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Special Educators, दिव्यांग शिक्षक फर्जी सर्टिफिकेट केस

शिक्षा विभाग ने शिवपुरी जिले के 31 दिव्यांग शिक्षकों की जांच प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो पिछले 25-30 वर्षों से दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ये शिक्षक अब मेडिकल बोर्ड के सामने अपना दिव्यांगता प्रमाणपत्र सत्यापित कराएंगे। हालांकि, गुरुवार को मेडिकल बोर्ड द्वारा इन शिक्षकों का परीक्षण होना था, लेकिन बोर्ड के अस्थि रोग विशेषज्ञ के अवकाश पर जाने के कारण यह प्रक्रिया स्थगित हो गई है। अब इन शिक्षकों का परीक्षण अगले हफ्ते होगा।

Special Educators, दिव्यांग शिक्षक फर्जी सर्टिफिकेट केस
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शिक्षकों का आरोप, दिव्यांगता को फर्जी बताना गलत

इस मामले में कुछ दिव्यांग शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि उनकी दिव्यांगता को फर्जी बताना गलत है। रोशन लाल जाटव और कमलेश वंशकार नामक दो दिव्यांग शिक्षकों ने स्पष्ट किया कि वे वास्तविक रूप से दिव्यांग हैं और उनके पास दिव्यांगता का प्रमाण पत्र भी है। इन दोनों ने बताया कि वे लंबे समय से शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं और उनका दिव्यांगता प्रमाण पत्र पूरी तरह से वैध है।

चिकित्सा बोर्ड द्वारा जांच की प्रक्रिया

जिला शिक्षा अधिकारी समर सिंह राठौड़ ने बताया कि यह 31 शिक्षक जिले के विभिन्न स्कूलों में कार्यरत हैं और दिव्यांग सर्टिफिकेट पर नौकरी कर रहे हैं। उनकी जांच की जा रही है ताकि विभाग को वास्तविक स्थिति का पता चल सके। सभी शिक्षकों को मेडिकल बोर्ड के समक्ष अपना प्रमाण पत्र सत्यापित कराने के लिए निर्देशित किया गया है।

चिकित्सा बोर्ड में तीन सदस्यीय समिति शामिल है, जिसमें नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश अग्रवाल, मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. विवेक विमल और अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. चरण निगोरिया शामिल हैं। हालांकि, डॉ. निगोरिया अपनी पत्नी की डिलीवरी के कारण छुट्टी पर थे, जिसके चलते गुरुवार को इन शिक्षकों का परीक्षण नहीं हो सका।

रोचक तथ्य:

1. दिव्यांग शिक्षकों की लंबी सेवा:

यह शिक्षकों का मामला 25-30 साल पुराना है, जब से वे दिव्यांग प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। इतना लंबा समय एक शिक्षक के लिए काम करने का एक उल्लेखनीय उदाहरण है, और यह स्थिति कई सवालों को जन्म देती है कि दिव्यांगता प्रमाणपत्र की प्रक्रिया कितनी मजबूत है।

2. मेडिकल बोर्ड की भूमिका:

इस जांच में शामिल मेडिकल बोर्ड तीन विशेषज्ञ डॉक्टरों से बना है, जो इस तरह के मामलों में प्रमाण पत्र की सच्चाई का परीक्षण करते हैं। हालांकि, डॉक्टर की छुट्टी के कारण प्रक्रिया में देरी हुई है, फिर भी इस मामले में मेडिकल बोर्ड की भूमिका महत्वपूर्ण है।

3. विवाद का कारण:

कुछ दिव्यांग शिक्षकों ने अपनी दिव्यांगता को फर्जी बताने का आरोप लगाया है। यह स्थिति सवाल उठाती है कि क्या चिकित्सा परीक्षण में पारदर्शिता और सटीकता के साथ सभी को समान अवसर मिलते हैं, खासकर तब जब लंबे समय तक नौकरी की जा रही हो।

यह मामला शिक्षा विभाग और चिकित्सा बोर्ड की जांच प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। सभी पक्षों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे और सभी शिक्षकों को सही तरीके से न्याय मिले।

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