दिव्यांग बच्चों को नहीं मिल रहे है, Special Educator ?

क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आपको पढ़ाने वाला टीचर ही न हो, तो कैसा लगेगा? सोचिए ज़रा — स्कूल तो है, किताबें भी हैं, लेकिन आपको पढ़ाने वाला सही टीचर नहीं! ठीक यही हो रहा है हमारे देश के उन दिव्यांग बच्चों के साथ जो बोल और सुन नहीं सकते, देख नहीं सकते या मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर हैं।

राजस्थान के सरकारी स्कूलों में अस्सी हज़ार (80,000) से ज़्यादा ऐसे बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षक (Special Teachers) ही नहीं हैं।

Special Educator
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किसने छीना इन बच्चों से उनका हक?

सरकार ने नियम तो बना दिए हैं कि इन बच्चों को पढ़ाने के लिए ‘व्याख्याता विशेष शिक्षा’ यानी स्पेशल टीचर होने चाहिए। लेकिन अफ़सोस की बात है कि अब तक ऐसे टीचरों की भर्ती ही नहीं की गई।

इस वजह से दिव्यांग बच्चों को वही टीचर पढ़ा रहे हैं जो आम बच्चों को पढ़ाते हैं। जबकि भारतीय पुनर्वास परिषद (RCI) ने साफ कहा है कि दिव्यांग बच्चों को केवल विशेष रूप से प्रशिक्षित टीचर ही पढ़ा सकते हैं।

क्या असर हो रहा है?

टीचर नहीं होने से इन बच्चों की पढ़ाई रुक रही है।

  • हर साल अस्सी से सौ (80 से 100) बच्चे मजबूरी में दूसरे राज्यों में पढ़ने जा रहे हैं।
  • कुछ बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं या प्राइवेट स्कूलों में मोटी फीस देकर पढ़ रहे हैं।
  • बहुत सारे बच्चे ड्रॉपआउट हो रहे हैं यानी बीच में पढ़ाई छोड़ रहे हैं।

बच्चों और माता-पिता की मांग

कुछ समय पहले दिव्यांग बच्चों के माता-पिता और उनके टीचरों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात की। उन्होंने कहा —
“हमारे बच्चों को भी अच्छे और प्रशिक्षित टीचर चाहिए, जैसे आम बच्चों को मिलते हैं।”
सीएम ने अफसरों से कहा कि इस पर तीन दिन में रिपोर्ट दो

अफसरों का जवाब… समझ से बाहर!

शिक्षा विभाग के कुछ अफसरों ने कहा कि जो शिक्षक छठी से आठवीं तक पढ़ाते हैं, वही नौंवी से बारहवीं तक भी पढ़ा सकते हैं।
माता-पिता ने ठीक ही सवाल उठाया —
“अगर ऐसा है तो फिर सामान्य शिक्षा में अलग-अलग क्लास के लिए अलग टीचर क्यों रखे जाते हैं?”

सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है आदेश

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और दिव्यांगों के लिए काम करने वाले आयोग ने भी सरकार से कहा है कि इन बच्चों के लिए व्याख्याता विशेष शिक्षा के पद बनाओ और भर्ती करो।
लेकिन आज भी सिर्फ कागजों में ही बातें हो रही हैं, असली मदद नहीं मिल रही।

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