की आवश्यकता होती है। इसमें जीवन के कुछ बुनियादी कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है:

  1. खाना पकाना और खरीदारी:
    बच्चों को खाना पकाने और खरीदारी करने के कौशल सिखाना महत्वपूर्ण होता है। इससे वे अपनी ज़िंदगी की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो सकते हैं।
  2. हाउसकीपिंग और घरेलू गतिविधियाँ:
    बच्चों को घरेलू कार्यों जैसे प्लेट धोना, गिलास धोना, टेबल पोंछना, और झाड़ू लगाना सिखाना चाहिए। ये कौशल बच्चों को घर के कामों में स्वावलंबी बनाने में मदद करते हैं।
  3. खरीदारी और यात्रा कौशल:
    खरीदारी और यात्रा कौशल एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। बच्चों को वेतन और मूल्य टैग पढ़ना, पैसे का उपयोग करना, और बिल का भुगतान करना सिखाना आवश्यक है। साथ ही, यात्रा के सही साधन का चुनाव और संबंधित स्थानों तक पहुंचने का तरीका भी सिखाया जाता है।

मनोरंजनात्मक कौशल (Recreational Skills):

मनोरंजनात्मक कौशल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए आवश्यक हैं। विकलांग बच्चों के लिए मनोरंजन के लाभ निम्नलिखित हैं:

  1. स्वास्थ्य और सामाजिक संपर्क:
    मनोरंजन से बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर होता है और यह उन्हें सामाजिक संपर्क में भी मदद करता है। खेल, गतिविधियाँ और अन्य मनोरंजन बच्चे की सामाजिक भागीदारी को बढ़ाते हैं।
  2. तनाव से राहत और सामान्य आनंद:
    मनोरंजन बच्चे को तनाव से राहत प्रदान करता है और उन्हें जीवन का सामान्य आनंद प्राप्त होता है। इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  3. कौशल विकास:
    मनोरंजनात्मक गतिविधियाँ बच्चों को नई कौशल विकसित करने का अवसर देती हैं, जैसे खेलों में भाग लेना, संगीत या कला में रुचि लेना, आदि। ये गतिविधियाँ बच्चे की व्यक्तिगत और सामाजिक क्षमताओं को बढ़ाती हैं।

4.3. Curriculum development for pre-primary, primary and secondary levels

पाठ्यचर्या विकास (Curriculum Development):

पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक और माध्यमिक स्तरों के लिए पाठ्यचर्या विकास में बच्चों की शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न कौशलों का समावेश किया जाता है।

पूर्व-प्राथमिक (2-6 वर्ष) के लिए पाठ्यचर्या विकास:

पूर्व-प्राथमिक शिक्षा, विशेष रूप से विकलांग बच्चों के लिए, प्रारंभिक हस्तक्षेप का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह बच्चों के विकास को प्रोत्साहित करता है और उनके समग्र विकास को बढ़ावा देता है, जो स्कूल में और जीवन के बाद के वर्षों में सफलता के लिए पूर्वापेक्षाएँ बनाता है।

प्रारंभिक हस्तक्षेप:

प्रारंभिक हस्तक्षेप एक संवर्धन कार्यक्रम है जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जिसमें विकलांगता की डिग्री वाले शिशुओं और छोटे बच्चों का विकास शामिल होता है। इसका उद्देश्य बच्चों के विकास में तेजी लाना और उन्हें समाज में समावेशी बनाना है। विकलांग बच्चों के लिए शुरुआती हस्तक्षेप के माध्यम से दी जाने वाली सेवाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. वाक् और भाषा चिकित्सा:
    यह बच्चों के सुनने की क्षमता और भाषा का विकास करने में मदद करती है, जिससे बच्चों को संवाद करने की क्षमता मिलती है और वे सामाजिक रूप से जुड़ने में सक्षम होते हैं।
  2. फिजियोथेरेपी:
    यह मोटर कौशल जैसे संतुलन, बैठने, रेंगने, चलने आदि के विकास में मदद करती है। बच्चों को शारीरिक विकास में सहायता मिलती है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से दैनिक गतिविधियाँ करने में सक्षम होते हैं।
  3. विकास और कार्य चिकित्सा:
    यह बच्चों के हाथों, खेल, संज्ञानात्मक और सामाजिक कौशल को विकसित करने में मदद करती है, साथ ही भावनात्मक और आत्म-देखभाल के विकास को भी बढ़ावा देती है।
  4. सहायता प्रौद्योगिकी उपकरण:
    बच्चों को जरूरत के अनुसार सहायक उपकरण प्रदान किए जाते हैं, जो उनकी स्वतंत्रता और कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं, जैसे स्पीच-प्रेरित उपकरण, या शारीरिक गतिविधियों के लिए सहायक उपकरण।
  5. समावेशन:
    समावेशन का उद्देश्य विकलांग बच्चों को समान व्यवहार और अवसर प्रदान करना है, जिससे उन्हें अपनी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है। समावेशन बच्चों को शिक्षा में भागीदारी और सामाजिक विकास के लिए प्रोत्साहित करता है।

विकलांग बच्चों के लिए पाठ्यचर्या की विशेषताएँ:

  1. पाठ्यचर्या की लचीलापन:
    विकलांग बच्चों के लिए पाठ्यचर्या को लचीला और सुलभ बनाया जाना चाहिए ताकि यह सभी बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और क्षमताओं के अनुसार अनुकूल हो सके।
  2. मूल्यांकन और मूल्यांकन प्रक्रियाएँ:
    बच्चों की प्रगति को समझने के लिए उपयुक्त मूल्यांकन और मूल्यांकन प्रक्रियाएँ विकसित की जानी चाहिए। इससे शिक्षक बच्चों की ताकत को पहचान सकते हैं और उन्हें और अधिक सहायता देने के लिए पाठ्यक्रम को अनुकूलित कर सकते हैं।
  3. परिवेशी समायोजन:
    यह सुनिश्चित करना कि शारीरिक वातावरण बच्चों के लिए समायोजित और बाधा मुक्त है, ताकि वे बिना किसी रुकावट के सीख सकें और अपने कौशल को विकसित कर सकें।
  4. पॉजिटिव शब्दावली:
    विकलांग बच्चों के साथ काम करते समय उन्हें सकारात्मक और संवेदनशील शब्दावली का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि बच्चों को सम्मानित महसूस हो और उनके आत्मविश्वास में वृद्धि हो।

मूल्यांकन और सुधार की दिशा में कार्य करना:

  • स्वास्थ्य और विकलांगता की प्रारंभिक पहचान:
    विकासात्मक विकलांगताओं की जल्दी पहचान करने और हस्तक्षेप के महत्व को समझना, ताकि बच्चों को सही समय पर सहायता मिल सके।
  • सभी हितधारकों को सशक्त बनाना:
    शिक्षक, माता-पिता, और अन्य समुदाय के सदस्य बच्चों के विकास में एकीकृत रूप से कार्य करें। सभी को अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को अधिकतम समर्थन मिल सके।

प्रारंभिक हस्तक्षेप के लाभ:

  1. देर से होने वाली विकलांगताओं में कमी:
    प्रारंभिक हस्तक्षेप बच्चों के विकास में देरी को कम करने और उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करता है, जिससे बाद में विशेष शिक्षा सेवाओं की आवश्यकता कम हो जाती है।
  2. मूलभूत जीवन कौशल का विकास:
    विकलांग बच्चों के लिए जीवन कौशल, जैसे व्यक्तिगत देखभाल, सामाजिक कौशल, और मोटर कौशल, की शुरुआत प्राथमिक वर्षों में होती है, जो बाद के वर्षों में उनकी आत्मनिर्भरता और सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देती है।

6-9 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों के लिए पाठ्यचर्या विकास:

जब बच्चों की उम्र 6 से 9 वर्ष के बीच होती है, तो उन्हें प्राथमिक स्तर पर ध्यान में रखा जाता है। इस समय, बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को सीखने में देरी हो सकती है, जिससे उनके विकासात्मक क्षेत्रों में चुनौतियाँ आ सकती हैं। इस आयु वर्ग में, पाठ्यचर्या को इस प्रकार डिज़ाइन किया जाना चाहिए:

  1. स्वतंत्रता और सामाजिक कौशल:
    बच्चों को स्वतंत्रता प्राप्त करने और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीकों से कार्य करने के लिए आवश्यक कौशल विकसित करना चाहिए। यह उनके आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
  2. शैक्षिक और अनुकूलनात्मक कौशल:
    पाठ्यचर्या पर जोर उन कौशलों और व्यवहारों पर होना चाहिए जो बच्चों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने और समाज में भाग लेने के लिए आवश्यक हैं।
  3. समावेशी शिक्षा:
    विकलांगता की डिग्री के बावजूद, बच्चों को समावेशी शिक्षा का अवसर दिया जाना चाहिए, ताकि वे समूह में काम करने, खेलने और सामाजिक रूप से स्वीकार्य कौशल सीखने में सक्षम हों।

प्राथमिक स्तर (6-9 वर्ष) का विस्तार:

प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए पाठ्यचर्या का उद्देश्य व्यक्तिगत, सामाजिक, और व्यावसायिक कौशल के विकास पर जोर देना है। यह पाठ्यचर्या बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने और समाज में सकारात्मक रूप से शामिल होने के लिए आवश्यक कौशल सिखाती है। इस स्तर पर, बच्चों को जीवन के विभिन्न पहलुओं में संलग्न किया जाता है और उन्हें व्यावहारिक और अकादमिक कौशल दोनों को विकसित करने का अवसर मिलता है।

व्यक्तिगत कौशल (Personal Skills):

प्राथमिक स्तर पर बच्चों के व्यक्तिगत कौशल का विकास किया जाता है। ये कौशल बच्चों को आत्म-निर्भर और स्वतंत्र बनाने में मदद करते हैं। उदाहरण के रूप में:

  • खाना-पीना: बच्चों को यह सिखाया जाता है कि पानी कैसे पिया जाए, गिलास को कैसे उठाया जाए, और पानी का नल कैसे खोला और बंद किया जाए।
  • स्नान और कपड़े पहनना: बच्चों को कपड़े पहनने, स्नान करने और खुद को संवारने की आदतें विकसित करने के लिए गाइड किया जाता है।
  • शौचालय जाना: बच्चों को स्वच्छता और स्व-देखभाल के कौशल भी सिखाए जाते हैं।

इन सभी कार्यों को करने के लिए मोटर कौशल (जैसे बड़े और छोटे मोटर कौशल) और भाषा एवं संचार कौशल की आवश्यकता होती है, जिन्हें प्राथमिक स्तर पर सिखाया जाता है।

सामाजिक कौशल (Social Skills):

बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए सामाजिक कौशल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। ये बच्चे अक्सर समूहों में अलग महसूस करते हैं और आयु उपयुक्त सामाजिक व्यवहार में कमी दिखाते हैं। इसलिए, सामाजिक कौशल सिखाने के लिए विभिन्न परिस्थितियों का उपयोग किया जाता है:

  • सामूहिक व्यवहार: बच्चों को यह सिखाया जाता है कि उन्हें दूसरों के साथ किस तरह से सहयोग करना चाहिए, कतार में खड़े रहना चाहिए, अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए, और दूसरों के साथ साझा करना चाहिए।
  • समूहों में समायोजन: बच्चों को छोटे बच्चों के बजाय आयु उपयुक्त बच्चों के साथ खेलने की आदत डाली जाती है, जिससे उनका सामाजिक समावेश बढ़ता है।

व्यवसायिक कौशल (Occupational Skills):

प्राथमिक स्तर पर, बच्चों को विभिन्न कार्यों में व्यावसायिक कौशल सिखाए जाते हैं, जैसे:

  • खाना पकाना और घरेलू कार्य: जैसे टेबल बिछाना, खाना परोसना, बर्तनों की सफाई करना, और अन्य घरेलू गतिविधियाँ। इन गतिविधियों से बच्चों की कार्यशीलता और आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
  • खरीदारी और यात्रा कौशल: बच्चों को छोटे स्तर पर खरीदारी करने, वस्तुएं चुनने और पैसे का उपयोग करने की प्रक्रिया सिखाई जाती है।

माध्यमिक स्तर (10-14 वर्ष) के लिए पाठ्यचर्या विकास:

माध्यमिक स्तर पर बच्चों के लिए पाठ्यचर्या में जटिलता और सामग्री का विस्तार किया जाता है। इस स्तर पर, बच्चों के द्वारा सीखी गई प्राथमिक कौशल का विस्तार किया जाता है और उन्हें अधिक चुनौतीपूर्ण कार्यों में संलग्न किया जाता है। बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए यह स्तर एक प्राकृतिक विस्तार होता है, जहां उन्हें पहले से सीखी गई चीजों को मजबूत किया जाता है और नए कौशल सिखाए जाते हैं।

व्यक्तिगत कौशल (Personal Skills):

माध्यमिक स्तर पर बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को अधिक स्वतंत्रता से कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर:

  • स्वयं खाना-पीना: इस स्तर पर बच्चे खुद खाना खा सकते हैं, कपड़े पहन सकते हैं, और अन्य व्यक्तिगत देखभाल कार्य जैसे स्नान और ब्रश करना स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं।
  • सहायता की आवश्यकता: कुछ बच्चों को नहाने और कपड़े पहनने में न्यूनतम सहायता की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन वे अधिकांश कार्य खुद कर सकते हैं।

शैक्षिक कौशल (Academic Skills):

माध्यमिक स्तर पर, बच्चों को शैक्षिक गतिविधियाँ जैसे गणित, विज्ञान, और सामाजिक अध्ययन के अधिक जटिल पहलुओं के बारे में सिखाया जाता है। उदाहरण के लिए:

  • गणित: बच्चों को अधिक कठिन गणना, जोड़ और घटाव के अलावा, अन्य गणितीय अवधारणाओं के बारे में भी सिखाया जाता है।
  • भाषा कला: बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी, और क्षेत्रीय भाषा के अधिक कठिन पहलुओं के बारे में सिखाया जाता है।

सामाजिक कौशल (Social Skills):

माध्यमिक स्तर पर बच्चों को अधिक जटिल सामाजिक कौशल सिखाए जाते हैं, जैसे:

  • समूह कार्य: बच्चों को समूह में काम करना, सहकारिता से खेलना और दूसरों के विचारों का सम्मान करना सिखाया जाता है।
  • समाजिक जिम्मेदारी: बच्चों को उनके समुदाय और समाज में सकारात्मक योगदान देने के बारे में भी सिखाया जाता है।

व्यवसायिक कौशल (Occupational Skills):

माध्यमिक स्तर पर बच्चों को अधिक जिम्मेदारी के साथ घरेलू और व्यावसायिक कार्यों में संलग्न किया जाता है। यह बच्चों को स्वतंत्र जीवन जीने के लिए तैयार करता है, जैसे:

  • स्वयं की देखभाल: बच्चों को खाना पकाना, सफाई करना, और अन्य घरेलू कार्यों में भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाता है।

निष्कर्ष:

प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लिए पाठ्यचर्या का उद्देश्य बच्चों के व्यक्तिगत, सामाजिक, और व्यावसायिक कौशल के विकास पर ध्यान केंद्रित करना है। प्रत्येक स्तर पर, बच्चों की क्षमताओं और उनकी सीखने की विशेषताओं के अनुसार पाठ्यक्रम को लचीलापन और जटिलता के साथ डिज़ाइन किया जाता है। बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए यह पाठ्यचर्या उन्हें समाज में समाविष्ट करने, स्वतंत्रता प्राप्त करने और आत्मनिर्भर बनने में मदद करती है।


4.4. Curricular adaptation -accommodation, modification for inclusive settings ( पाठ्यचर्या अनुकूलन – समावेशी सेटिंग्स के लिए संशोधन)

समावेशी शिक्षा का उद्देश्य सभी छात्रों के लिए समान अवसर प्रदान करना है, ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरा विकास कर सकें। यह न केवल विकलांगता वाले बच्चों, बल्कि उन सभी बच्चों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण है जो विशेष सहायता की आवश्यकता महसूस करते हैं। समावेशी शिक्षा में विविधता को सम्मानित किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि सभी छात्र एक-दूसरे के साथ मिलकर सीखें। समावेशी सेटिंग्स में पाठ्यचर्या अनुकूलन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न संशोधन और परिवर्तन किए जाते हैं ताकि सभी छात्रों की जरूरतों को पूरा किया जा सके।

समावेशन का अर्थ और महत्व:

समावेशी शिक्षा का मतलब है सभी छात्रों को एक ही कक्षा में शामिल करना, चाहे उनकी शारीरिक या मानसिक क्षमता कुछ भी हो। इस प्रक्रिया के माध्यम से बच्चों में समानता, सामाजिक समरसता और सहयोग की भावना विकसित होती है। विकलांग छात्रों को यह अवसर मिलता है कि वे अन्य छात्रों के साथ शिक्षा प्राप्त करें, जो उन्हें जीवन के लिए तैयार करता है और समाज में उनके समावेश को प्रोत्साहित करता है।

पाठ्यचर्या अनुकूलन के प्रमुख पहलू:

  1. संसाधनों के उपयोग द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति:
    • जब पाठ्यचर्या को अनुकूलित किया जाता है, तो यह आवश्यक होता है कि उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग किया जाए। कई बार संसाधन सीमित होते हैं, लेकिन रणनीतियाँ बनाकर उन सीमित संसाधनों के माध्यम से लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। इसमें लक्ष्य निर्धारित करना, उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्यों को परिभाषित करना, और उन्हें पूरा करने के लिए संसाधनों का इकट्ठा करना शामिल है।
  2. निर्देशात्मक रणनीतियाँ (Instructional Strategies):
    • सीखने की रणनीतियाँ: इन रणनीतियों का उद्देश्य छात्रों को सीखने में मदद करना है। इसमें छात्रों को नए और कठिन कार्यों को समझने के लिए निर्देशित किया जाता है, ताकि वे कार्य को समय पर और सही तरीके से पूरा कर सकें।
    • रणनीतिक सोच: छात्रों को यह सिखाया जाता है कि वे समस्या का हल कैसे निकालें और योजना कैसे बनाएं।
    • सामग्री का आयोजन: यह सुनिश्चित करना कि जानकारी को संरचित और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किया जाए, ताकि छात्र उसे आसानी से समझ सकें और याद रख सकें।
  3. समावेशी कक्षा रणनीतियाँ (Inclusive Classroom Strategies):
    • शैक्षिक स्तर के बजाय उम्र पर ध्यान देना: कक्षा में योजना बनाते समय छात्रों की उम्र को ध्यान में रखा जाता है, न कि सिर्फ उनके शैक्षिक स्तर को। यह समावेशी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है, क्योंकि इससे छात्रों को अपनी पूरी क्षमता को व्यक्त करने का अवसर मिलता है।
    • दोनों समूहों का मूल्यांकन: समावेशी कक्षा में सामान्य छात्रों और विशेष जरूरतों वाले छात्रों के लिए समान कार्यों को लागू किया जाता है ताकि सभी को एक समान अवसर मिले।
    • सहयोगात्मक कार्य: सामान्य छात्रों और विशेष जरूरतों वाले छात्रों को मिलाकर कार्य सौंपे जाते हैं, ताकि वे मिलकर एक-दूसरे से सीख सकें और सहयोगात्मक कार्यों को बढ़ावा मिल सके।
  4. समुदाय उन्मुख पाठ्यचर्या, सह-पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियाँ:
    • सामाजिक समावेश: पाठ्यचर्या, सह-पाठ्यचर्या, और पाठ्येतर गतिविधियाँ समाज में सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए तैयार की जाती हैं। इन गतिविधियों में समुदाय की भागीदारी को शामिल किया जाता है, जिससे छात्र समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी और सक्रिय भूमिका को समझ सकें।
  5. पाठ्यचर्या और निर्देश को अनुकूलित करने के 6 कदम (6 Steps to Adapting Curriculum and Instruction):
    • चरण 1: गतिविधि चुनें: सबसे पहले उस गतिविधि का चयन करें जिसे आप कक्षा में लागू करना चाहते हैं।
    • चरण 2: लक्ष्यों की पहचान करें: यह निर्धारित करें कि आप चाहते हैं कि छात्र क्या सीखें, क्या अनुभव करें, और क्या गतिविधियों में संलग्न रहें।
    • चरण 3: छात्रों के लिए उपयुक्त संसाधन और सामग्री तैयार करें।
    • चरण 4: अनुकूलन की प्रक्रिया को लागू करें: छात्रों की विविध आवश्यकताओं के अनुसार सामग्री और रणनीतियों में आवश्यक परिवर्तन करें।
    • चरण 5: छात्रों की प्रगति की निगरानी करें: यह सुनिश्चित करें कि सभी छात्र गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हो रहे हैं और उनका सीखना सही दिशा में है।
    • चरण 6: प्रतिक्रिया और सुधार करें: शिक्षण के दौरान छात्रों से प्रतिक्रिया प्राप्त करें और उस पर सुधार करें, ताकि पाठ्यचर्या को और बेहतर बनाया जा सके।

शिक्षण विधियों का चयन:

हम टीम शिक्षण विधियों का उपयोग करेंगे ताकि प्रत्येक बच्चे को अधिकतम समर्थन मिले:

  • इंटरएक्टिव शिक्षण: इस विधि में, शिक्षक और छात्रों के बीच सक्रिय संवाद होगा। शिक्षक छात्रों को गतिविधियों और प्रश्नों के माध्यम से मार्गदर्शन देंगे, जिससे बच्चे अपने विचार साझा कर सकेंगे और सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेंगे।
  • वैकल्पिक शिक्षण: इस विधि में दो शिक्षकों का सहयोग होगा। एक शिक्षक छोटे समूह में एक अवधारणा को फिर से पढ़ाएगा और विस्तार से समझाएगा, जबकि दूसरा शिक्षक बाकी बच्चों की निगरानी करेगा और उनकी मदद करेगा।
  • समानांतर शिक्षण: छात्रों को मिश्रित योग्यता समूहों में बांटा जाएगा। फिर, प्रत्येक शिक्षक एक समूह को वही सामग्री सिखाएगा, ताकि सभी छात्रों को एक समान अवसर मिले।
  • स्टेशन शिक्षण: इस विधि में छात्रों को विभिन्न स्टेशनों पर भेजा जाएगा, जहाँ वे छोटे समूहों में कार्य करेंगे। प्रत्येक स्टेशन पर विशेष गतिविधियाँ होंगी, जैसे चित्र बनाना, संवादी खेल, या समूह कार्य, जिनसे बच्चे विभिन्न कौशल सीखेंगे।

UDL (Universal Design for Learning) के सिद्धांतों का पालन:

  • जुड़ाव (Engagement): छात्रों की रुचि और प्रेरणा बढ़ाने के लिए सीखने के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जाएगा। छात्रों को अपनी प्राथमिकताओं और रुचियों के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलेगा।
  • प्रतिनिधित्व (Representation): विभिन्न तरीकों से जानकारी प्रस्तुत की जाएगी जैसे कि दृश्य, श्रवण, और हाथों से किए जाने वाले कार्य, ताकि सभी बच्चे आसानी से समझ सकें।
  • कार्य और अभिव्यक्ति (Action and Expression): छात्रों को विभिन्न तरीकों से अपनी समझ को व्यक्त करने का अवसर मिलेगा, जैसे कि ड्राइंग, बोलकर या अन्य तरीके से।

7. छात्रों के लिए व्यक्तिगत शिक्षा प्रोग्राम (IEP): कक्षा में प्रत्येक छात्र के व्यक्तिगत शिक्षा प्रोग्राम के आधार पर, उनके लिए अनुकूलन किए जाएंगे। IEP में उल्लेखित लक्ष्यों के अनुसार बच्चों के लिए आवश्यक संसाधनों और समर्थन को सुनिश्चित किया जाएगा।

कार्यात्मक पठन (Functional Reading):
कार्यात्मक पठन का मतलब केवल शब्दों को पहचानना नहीं, बल्कि उन शब्दों का वास्तविक जीवन में उपयोग करना है, जैसे कि संकेतों, लेबलों, निर्देशों, या अन्य उपयोगी जानकारी को समझना। यह विशेष रूप से बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उन्हें अपनी दैनिक ज़िंदगी में अधिक स्वतंत्रता मिलती है। कार्यात्मक पठन के तीन मुख्य लक्ष्य हैं:

  1. सुरक्षा के लिए पढ़ना: बच्चों को साइन बोर्ड, लेबल, संकेतों, और अन्य सुरक्षा संबंधित मुद्रित सामग्री को पढ़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, सड़क पर दिखने वाले संकेत, जो उन्हें सड़क पार करते समय सुरक्षा का ध्यान रखने में मदद करते हैं।
  2. सूचना और निर्देशों के लिए पढ़ना: बच्चों को यह सिखाना कि वे विभिन्न दस्तावेजों, जैसे आवेदन पत्र, टेलीफोन निर्देशिकाएँ, या नौकरी से संबंधित सामग्री को कैसे पढ़ सकते हैं। यह उन्हें अपने जीवन में सूचनाओं को समझने और उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
  3. आनंद के लिए पढ़ना: बच्चों को पत्रिकाएँ, कहानी की किताबें और कॉमिक्स जैसी सामग्री पढ़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे पढ़ाई को एक मजेदार गतिविधि समझें और इसकी आदत डालें।

पठन शिक्षण (Teaching Reading):
बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को पठन सिखाने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। सबसे सामान्य तरीका संपूर्ण शब्द उपागम (Whole Word Approach) है। इस विधि में, बच्चों को शब्दों को पहचानने और पढ़ने की प्रक्रिया में मदद की जाती है, और बाद में उन्हें शब्दों को डिकोड करने (यानी, छोटे हिस्सों को जोड़कर शब्द बनाना) के लिए निर्देश दिया जाता है।

  • दृष्टि शब्द उपागम (Sight Word Method): इस विधि में, बच्चों को शब्दों को उनके पूर्ण रूप में याद करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, बिना शब्दों को उनके ध्वनियों के आधार पर तोड़ने के। यह विधि विशेष रूप से उन बच्चों के लिए उपयोगी है जो आसानी से चित्रों या अन्य इमेजरी से शब्दों को जोड़ सकते हैं।
  • उच्च इमेजरी शब्द (High Imagery Words): संज्ञाएँ जैसे ‘आम’, ‘गेंद’, ‘पंखा’ को पढ़ने में बच्चों को आसानी होती है, क्योंकि ये शब्द ठोस और समझने में आसान होते हैं। वहीं, अमूर्त शब्द जैसे ‘खट्टा’ को समझने के लिए उच्च इमेजरी शब्दों का प्रयोग किया जाता है जैसे, “आम खट्टा है”, ताकि बच्चे अमूर्त शब्दों को भी पहचान सकें।

पढ़ने की प्रक्रिया में तीन चरण:

  1. मिलान (Matching): बच्चों को शब्दों और उनके अर्थों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद की जाती है। उदाहरण के तौर पर, बच्चे ‘आम’ शब्द को चित्र या असली आम से जोड़ते हैं।
  2. समूह बनाना (Grouping): बच्चों को विभिन्न शब्दों के समूहों के रूप में पहचानने का अभ्यास कराया जाता है, जैसे सभी फल वाले शब्दों को एक समूह में रखना।
  3. पहचान और नामकरण (Identification and Naming): अंत में, बच्चों को शब्दों की पहचान कर और उनका नाम लेने का अभ्यास कराया जाता है। उदाहरण के तौर पर, एक बच्चा चित्र में दिखाए गए ‘आम’ को देखकर इसे सही तरीके से पहचानकर बोल सके।

लेखन शिक्षण (Teaching Writing):
लेखन सिखाने की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं, जिनसे बच्चों को लेखन के बुनियादी कौशल सिखाए जाते हैं। इन चरणों में शामिल हैं:

  1. अनुरेखण (Tracing): बच्चों को शब्दों और अक्षरों को ठीक से लिखने के लिए उनका अनुरेखण करने का अभ्यास कराया जाता है। यह लेखन कौशल की नींव तैयार करता है।
  2. संयुक्त बिंदु (Joint Dots): जब बच्चे अक्षरों को ट्रेस करने में सक्षम हो जाते हैं, तो उन्हें बिंदुओं के माध्यम से शब्दों को बनाने का अभ्यास कराया जाता है।
  3. प्रतिलिपि बनाना (Copying): यह प्रक्रिया बच्चों को किसी लिखित सामग्री को अनुकरण करने के रूप में सिखाती है। इसमें बच्चे किसी दिए गए पाठ या चित्र को हूबहू अपनी कापी पर लिखने का प्रयास करते हैं। इस विधि का उद्देश्य बच्चों की लेखन क्षमता और मोटर स्किल्स को विकसित करना है, साथ ही उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को भी सुधारना है। यह विशेष रूप से बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए सहायक होता है, क्योंकि यह उन्हें धीरे-धीरे सही ढंग से लिखने का अभ्यास कराता है।
  4. स्मृति से लिखना (Writing from Memory):– इस प्रक्रिया में बच्चे अपने दिमाग में उपलब्ध जानकारी से लिखने का प्रयास करते हैं। यह अधिक चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि बच्चे को न केवल पढ़ी हुई सामग्री को याद रखना होता है, बल्कि उसे ठीक से लिखने की क्षमता भी विकसित करनी होती है। स्मृति से लिखने का अभ्यास बच्चों को उनकी लेखन और याद रखने की क्षमताओं में सुधार करने में मदद करता है। यह विशेष रूप से उन बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है जो भविष्य में बिना किसी सहायता के लिखने की क्षमता को हासिल करना चाहते हैं।

कार्यात्मक अंकगणित (Functional Arithmetic)

कार्यात्मक अंकगणित:
कार्यात्मक अंकगणित का उद्देश्य बच्चों को उन दैनिक कार्यों में संख्याओं का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करना है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं में होते हैं। उदाहरण के तौर पर:

  • जब हम फल विक्रेता से आधा दर्जन केले खरीदते हैं तो हमें संख्या कौशल का उपयोग करना होता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसमें सच में छह केले हैं।
  • जब हम घर पर भोजन परोसते हैं, हमें यह निर्णय लेना होता है कि कितनी प्लेटें मेज पर रखनी हैं।
  • जब हमें बस का किराया देना होता है या किसी निश्चित स्थान तक जाने के लिए समय का हिसाब लगाना होता है, तो हमें अंकगणितीय कौशल की आवश्यकता होती है।

अंकगणितीय निर्देश के लिए रणनीतियाँ (Strategies for Arithmetic Instruction):

  1. पूर्व-गणित अवधारणाओं का ज्ञान:
    बच्चों को संख्याओं से पहले, अधिक/कम, भारी/हल्का, लंबा/छोटा जैसी पूर्व-गणितीय अवधारणाओं का ज्ञान होना चाहिए। इन अवधारणाओं से बच्चों को संख्या समझने में मदद मिलती है।
  2. सामग्री का अनुक्रम:
    अंकगणितीय कौशल सिखाने के लिए सामग्री को एक अनुक्रमिक क्रम में व्यवस्थित करना महत्वपूर्ण है। यह बच्चों को समझने और सीखने में अधिक मदद करता है। उदाहरण के तौर पर, बच्चों को पहले छोटे और सरल अंकगणितीय समस्याएं दी जाती हैं, और फिर धीरे-धीरे जटिल समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं।
  3. ठोस सामग्री का उपयोग:
    बच्चों को संख्याओं को समझाने के लिए ठोस और वास्तविक जीवन से जुड़ी सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, पैसे की गिनती के लिए सिक्के और नोट, या मापने के लिए यथार्थ वस्तुएं।
  4. सामाजिक और व्यावसायिक अभिविन्यास:
    अंकगणितीय कौशल का उपयोग बच्चों को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में करना सिखाना चाहिए, जैसे दुकान पर खरीदारी करते समय, या अपने परिवहन के खर्च का हिसाब करते समय। यह कौशल बच्चों को समाज में सक्रिय और स्वतंत्र सदस्य बनाने में मदद करता है।
  5. विभिन्न अनुभवों के माध्यम से सामान्यीकरण:
    बच्चों को विभिन्न प्रकार के अनुभवों के माध्यम से अंकगणितीय कौशल सामान्य बनाने के अवसर देने चाहिए, ताकि वे इन कौशलों को किसी भी नई स्थिति में लागू कर सकें।
  6. लचीला कार्यक्रम:
    बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार अंकगणितीय कार्यक्रम को लचीला बनाना चाहिए, ताकि प्रत्येक बच्चे को उनके स्तर और क्षमता के अनुसार मदद मिल सके।

4.5, पाठ्यचर्या मूल्यांकन प्रक्रिया (Curriculum Evaluation Process)

पाठ्यचर्या मूल्यांकन:
पाठ्यचर्या मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके माध्यम से यह जाना जाता है कि एक पाठ्यक्रम अपने उद्देश्यों को कितना पूरा कर रहा है और क्या छात्र वास्तव में उस पाठ्यक्रम से कुछ सीख रहे हैं। यह न केवल शिक्षा के प्रभाव को मापने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह यह भी तय करने के लिए है कि क्या पाठ्यक्रम में किसी सुधार की आवश्यकता है।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन क्यों आवश्यक है?

  • माता-पिता:
    माता-पिता यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके बच्चों को अच्छी और प्रभावी शिक्षा मिल रही है। यदि पाठ्यक्रम मूल्यांकन के माध्यम से यह साबित हो जाए कि पाठ्यक्रम बच्चों की शिक्षा में मदद कर रहा है, तो माता-पिता का विश्वास बढ़ता है।
  • शिक्षक:
    शिक्षक यह जानना चाहते हैं कि वे जो पढ़ा रहे हैं, वह बच्चों के लिए फायदेमंद है और क्या इससे बच्चों के प्रदर्शन में सुधार हो रहा है। इसके अलावा, यह मूल्यांकन यह सुनिश्चित करता है कि पाठ्यक्रम राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।
  • प्रशासन:
    स्कूल या कॉलेज प्रशासन यह देखना चाहते हैं कि पाठ्यक्रम को लागू करते समय छात्रों को जो परिणाम मिल रहे हैं, वे सही दिशा में हैं। प्रशासन इस मूल्यांकन के आधार पर पाठ्यक्रम में सुधार करने के लिए निर्णय ले सकता है।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन का उद्देश्य (Purpose of Curriculum Evaluation)

पाठ्यचर्या मूल्यांकन शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है। यह विभिन्न हितधारकों के लिए आवश्यक होता है, जैसे कि माता-पिता, शिक्षक, प्रशासक, और पाठ्यक्रम प्रकाशक। इसके माध्यम से यह समझा जाता है कि पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है या नहीं, और क्या सुधार की आवश्यकता है।

पाठ्यचर्या मूल्यांकन के उद्देश्य में निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:

  1. शिक्षा की गुणवत्ता पर रिपोर्ट:
    मूल्यांकन यह निगरानी करता है कि शिक्षा कितनी प्रभावी है और क्या बच्चों को समाज में अपना उचित स्थान प्राप्त करने के लिए तैयार किया जा रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम शैक्षिक लक्ष्यों, सामग्री, और शिक्षण विधियों को लगातार अपडेट करें, ताकि यह समाज में हो रहे परिवर्तनों के अनुरूप हो।
  2. पाठ्यक्रम में सुधार:
    यह मूल्यांकन यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कौन सी शिक्षण सामग्री और विधियाँ आवश्यक हैं। यदि कोई सामग्री या विधि अपनी प्रभावशीलता खो चुकी है, तो इसे बदलने या सुधारने की आवश्यकता हो सकती है।
  3. व्यक्तिगत निर्णय:
    यह मूल्यांकन छात्रों की आवश्यकताओं की पहचान करने में मदद करता है। इससे यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि किस छात्र को कौन सी सहायता की जरूरत है, और छात्रों को उनकी कमजोरियों से कैसे अवगत कराया जा सकता है।
  4. प्रशासनिक निर्णय:
    यह मूल्यांकन यह भी बताता है कि स्कूल प्रणाली कितनी प्रभावी है और व्यक्तिगत शिक्षक कितना अच्छा कार्य कर रहे हैं। यह प्रशासन को यह समझने में मदद करता है कि किस क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।

क्रोनबैक (1963) के अनुसार, मूल्यांकन का उपयोग निम्नलिखित तीन निर्णयों में किया जा सकता है:

  • पाठ्यक्रम में सुधार: यह यह तय करने में मदद करता है कि कौन सी सामग्री या विधियाँ आवश्यक हैं।
  • व्यक्तिगत निर्णय: छात्रों की आवश्यकता को पहचानने और उनके अनुसार कार्यक्रमों को अनुकूलित करने के लिए।
  • प्रशासनिक निर्णय: यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्कूल और शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा रहे हैं।

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